भारत के लिए प्रतिभा पलायन दशकों से एक गंभीर चुनौती रहा है। हमारे देश में सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने वाले युवा, जिन्होंने सरकारी खर्च पर उच्च शिक्षा हासिल की, अकसर स्नातक होने के बाद अच्छे ‘पैकेज’ के आकर्षण में दूसरे देशों की ओर रुख कर लेते हैं। अपनी प्रतिभा से उस देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सोचिए, अगर ये प्रतिभाशाली लोग विदेश नहीं गए होते और भारत में रहकर ही अपनी सेवाएं देते, तब आज भारत कहाँ होता? केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में आईआईएसईआर के दीक्षांत समारोह में युवा वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए ‘ब्रेन ड्रेन’ (प्रतिभा पलायन) के मुद्दे पर चिंता जताई है और देश की सेवा करने की एक भावनात्मक अपील भी की है। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपील- “देश छोड़कर मत जाना” केवल भावनात्मक आग्रह भर नहीं है अपितु इसके पीछे राष्ट्रीय विकास की ठोस चिंता है। जब योग्य युवा देश में रहकर अपनी ऊर्जा और ज्ञान का उपयोग करेंगे, तभी शोध, नवाचार और तकनीकी प्रगति भारत को आत्मनिर्भर बना पाएगी।
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह आह्वान सही समय पर आया है। एक ओर, देश के प्रतिभाशाली युवा विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर भारत 2047 में विकसित भारत के स्वप्न को लेकर आगे बढ़ रहा है। ऐसे समय में यदि हमारी मेधा विदेश में जाएगी, तब ‘विकसित भारत-2047’ का लक्ष्य कैसे पूरा होगा। समय की आवश्यकता है कि हम प्रतिभा को पलायन से रोककर, उसे राष्ट्र निर्माण में जोड़ें। यही आह्वान केंद्रीय मंत्री श्री चौहान ने युवा पीढ़ी से किया है। आज जो अमेरिका दादागिरी दिखा रहा है, उसके विकास में भारत के प्रतिभाशाली लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना बिलकुल सही है कि “अमेरिका को अमेरिका वालों ने नहीं, बल्कि इसे बनाने वाले भारतवासी हैं”। सिलिकॉन वैली में भारतीय मूल के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और उद्यमियों की सफलता इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। यह हमारी शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता को तो दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी बताता है कि हम अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अपने देश में रोक पाने में विफल रहे हैं।
प्रतिभा पलायन के मुद्दे पर कुछ लोगों का कहना होता है कि युवाओं को भारत में अवसर नहीं मिलेंगे, तब वे विदेश में न जाएं तो क्या करें? माना कि भारत में वह समय रहा है, जब सरकारें प्रतिभाशाली लोगों को बेहतर अवसर उपलब्ध नहीं करा पाती थीं। हालांकि, देश सेवा की उत्कंठ आकांक्षा रखनेवाले प्रतिभाशाली लोगों ने उस दौर में भी रास्ता निकालकर भारत के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन किया है। बहरहाल, अब तो वह दौर समाप्त हो चुका है। भारत सरकार युवाओं को अनेक प्रकार से अवसर उपलब्ध करा रही है। सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ और अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाने सहित कई कदम उठाए हैं। यह भी याद रखना होगा कि प्रतिभा पलायन को रोकने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। यह उन सभी युवाओं की भी है जिन्होंने भारत में रहकर शिक्षा प्राप्त की है। यह सही है कि हर किसी को अपने करियर के लिए सर्वश्रेष्ठ अवसर तलाशने का अधिकार है, लेकिन अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी नहीं भूलना चाहिए। यह समय है कि हमारे युवा सिर्फ एक अच्छी नौकरी की तलाश में न रहें, बल्कि अपने ज्ञान और क्षमता का उपयोग अपने देश को आत्मनिर्भर और विकसित बनाने के लिए करें। यही सच्ची देशभक्ति और राष्ट्र निर्माण है। इस संदर्भ में भी केंद्रीय मंत्री श्री चौहान ने बहुत ही व्यवहारिक ढंग से कहा कि “आजीविका तो चल ही जाएगी, लेकिन सच्चा सुख तब है जब आपका ज्ञान आपके देश और समाज के काम आए”।
हमारे सामने अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जो धन एवं भौतिक सुविधाओं की दौड़ को छोड़कर अपने देश में ही रहे या विदेश से लौटकर आए और उन्होंने देश के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। ऐसे अनेक लोग आज की पीढ़ी के नायक हैं, प्रेरणा के स्रोत हैं। उन लोगों को कौन जानता है, जो धन कमाने के चक्कर में विदेश में ही रह गए। स्वतंत्रता के नायकों को भी देखें तो अनेक महापुरुष ऐसे हैं, जो चाहते तो अपनी आजीविका चलाते रहते लेकिन देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपनी प्रतिभा को अर्पित कर दिया। कुलमिलाकर कहना है कि ‘ब्रेन ड्रेन’ को ‘ब्रेन गेन’ में बदलने का समय आ गया है। इसके लिए सरकार, संस्थान और समाज, सभी को मिलकर वातावरण बनाना होगा, ताकि हमारे युवा गर्व से कह सकें कि उनकी शिक्षा और शोध का सर्वोत्तम स्थान भारत ही है।