संयोग देखिए कि जब भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी समय उसे विश्व के प्रभावशाली देशों के संगठन ‘जी-20’ की अध्यक्षता का अवसर प्राप्त हुआ है। भारत को एक वर्ष के लिए जी-20 की अध्यक्षता का यह अवसर मिला है, जिसमें भारत 200 से अधिक जी-20 बैठकों का आयोजन करेगा। विभिन्न मुद्दों को लेकर होनेवाली इन बैठकों में दुनियाभर से विद्वान एवं राजनयिक आएंगे। निश्चित ही भारत अपने आतिथ्य के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनके मन को आकर्षित करने में सफल रहेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने बीते वर्षों में निरंतर संपर्क-संवाद से जी-20 समूह में शामिल देशों के साथ जो संबंध विकसित किए हैं, उन्हें मित्रता का और गहरा रंग देने का भी यह अवसर है। व्यापक आर्थिक मुद्दों के साथ ही व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे ज्वलंत मुद्दों पर आयोजित होनेवाली बैठकों में जब जी-20 के प्रतिनिधि एवं विषय विशेषज्ञ आएंगे, तब वे भारत से इन मुद्दों पर सम्यक दृष्टिकोण लेकर भी जाएंगे। ये ऐसे विषय हैं, जिन पर दुनिया बात तो कर रही है, लेकिन ठोस समाधानमूलक पहल इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि समाधान की दृष्टि में सार्वभौमिक मूल्यों का अभाव है। जैसे पर्यावरण के मुद्दे पर सामर्थ्यशाली देश स्वयं तो भोगवादी प्रवृत्ति को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है परंतु विकासशील देशों से वे अपेक्षा कर रहे हैं कि कार्बन उत्सर्जन इत्यादि में कमी लाने के लिए प्रयास करें। भारत अपनी परंपरा के आलोक में उक्त विषयों पर जी-20 की बैठकों के दौरान विश्व का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। भारत ने जिस जोश एवं उत्साह के साथ जी-20 की अध्यक्षता का स्वागत किया है, उसे स्वीकारा है, उसे देखकर यह समझा जा सकता है कि वर्तमान नेतृत्व ने पहले से कोई भावभूमि तैयार कर रखी है, जिस पर खड़े होकर वह भारतीय मूल्यों के आधार पर विश्व के प्रभावशाली देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करेगा। कहना होगा कि भारत के पास यह ऐसा स्वर्णिम अवसर है, जो विश्वपटल पर भारत के कल्याणकारी विचार एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना में सहायक सिद्ध होगा।