पाकिस्तान हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों के लिए नरक बन गया है। वहाँ हिंदू समाज, उनके व्यावसायिक संस्थान एवं धार्मिक स्थलों पर कट्टरपंथियों के हमले जारी हैं। सरकार आतंकी एवं कट्टरपपंथी गुटों के सामने पूरी तरह घुटने टेक चुकी है। इमरान खान की सरकार ने राजधानी इस्लामाबाद में जिस बहुप्रतीक्षित पहले श्रीकृष्ण मंदिर को बनने के लिए आर्थिक सहायता देने की स्वीकृति दी थी, उसे इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बनने से पहले ही ढहा दिया है। मंदिर की नींव को तोडऩे वालों पर कार्रवाई करने की जगह सरकार चुप्पी साधकर बैठक गई है। बल्कि इमरान सरकार ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के फतवे के आगे घुटने टेकते हुए मंदिर के निर्माण पर ही रोक लगा दी। पाकिस्तान सरकार ने अब मंदिर के संबंध में इस्लामिक ऑइडियॉलजी काउंसिल से सलाह लेने का फैसला किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान में सरकार कट्टरपंथियों के हाथ की कठपुतली बन चुकी है। वह अल्पसंख्यकों के हित में स्व-विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकती है। सरकार के निर्णयों पर आतंकी गिरोहों एवं कट्टरपंथी गुटों की पहरेदारी है।
कट्टरपंथियों ने श्रीकृष्ण मंदिर की नींव को ढहाने के साथ यह भी चेतावनी और संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं के मंदिर स्वीकार नहीं हैं। यदि मंदिर बनाने के प्रयास किए तो उसके परिणाम भुगतने के लिए हिंदुओं को तैयार रहना चाहिए। सामने आ रही जानकारियों के अनुसार मंदिर की नींव को ध्वस्त कर कट्टरपंथियों ने वहाँ नमाज पढऩा भी शुरू कर दिया है। उनका यह कृत्य मुगलकाल में भारत आए उन आक्रांताओं एवं धर्मांध कट्टरपंथियों की याद दिलाता है, जिन्होंने संपूर्ण भारत (आज का पाकिस्तान भी शामिल) में न केवल मंदिरों को ध्वस्त किया, बल्कि वहाँ तथाकथित मस्जिदें भी तामीर करा दीं। भारत में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में बाबर मस्जिद, मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर परिसर की तथाकथित मस्जिद और भगवान शिव की भूमि काशी में तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद इसके सबसे बड़े और जीवंत उदाहरण हैं। संपूर्ण भारत में इस्लामिक धर्मांधता के चलते आक्रांताओं एवं कट्टरपंथियों की भीड़ ने अनेक मंदिर ध्वस्त किये थे, जिनकी चर्चा भी आज नहीं होती है। 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर राज्य की कश्मीर घाटी को हिंदू विहीन करने के बाद वहाँ भी यह कृत्य दोहराए गए। आज जम्मू-कश्मीर के अनेक प्रसिद्ध मंदिर जर्जर अवस्था में हैं, वहीं अनेक मंदिरों के तो अवशेष भी नहीं बचे हैं।
बँटवारे के बाद से ही पाकिस्तान में भी हिंदू समाज और मंदिरों पर हमले प्रारंभ हो गए थे। पाकिस्तान में ज्यादातर मंदिर बंद हैं। वहाँ किसी प्रकार की धार्मिक पूजा-अर्चना करना संभव नहीं है। इस मंदिर की आधारशिला रखने वाले पाकिस्तान के मानवाधिकारों के संसदीय सचिव लाल चंद्र माल्ही ने बताया कि वर्ष 1947 से पहले इस्लामाबाद और उससे सटे हुए इलाकों में कई हिंदू मंदिर थे। लेकिन, कट्टरपंथियों के कारण अब यह उपयोग में नहीं है। कई मंदिरों पर ताले लगा दिए गए हैं और कई मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया है। पाकिस्तान में घटा यह घटनाक्रम इस्लामिक कट्टरता का उदाहरण है। यह इस बात का भी उदाहरण है कि वहाँ हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों की स्थिति ठीक नहीं। हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों पर होने वाले धार्मिक अत्याचारों को संज्ञान में लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए।
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