मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

साधुओं की निर्मम हत्या, आक्रोश में हिंदू समाज

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से सटे पालघर में बीते गुरुवार को ऐसी घटना घटी, जिसने सभी को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। भीड़ द्वारा दो साधुओं सहित तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या करने की घटना से हिंदू समाज आक्रोश में है। उसका आक्रोश महाराष्ट्र सरकार की लचर कानून व्यवस्था के साथ ही उन तथाकथित बुद्धिजीवियों के प्रति है, जिन्होंने साधुओं की हत्या पर चुप्पी साध रखी है। देश के किसी भी कौने में मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति के साथ यदि इस तरह की घटना हो जाती, तो देश में अब तक हंगामा मच गया होगा। अवार्ड वापसी गैंग और उनके सहयोगी आसमान सिर पर उठा लेते। सिनेमा जगत के कुछ चिह्नित कलाकारों को भारत में भय लगने लगता। लेकिन हैरत की बात है कि महाराष्ट्र के सबसे प्रमुख शहर मुंबई से सटे पालघर में दो साधुओं की हत्या हो जाती है और तीन दिन तक देश को इस घटना के विषय में पता ही नहीं चलता है। यह भी विचार करने की बात है कि एक और देशभर में कोरोना लॉकडाउन है तब पालघर में यह भीड़ एकत्र कैसे हो गई? 
          लगभग 200 लोगों की भीड़ ने निर्दोष और असहाय साधुओं सहित उनके वाहन चालक की हत्या की है। वीडियो देखने से साफ समझ आ रहा है कि भीड़ साधुओं की एक बात भी सुनने को तैयार नहीं थी। वीडियो में बर्बरता स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। नि:संदेह उस भीड़ में कोई भी मनुष्य नहीं था, सब पर हैवानियत हावी थी। सबसे अधिक शर्मनाक बात यह है कि महाराष्ट्र पुलिस की भी परवाह भीड़ को नहीं थी। पुलिस के सामने उस भीड़ ने हिंदू साधुओं और वाहन चालक की निर्ममता से हत्या की। पुलिसकर्मियों ने अपने कर्तव्य पालन के लिए जरा भी साहस नहीं दिखाया है। यह स्थिति बताती है कि महाराष्ट्र सरकार में अराजक तत्व बेलगाम हैं। पुलिस तंत्र पूरी तरह फेल है। 
          साधु ने रक्षक समझकर बड़ी आशा के साथ पुलिसवाले का हाथ थामा था, लेकिन दुर्भाग्य है कि महाराष्ट्र की कायर पुलिस ने साधु को उन नरपिशाचों के बीच छोड़ दिया। इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध है। अपराधियों के साथ ही मौके पर उपस्थित पुलिसवालों के विरुद्ध भी कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। जब वे किसी नागरिक की सुरक्षा ही नहीं कर सकते तब उन्हें पुलिस में रहने का कोई अधिकार नहीं है। 
          बताया जा रहा है कि उस क्षेत्र में बच्चा चोर की अफवाह फैली हुई थी। पुलिस ने कुछ दिन पूर्व ही दो चिकित्सकों को भी हिंसक भीड़ के चंगुल से बचाया था। प्रश्न है कि जब वह क्षेत्र इतना संवेदनशील था, तब पुलिस ने अतिरिक्त सतर्कता क्यों नहीं बरती? पुलिस ने पहले ही क्यों नहीं हिंसक भीड़ के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की। यदि पुलिस ने पहले ही वहाँ के लोगों को कानून का पाठ पढ़ा दिया होता तो आज निर्दोष हिंदू साधु जीवित होते। 
           दरअसल, पालघर के उस क्षेत्र में हिंदू विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। इसलिए भी यह घटना हुई। वरना गेरूए वस्त्रधारी बुजुर्ग को देखकर भीड़ इस तरह अमानुष न होती। कम्युनिस्ट और ईसाई मिशनरियों ने वहाँ हिंदू विरोध को हवा दी है। विश्व हिंदू कोंकण प्रांत के सहमंत्री और प्रवक्ता श्रीराज नायर ने इस संबंध में बताया है कि यह क्षेत्र जनजाति बाहुत्य है। कुछ वर्ष पहले तक पालघर ठाणे जिले का हिस्सा हुआ करता था, अब पालघर जिला बन चुका है। यहाँ ईसाई मिशनरियां और वामपंथी ब्रिगेड हिंदुत्व के विरोध में वातावरण बनाने के लिए सक्रिय हैं। इसलिए किसी षड्यंत्र की बात से इनकार नहीं किया जा सकता। हिंदू साधुओं और उनके वाहन चालक के नृशंस हत्याकांड की गंभीरता से जाँच होनी चाहिए, जो भी इस षड्यंत्र/हत्याकांड में शामिल हैं, उन्हें फांसी मिलनी चाहिए। बाला साहेब ठाकरे की विरासत पर रत्तीभर गौरव हो तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हत्याकांड की जाँच में तीव्रता से करा कर हिंदू समाज को न्याय देना चाहिए। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share