सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

क्या संसद में काम होगा?

 अ गले कुछ ही दिनों में संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है। देश में विचार-विमर्श जारी है कि इस सत्र में बजट प्रस्तुत होने के अलावा कुछ और काम हो पाएगा या नहीं? पिछले सत्रों में जनप्रतिनिधियों का जैसा व्यवहार देखने में आया, उसके हिसाब से आशंका बलवती होती है कि संसद में कुछ काम भी होगा? अब तक कांग्रेस के नेतृत्व में समूचे प्रतिपक्ष ने सत्तापक्ष के प्रति घनघोर असहिष्णुता का प्रदर्शन किया है। संसद में जनहित के कुछ काम हों, सत्तापक्ष ने इसके लिए अनेक प्रयास किए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चाय पर भी बुलाया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सत्तापक्ष के सदस्यों से संयम दिखाने का आग्रह किया। सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी सभी दलों के सांसदों से व्यक्तिगत आग्रह किया। सरकार ने प्रतिपक्ष की मांग पर गैर जरूरी विषय असहिष्णुता पर भी सदन में बहस करना स्वीकार किया। संविधान पर चर्चा के माध्यम से भी सरकार ने सदन में सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास किया। लेकिन, सत्तापक्ष के सभी प्रयास असफल हुए। कांग्रेस की जिद के कारण संसद ठप रही। कांग्रेस ने न्यायालय में विचाराधीन मामले नेशनल हेराल्ड पर भी संसद में जमकर हंगामा खड़ा किया। अब भी कांग्रेस का रुख ऐसा ही दिख रहा है। इस बार भी संसद सत्र को हंगामें की भेंट चढ़ाने के संकेत कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दिए हैं। कांग्रेस और वामपंथी दल इस बार रोहित वेमुला और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रकरण में संसद की बलि लेने की तैयारी कर रहे हैं।
        कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इन मामलों में काफी अधीरता दिखाई थी। सबसे पहले तो बिना किसी पड़ताल के रोहित के मामले को दलित उत्पीडऩ से जोड़कर सरकार और संघ को कठघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने बार-बार हैदराबाद के दौरे किए। छात्रों के साथ अनशन पर भी बैठे। रोहित वेमुला का विवाद खत्म भी नहीं हो सका था कि तब तक जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारेबाजी हो गई। राहुल गांधी ने यहां भी अपरिपक्व राजनीति का प्रदर्शन किया। देशद्रोही गतिविधि में शामिल छात्रों के समर्थन में जेएनयू परिसर में पहुंच गए। देशद्रोही छात्रों को समझाइश देने की जगह राहुल गांधी सरकार और आरएसएस को बुरा-भला कहने लगे। इस घटना का विरोध कर रही कांग्रेस को भी अपने युवराज की बचकानी हरकत के बाद यूटर्न लेना पड़ा। कांग्रेस प्रवक्ताओं के सामने विकट स्थिति खड़ी हो गई। वे समझ नहीं पा रहे कि जेएनयू में हुए घटनाक्रम का समर्थन करें या विरोध। बहरहाल, अब राहुल गांधी इन मसलों पर संसद का भट्टा बैठाने की योजना बना रहे हैं। इन मसलों पर वामपंथी दलों का सहयोग राहुल को प्राप्त हो ही जाएगा। यही कारण है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी कहना पड़ गया था कि एक परिवार संसद के कामकाज में रोड़ा अटका रहा है।
        लोकसभा में भले ही कांग्रेस कमजोर है लेकिन राज्यसभा में वह मजबूत स्थिति में है। कांग्रेस राज्यसभा में अपनी बड़ी संख्या के बल पर सरकार के प्रस्तावों को रोक दे रही है। गौरतलब है कि पिछले शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में निर्धारित समय से आधे से भी कम काम हुआ था। प्रश्नकाल 10 फीसदी से कुछ ही अधिक चल सका था। मानसून सत्र में स्थिति और भी निराशाजनक रही थी। लोकसभा में मात्र 48 फीसदी काम हुआ था, जबकि राज्यसभा ने अपने निर्धारित समय का सिर्फ नौ फीसदी ही काम में बिताया था। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस जिन मुद्दों को लेकर संसद में हंगामा करती रही, वह उन पर बहस के लिए कभी तैयार नहीं हुई। यह सही है कि विपक्ष को सरकार से जवाबदेही मांगने का पूरा अधिकार है। लेकिन, पहले बहस तो करनी पड़ेगी। सरकार के तर्कों को सुनना चाहिए। सरकार अपने पक्ष में संसद के माध्यम से देश के सामने अपनी बात रखना चाहती है तो उसे मौका मिलना चाहिए। इसके बाद कांग्रेस अपने तर्कों के आधार पर सरकार को गलत साबित करे। आरोप भर लगाकर हंगामा करना जिम्मेदार विपक्ष की पहचान नहीं है। इस तरह के व्यवहार से तो प्रतिपक्ष की मंशा पर सवाल उठते ही हैं। लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत 'संसद का काम देशहित के मुद्दों पर बहस करना और आवश्यक कानून बनाना है। लेकिन, कांग्रेस की हठधर्मिता ने इस प्रक्रिया को निश्चित रूप से बाधित किया है। स्वार्थ और विरोध की राजनीति से ऊपर उठकर कांग्रेस को बतौर विपक्ष अपनी जिम्मेवारियों को गंभीरता से निभाने की कोशिश करनी चाहिए। जनता उम्मीद कर रही है कि बजट सत्र में सरकार और विपक्ष देशहित में बहस और चर्चा की संसदीय परंपरा का मान रखेंगे और जनता के हित में कुछ काम भी होने देंगे।

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