प त्रकारिता के गिरते मूल्यों और घटती साख के बीच राहुल देव एक ऐसा नाम है जो पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों और भारतीय भाषाओं के वजूद के लिए लम्बी लड़ाई लड़ रहा है। हिन्दी पत्रकारिता में राहुल देव का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने 30 साल से भी अधिक वक्त इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में बिताया है। इतने लम्बे सफर के दौरान एक दिन भी ऐसा नहीं आया, जब उन पर किसी ने कोई आरोप लगाया हो। झक सफेद दाड़ी और बालों के बीच चमकता राहुल देव का भाल धवल पत्रकारिता का पैरोकार है।
वर्ष 1997 में सुरेन्द्र प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद लोकप्रिय न्यूज चैनल 'आजतक' पर एंकरिंग की जिम्मेदारी सम्भालने वाले राहुल देव पत्रकारिता में भाषा के स्वरूप और उसके संस्कार को लेकर बेहद संजीदा हैं। समाचार-पत्रों और न्यूज चैनल्स में भाषा के सरलीकरण और बोलचाल की भाषा के नाम पर भारतीय भाषाओं के साथ हो रहे खिलवाड़ से चिंतित नजर आते हैं। 'भारतीय भाषाओं का भविष्य और हमारी भूमिका' विषय पर ग्वालियर में आयोजित व्याख्यान में उन्होंने कहा था कि अंग्रेजियत के कारण मात्र हिन्दी ही नहीं वरन् भारतीय भाषाओं के वजूद पर संकट आ गया है। हमारी भाषाओं में जबरन अंग्रेजी के शब्द ठूंसे जा रहे हैं। उनका मानना है कि भाषा कोई भी हो, उसकी पवित्रता बनी रहनी चाहिए। अंग्रेजी बोलो तो शुद्ध। हिन्दी में बाचतीत करो तो फिर वह भी हिन्दी ही हो, उसमें अंगे्रजी के शब्द न हों। उनका मानना है कि मीडिया की भाषा के कारण नई पीढ़ी गंभीर और परिष्कृत भाषा से विमुख हो रही है। मीडिया में हिंग्लिश के प्रयोग से काफी दिक्कतें खड़ी हो रही हैं। इस खतरनाक प्रयोग को रोकने की जरूरत है। भारतीय भाषाओं के भविष्य को लेकर चिंतित राहुल देव सम्यक फाउण्डेशन के मार्फत एक मुहिम चला रहे हैं। वे इस फाउण्डेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं। उनका कहना है कि भाषा के साथ व्यक्ति और समाज के संस्कार भी बदलते हैं। हिन्दी के भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने आशंका जताई कि अगर हिन्दी की स्थिति यही रही तो 2050 तक भारत में लिखाई और पढ़ाई के सारे गंभीर काम अंग्रेजी में किए जा रहे होंगे और हिन्दी सिर्फ मनोरंजन की भाषा बनकर रह जाएगी। 'सम्यक फाउण्डेशन' के माध्यम से वे सामाजिक विकास, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, एचआईवी-एड्स और सामाजिक मूल्यों के प्रति भी लोगों को जागरूक करने में लगे हैं। इसके साथ ही युवाओं को समाजोन्मुखी पत्रकारिता का प्रशिक्षण देना और उन्हें शोधकार्य करने का अभ्यास भी वे बखूबी करा रहे हैं।
खुद का प्रोडक्शन हाऊस शुरू कर कई न्यूज चैनल्स के लिए बेहतरीन कार्यक्रम और महत्वपूर्ण वृत्तचित्र बनाने वाले राहुल देव ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज चैनल्स में काम किया। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। दि पायोनियर, करेंट, दि इलस्ट्रेटड वीकली, दि वीक, प्रोब, माया, जनसत्ता और आज समाज में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालने के अलावा उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी लम्बे समय तक काम किया। टीआरपी की जगह हर हाल में कंटेंट को प्राथमिकता देने वाले राहुल देव ने आजतक, दूरदर्शन, जी न्यूज, जनमत और सीएनईबी न्यूज चैनल में शानदार सफर गुजारा है।
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"बाजारवाद के प्रभाव में जब भारतीय भाषाओं, खासकर हिन्दी की गरिमा को क्षति पहुंचाई जा रही है, तब राहुल देव भाषाओं की गरिमा के लिए लड़ रहे हैं। यह अपने आप में अनूठी और साहस की बात है।"- जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख।
- जयंत सिंह तोमर, गांधीवादी चिन्तक
आज के दौर में जब भारतीय भाषाओं के अधिकांश मीडियाकर्मी अंग्रेजी के सामने घुटने टेक कर और अपनी भाषा की चिंदी -चिंदी कर अपना कॉलर ऊँचा करते दिखते हैं। ऐसे में राहुलदेव और उन जैसे कुछ पत्रकार ही भारतीय भाषाओं के लिए आशा की किरण जगाते हैं । ऐसे भारत-भाषा प्रहरी को नमन !
जवाब देंहटाएंश्री राहुलदेव जी के हिंदी के प्रति समर्पण का मन भीतर से स्मरण तो हमें करना ही चाहिए, उन्हें नमन।
जवाब देंहटाएंश्री राहुलदेव जी के हिंदी के प्रति समर्पण का मन भीतर से स्मरण तो हमें करना ही चाहिए, उन्हें नमन।
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