शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

रौबदार संपादक

 ल गभग 50 साल से पत्रकारिता में सक्रिय श्रवण गर्ग हिन्दी मीडिया के नायाब हीरे हैं। वे उस कुम्हार की तरह हैं, जो काली-पीली मिट्टी से बेहद खूबसूरत और जरूरी बर्तनों को आकार देता है। हिन्दी पत्रकारिता में दैनिक भास्कर को ब्रांडनेम बनाने के लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा। लोहे को छूकर सोना बना देने की उनकी पारसमणि की अलौकिक क्षमता का उपयोग फिलहाल जागरण ग्रुप कर रहा है। जागरण ग्रुप ने छजलानी बंधु से देश का प्रतिष्ठित समाचार-पत्र नईदुनिया खरीदा और उसे फिर से शिखर पर पहुंचाने की महती जिम्मेदारी रौबदार और संजीदा संपादक श्रवण गर्ग को सौंप दी है। 
     67 वर्ष में भी 'युवा ऊर्जा' से भरे श्रवण गर्ग के बारे में कहा जाता है कि उन्हें ना सुनने की आदत नहीं है। श्री गर्ग समस्याएं और बहाने नहीं सुनते, वे समाधान प्रिय सम्पादक हैं। गुस्से के तेज लेकिन अमूमन शांत दिखने वाले श्रवण गर्ग के कैबिन में अधूरा काम लेकर जाने की हिम्मत बड़े-बड़े धुरंधर भी नहीं कर पाते हैं। समाधानकारक और सकारात्मक सोच की मदद से ही उन्होंने दैनिक भास्कर को मध्यप्रदेश से निकालकर देशभर में जमाया और बड़ा नाम बनाया। यह कोई आसान काम नहीं था। स्थितियों और लोगों को पहचानने की उनकी क्षमता अद्भुत है। हिन्दी मीडिया को उन्होंने कई संपादक और पत्रकार चुनकर-गढक़र दिए हैं। दैनिक भास्कर के संपादक रहे श्रवण गर्ग हिन्दी पत्रकारिता जगत में महज एक चर्चित नाम ही नहीं है बल्कि वे अच्छा और बड़ा काम करने वालों के लिए उदाहरण एवं प्रेरणा पुंज बन गए हैं। हिन्दी पत्रकारिता के बेजोड़ सम्पादक श्रवण गर्ग बाहर से जितने कड़े दिखते हैं, भीतर से उतने ही मुलायम हैं। लिखने-पढऩे के अलावा वे घुम्मकड़ी और फोटोग्राफी के भी शौकीन हैं।
     भारत की आजादी के साल में 14 मई को इंदौर में जन्मे श्रवण गर्ग की प्रारंभिक शिक्षा मिनी मुंबई के नाम से मशहूर इसी शहर में हुई। इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त श्री गर्ग को उनके माता-पिता इंजीनियर बनाना चाहते थे। कलकत्ता में इंजीनियरिंग में उनकी अच्छी-भली सरकारी नौकरी भी लग गई लेकिन हिन्दी मीडिया बांहें पसारे उन्हें बुला रहा था। सरकारी नौकरी छोडक़र वे अपने पसंदीदा क्षेत्र में काम करने चले आए। उन्होंने भारतीय विद्या भवन, दिल्ली से अंग्रेजी में पत्रकारिता का डिप्लोमा हासिल किया और वापस इंदौर लौट आए। नईदुनिया में काम शुरू किया। इसके बाद फ्री प्रेस, एमपी क्रॉनिकल (भोपाल) और कुछ समय इंडियन एक्सप्रेस समूह में भी बिताया। प्रभाष जी के साथ मिलकर दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस समूह का 'प्रजानीति' अखबार निकाला। बाद में यह बंद हो गया। बाद में जब दैनिक भास्कर के साथ जुड़े तो फिर श्रवण गर्ग भास्कर के पर्याय हो गए। एक तरह से दैनिक भास्कर के ब्रांड एम्बेसडर।
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"श्रवण गर्ग साहब संपादक नाम की संस्था के संभवतः आख़िरी वारिस हैं। एक ऐसे संपादक, जो हर हाल में बेहतर नतीज़े के लिए न केवल सिर्फ जूझते हैं, बल्कि अपनी पूरी टीम को झोंके रखते हैं। उनकी सम्पादकीय समझ का ही नतीज़ा है कि कई बड़े अख़बार सिर्फ इस कारण बड़े हो पाए क्यूंकि उनके संपादक श्रवण जी थे।" 
- प्रवीण दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
-  जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख

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