स फल लोग कभी कुर्सी पर बैठकर आराम नहीं कर सकते। उन्हें लगातार काम में व्यस्त रहने में ही आराम मिलता है। जिस उम्र में अधिकतर लोग अपने काम से ही नहीं अपनी जिम्मेदारियों से भी सेवानिवृत्ति ले लेते हैं, 71 वर्षीय विजय सहगल आज भी पत्रकारिता, लेखन और अध्यापन में सक्रिय हैं। उनके उत्साह और ऊर्जा को देखकर युवाओं को भी रश्क हो जाए। भारतीय जीवन मूल्यों और पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को लेकर जीने वाले विजय सहगल का समूचा जीवन प्रखर पत्रकार, संवेदनशील साहित्यकार और प्रेरक मीडिया अध्यापक का अनूठा मिश्रण है।
सुबाथू (हिमाचल प्रदेश) के प्रसिद्ध लेखक, प्रकाशक, समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी प्रेमचंद सहगल के घर 16 जुलाई, 1943 को जन्मे विजय सहगल करीब चार दशक से पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने जालंधर से प्रकाशित वीर प्रताप से बतौर उप-संपादक अपनी पत्रकारिता की सार्थक पारी की शुरुआत की। इसके बाद श्री सहगल ने टाइम्स ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स, धर्मयुग और मुम्बई से प्रकाशित सारिका में काम किया। खबरों पर उनकी पकड़, भाषा की गहरी समझ और कुशल नेतृत्व क्षमता जैसे गुणों के चलते 1978 में दैनिक ट्रिब्यून की स्थापना पर उन्हें सहायक सम्पादक की महती जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्ष 1990-2003 तक बतौर सम्पादक विजय सहगल दैनिक ट्रिब्यून को नई ऊंचाइयां देते रहे। फिलहाल वे दिव्य हिमाचल के राजनीतिक समीक्षक और सलाहकार सम्पादक हैं।
मानवीय और सामाजिक सरोकारों की पूंजी के सहारे विजय सहगल ने हिन्दी पत्रकारिता और साहित्य के सफर में जो मुकाम हासिल किया है, वह कम लोगों को ही नसीब होता है। साहित्य में कहानीकार के तौर पर खास पहचान रखने वाले श्री सहगल का उपन्यास 'बादलों के साए', कहानी संग्रह 'आधा सुख' और यात्रा वृत्तांत 'आस्था की डगर' बेहद चर्चित हैं। भारत में हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास, हिन्दी पत्रकारिता के विविध आयाम, हिन्दी पत्रकारिता - दिशा और दशा जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों के सहलेखक होने के साथ ही उन्होंने हिमाचल में हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव व विकास पर शोधग्रंथ लिखकर अभूतपूर्व योगदान दिया है। वे चंडीगढ़ साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट और इंडियन सोसायटी ऑफ ऑथर्स सहित पत्रकारिता से संबंधित संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। श्री सहगल फोकस हरियाणा, ईटीवी, डे एण्ड नाइट न्यूज और ए-1 तहलका सहित अन्य टीवी चैनल्स पर विभिन्न विषयों पर होने वाले विमर्शों में शामिल रहते हैं।
उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, बुरकिना फासो अर्जेंटीना, घाना, मलेशिया, अमरीका और कनाडा का प्रवास कर चुके विजय सहगल को उनकी उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए मातृश्री पत्रकारिता पुरस्कार, यशपाल साहित्य परिषद सम्मान, उदंत मार्तंड पत्रकारिता पुरस्कार और पंजाब कला साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। श्री सहगल हिन्दी पत्रकारिता के सुनहरे हस्ताक्षरों में से एक हैं।
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"वैचारिक जगत की सभी वैचारिक धाराओं का समन्वय करते हुए वास्तविकता की पत्रकारिता करने वाले पुरोधा श्री विजय सहगल एक अत्यंत सहज एवं सरल व्यक्ति हैं। उनकी प्रकृति में बंधुत्व एवं संवेदनाओं का आनंददायी समिश्रण हर कोई अनुभव करता हैं।"- जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख।
- प्रो. बृजकिशोर कुठियाला, कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यक्तित्व आलेख.