सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

संवेदनशील पत्रकार

 ज ब पत्रकारिता मिशन से हटकर प्रोफेशन हो गई हो तब सिद्धांतों को लेकर काम करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता। आपके पास दो ही विकल्प हैं, या तो आप सिद्धांत चुनिए या फिर पत्रकारिता करिए। हालांकि बीच का रास्ता भी कुछ लोग निकालते हैं लेकिन बीच का रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं होता। हरिमोहन शर्मा एक ऐसा नाम है, जिसने अपने उसूलों की खातिर हिन्दी के शीर्ष अखबार के संपादक पद से उतरने में पलभर की देर न लगाई। सिद्धांतों के लिए अडऩे वाले हरिमोहन शर्मा बेहद सरल, सहज और संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक हैं। सहज बातचीत के दौरान एक समाचार-पत्र के मालिक से उन्होंने पूछा कि आप अखबार क्यों निकालते हैं? मालिक ने जवाब दिया-'मैं सिर्फ पॉवर इंजॉय करने के लिए अखबार निकालता हूं।' मालिक का यह जवाब सुनकर उन्होंने मन ही मन कहा-तुम्हें पॉवर इंजॉय करने के लिए मैं अपनी पत्रकारिता का दुरुपयोग नहीं होने दूंगा।' मूल्यों की पत्रकारिता के हामी हरिमोहन शर्मा ने उसके बाद कभी उस समाचार-पत्र के दफ्तर की सीढिय़ां नहीं चढ़ीं। 
      57 वर्षीय हरिमोहन शर्मा ने 1982 में स्वदेश (ग्वालियर) से पत्रकारिता की शुरुआत की। रिपोर्टर से ब्यूरोचीफ और फिर अलग-अलग राज्यों में कई समाचार-पत्रों के संपादक रहे। दैनिक भास्कर समूह ने हरिमोहन शर्मा की संगठन क्षमताओं को पहचानते हुए वर्ष 2000 में हरियाणा में हिसार एडिशन की लॉन्चिंग की महती जिम्मेदारी उनके मजबूत कंधों पर डाली। उन्होंने ग्वालियर, भोपाल, पानीपत, चण्डीगढ़, उदयपुर और जयपुर में दैनिक भास्कर को मजबूत किया। दैनिक भास्कर समूह के श्रेष्ठ और मजबूत संपादकों में हरिमोहन शर्मा की गिनती होती रही। वर्ष 2009 में मध्यप्रदेश में पीपुल्स समाचार-पत्र दस्तक दे रहा था। ग्वालियर में समाचार-पत्र को एक सशक्त नेतृत्व की जरूरत थी। हरिमोहन शर्मा के नाम पर पीपुल्स की खोज खत्म हुई। ग्वालियर में श्री शर्मा ने शानदार अंदाज में पीपुल्स को लॉन्च कराया। राज एक्सप्रेस समूह को भी उन्होंने अपनी सेवाएं दीं लेकिन इस ग्रुप के साथ ज्यादा दिन तक पटरी नहीं बैठी। 
      ओजपूर्ण वाणी के धनी हरिमोहन शर्मा के पास संवेदनशीलता की सबसे बड़ी पूंजी है। 'भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें मानवता से प्यार नहीं।' उक्त पंक्तियां श्री शर्मा ने अपने जीवन में उतार रखी हैं। जब वे रिपोर्टर थे तब भाजपा की ओर से आयोजित भारतबंद को कवरेज करने के लिए गए थे। वहां उन्होंने देखा कि तीन-चार पुलिसकर्मी एक युवक को सड़क पर पटककर पीट रहे थे। हरिमोहन जी से यह देखा नहीं गया और वे उसे बचाने के लिए पहुंचे। पुलिसकर्मियों ने श्री शर्मा को आंदोलनकारी समझकर पकड़ लिया और तीन दिन तक थाने में बंद रखा। सकारात्मक ऊर्जा के संचारक हरिमोहन शर्मा कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति में सक्रीय रहे। उच्च शिक्षा और छात्रों से जुड़े मुद्दों की लड़ाई में पांच-छह दफे उन्हें जेल जाना पड़ा। उनकी अद्भुत विशेषता है, जो भी एक बार उनसे मिलता है, उनका हो जाता है। 
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"हरिमोहन जी बेहद संवेदनशील हैं। अपने से जुड़े हर व्यक्ति की चिंता करते हैं, चाहे वह ऑफिस बॉय ही क्यों न हो। एक खास बात का जिक्र करना जरूरी होगा, वे जहां भी गए, वहां पत्रकारों के लिए लाइब्रेरी जरूर बनवाई। पत्रकार अध्ययनशील बने रहे, इस पर उनका खास जोर रहता था।"
- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ फोटो पत्रकार 

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