रविवार, 19 फ़रवरी 2012

मैंने भारत को करीब से देखा है



मैंने भारत को करीब से देखा है
बहुत करीब से देखा है.
रोटी के लिए बिलखते भी देखा है
किन्तु स्वाभिमान के साथ जीते देखा है
मानवता उसकी रग-रग में है
स्वयं कष्ट में होते हुए भी दूसरों के ज़ख्मों को सीते देखा है, दर्द समेटते देखा है।

विश्व मार्गदर्शक के रूप में स्वर्णिम इतिहास देखा है
तो संघर्षमय, पीड़ा, वेदना से भरा पृष्ठ भी देखा है
पाश्चात्य संस्कृति के दलदल में फंसा ही सही
किन्तु अब इससे उभरता हुआ अपनी जड़ों में लौटते देखा है, परम वैभव कि ओर बढ़ते देखा है। 

शस्य-श्यामल भाल आतंक में लहू-लुहान देखा है
आँचल में भी अलगाव का दर्द देखा है
भाषा-जाति-धर्म को लेकर लड़ते ही सही
किन्तु राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए
साथ-साथ चलते देखा है, राष्ट्र चेतना का नव सृजन करते देखा है। 

शान्ति उपवन का निर्माण करते देखा है 
विश्व कल्याणी कार्य में संलग्न देखा है 
पंचशील के सिद्धांत का संस्थापक ही सही 
किन्तु स्व-अस्तित्व पर उठे संकट कोई 
तो सिंह से दहाड़ते देखा है, शत्रु का मर्दन करते देखा है। 

आतंक, नक्सलवाद से जूझते देखा है 
स्वसंतान के कारण उठे प्रश्नों में उलझते देखा है 
फिर भी हर क्षण उसकी आँखों में चमक 
समर्थ विश्वगुरु बनने का 
सशक्त स्वप्न देखा है, प्रशस्त कर्मपथ देखा है।
---
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)



27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर. भारत तब भी था जब कोइ अन्य राष्ट्र नहीं था. भविष्य उज्जवल है! शुभकामनाएं!

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  2. वाह!!!!!लोकेन्द्र जी बेहतरीन भावपूर्ण बहुत अच्छी प्रस्तुति,... सुंदर रचना.
    पोस्ट पर आने के लिए आभार ,....

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  3. आपकी छिपी प्रतिभाएं एक-एक कर हमारे सामने आ रही हैं.. लोकेन्द्र जी! यह कविता पढकर सिर झुक जाता है!!

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    1. आदरणीय सलिल जी आपका आभार। आप मुझसे बड़े हैं उम्र में भी, अनुभव में भी और योग्यता में भी इसलिए सिर तो मुझे ही झुकाने दीजिए। आपका तो स्नेह मिलता रहे बस। आदरणीय सलिल जी आपका आभार। आप मुझसे बड़े हैं उम्र में भी, अनुभव में भी और योग्यता में भी इसलिए सिर तो मुझे ही झुकाने दीजिए। आपका तो स्नेह मिलता रहे बस। आपको कविता पसंद आई मेरा सीना तो खूब चौड़ा हो गया... मेरी यह कविता हमेशा मेरी इज्जत रख लेती है... हम अपने शहर में गणेश शंकर विद्यार्थी मंच के तत्वावधान में पत्रिकारिता के लिए कई आयोजन करने रहते थे। एक कार्यक्रम हमन लम्बा रखा जिसमें एक शाम कवियों के नाम भी थी। इसमें शहर और देश के नामी कवि उपस्थित हुए। हमारे शिक्षकों ने मंच से जुड़े विद्यार्थियों को भी मौका दिया। विद्यार्थियों का जब नंबर आया तो शुरुआत में ही एक साथी ने कविता के नाम पर कुछ तो भी सुना दिया। शिक्षक अब किसी और को बुलाने के मूड़ में नहीं थे, लेकिन हम तय कर चुके थे कुछ तो सुनाएंगे। उस समय यह कविता सुनाई थी खूब तारीफ मिली थी। परसों डायरी पलट रहा था तो फिर से पढ़ी और आप सबके समझ ब्लॉग पर प्रस्तुत कर दी। वैसे सच तो यह है काव्य की बहुत गहरी समझ तो नहीं है मुझे।

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    2. लोकेंद्र जी!
      उम्र, अनुभव और योग्यता की बात व्यर्थ है.. काव्य और साहित्य की समझ तो मुझे भी नहीं.. विज्ञान का विद्यार्थी रहा, आर्थिक संस्थान में कार्यरत हूँ.. साहित्य से दूर का नाता भी नहीं.. लेकिन इतना है कि जो बात दिल से कही जाए वही कविता है मेरे लिए.. आपकी अभिव्यक्ति मौलिक है और उसका सम्मान करना ही चाहिए!!
      आपने जो सम्मान मुझे दिया उसके योग्य बनने की चेष्टा करूँगा!!

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  4. bhut sundar yahi to rashtraprem hae .dhanyavad aapkne mere blog par aakar mera uttsahvardhan kiya sdaev svagat hae aabhar.

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  5. vaah aapne apne utkrasth shabdon se bharat ka itihaas hi likh diya.bahut achcha laga padhkar.

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  6. फिर भी हर क्षण उसकी आँखों में चमक
    समर्थ विश्वगुरु बनने का
    सशक्त स्वप्न देखा है, प्रशस्त कर्मपथ देखा है

    भारत की सच्ची झलक तो इन्हीं पंक्तियों में है।
    बहुत ही अच्छी रचना।

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  7. बहुत सुन्दर लिखा है आपने....भारत की तस्वीर

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  8. लक्ष्य स्पष्ट हो, इरादों में दम और नेकनीयत हो तो हर सपना पूरा होगा।

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  9. और इन तमाम विविधताओं में भी तुम अकेली यह सब संभाल रही हो तभी तुम्हे अनेकता में एकता की मूरत कहा जाता है ! कविता के जरिये भावों को अच्छी अभिव्यक्ति दी आपने !

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  10. काश ये परम वैन्हाव दुबारा आये ...

    तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें ...

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  11. भारत माता की पीड़ा की व्याख्या के साथ साथ स्वाभिमान की भी अनुपम व्याख्या के लिए बधाई। बहुत प्रेरनादायी रचना ... भारत माता की जय ! वन्दे मातरम् !

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  12. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... ।

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  13. बहुत ही उम्दा रचना है ,आप की रचना पढ़ कर लगता है आप ने सच में भारत को करीब से देखा है

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  14. हरी अभिव्यक्ति..... सच में हमारे देश की अंतरात्मा कथा व्यथा है पंक्तियों में ..... बहुत उम्दा

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  15. बहुत ही inspire करती हुई रचना, और कई नए शब्द भी मिले सीखने को.

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  16. लोकेन्द्र जी,आपका समर्थक बन गया हूँ,आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,....बहुत

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  17. किन्तु अब इससे उभरता हुआ अपनी जड़ों में लौटते देखा है,...

    शुभ संकेत और प्रशंसनीय रचना

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  18. सम्पूर्ण भारत का दर्शन है आपकी रचना में...
    सुन्दर सृजन...
    सादर.

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  19. सुन्दर प्रभावपूर्ण प्रस्तुति

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