आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थल भेजने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद कुछ लोगों का श्वान प्रेम अचानक से जाग गया है। जरा सोचिए, इन लोगों का यह प्रेम / चिंता / संवेदना गाय के प्रति क्यों नहीं जागती... अपितु गो-संरक्षण के मुद्दे पर इनके तर्क ठीक उलट होते हैं। गाय के प्रति इनकी सोच इतनी निर्दयी है कि ये लोग गाय को कसाई के हाथों काटे जाने के पक्षधर दिखाई पड़ते हैं। इनके लोग स्वयं भी गाय काटकर सड़क/चौराहों पर उसके रक्त/मांस भक्षण का उत्सव मनाते हैं।
आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थल में भेजने के निर्णय का विरोध करने जो 'डॉग लवर्स' सोशल मीडिया/सड़कों पर मोमबत्ती लेकर उतरे हैं, उनमें से कई लोग कई जीवों का भक्षण बहुत स्वाद से करते होंगे। जब ये लोग बोटी/हड्डी को चटकारे लेकर चबाते हैं तब क्या इनके भीतर से आवाज नहीं आती कि अपने स्वाद के लिए किसी के प्राण ही ले लिए? यहां तो कुत्तों को मारा नहीं जा रहा है, उन्हें केवल सड़क से शेल्टर में शिफ्ट किया जा रहा है। कभी सोचा है कि आप लोग तो अपनी जीभ के स्वाद के लिए कितने की बकरों/मुर्गों की हत्या के कारण बन चुके हो?
स्मरण रखें कि हिन्दू संस्कृति में सभी जीवों के प्रति दया भाव है। श्वान के प्रति भी कृतज्ञ भाव प्रकट रूप में दिखाई देता है, जब हम पहली रोटी गाय और आखिरी रोटी श्वान के लिए निकालते हैं।
चूंकि, समय के साथ सामाजिक परिवर्तन आये हैं, जिसके कारण कहीं न कहीं जीवों के संरक्षण में समाज की भूमिका कम हो गयी है। भूख और बीमारी के कारण आज श्वान हिंसक हो रहे हैं। ये हिंसक श्वान बच्चों, महिलाओं और वृद्धों सहित अन्य लोगों पर हमला करते हैं। कुत्तों के हमलों में कई लोगों की जान भी गई है। इसलिए आज यह चिंता का विषय बना और सर्वोच्च न्यायालय को इस संबंध में निर्णय देना पड़ा है।
लोकसभा के पटल पर रखी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2018 से 2023 के बीच 2 करोड़ 77 लाख से अधिक लोगों को कुत्तों ने अपना शिकार बनाया है। उल्लेखनीय है कि पशुपालन राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने 22 जुलाई को लोकसभा में बताया था कि 2024 में देश में 37 लाख से ज्यादा ‘डॉग बाइट्स’ के मामले आए। ऐसा एक भी राज्य नहीं है, जहाँ कुत्तों के काटने के मामले सामने नहीं आ रहे हों। पूरे देश में प्रतिदिन औसतन 10 हजार लोग कुत्तों का शिकार बन रहे हैं। इनमें से कई लोगों की रेबीज से मौत भी हो रही है। जो चाहते हैं कि कुत्ते सड़कों पर यूँ ही घूमते रहें, उन्हें कुत्तों द्वारा नोंचे गए बच्चों की तस्वीरें देखनी चाहिए। संभवत: यही कारण रहा होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इसे गंभीर और चिंताजनक बताया है।
अतार्किक कुत्ता प्रेमियों से सर्वोच्च न्यायालय ने तीखे सवाल पूछे हैं- क्या तथाकथित पशु प्रेमी उन सभी बच्चों को वापस ला पाएंगे जो रैबीज के शिकार हो गए हैं? क्या वे उन बच्चों को फिर से जीवन दे पाएंगे? जब भी किसी रहवासी क्षेत्र में कुत्तों का आतंक बढ़ता है और नगर निगम उन्हें पकड़ने आता है, तब कुत्ता प्रेमी विवाद खड़ा करते हैं। सवोच्च न्यायालय के आदेश का पालने करने के क्रम में यह फिर से होगा, इसका अंदेशा न्यायालय को है। इसलिए न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि आवारा कुत्तों को आश्रय स्थल पर भेजने के काम में बाधा डालने वाले व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। कोई व्यक्ति या संगठन बाधा बना तो अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का क्रियान्वयन करते समय यह अवश्य ही ध्यान रखा जाना चाहिए कि आश्रय स्थल में आवारा श्वानों को भेजते समय उनका समुचित ध्यान रखा जाए। मूक प्राणी के जीवन का सम्मान हो।
पुनश्च, समाज को यह अवश्य सोचना चाहिए कि आज जो श्वानों के विषय में इतने अधिक अधीर और संवेदनशील दिखने की कोशिश कर रहे हैं, वे गो-संरक्षण के मुद्दे पर चुप क्यों रहते हैं? अपितु, वे ‘गो-हत्या’ के पक्षधर ही अधिक दिखाई देते हैं।