बुधवार, 27 जून 2018

खूंटी सामूहिक बलात्कार के पीछे चर्च और नक्सलियों का खतरनाक गठजोड़

- लोकेन्द्र सिंह
झारखंड के खूंटी जिले में पाँच महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं से सामूहिक बलात्कार और पुरुष कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट एवं उन्हें पेशाब पिलाने का अत्यंत घृणित कृत्य सामने आया है। यह बहुत दु:खद और डरावनी घटना है। पीडि़त महिलाएं एवं पुरुष अनुसूचित जाति-जनजाति समाज से हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों के साथ होने वाली मारपीट की घटनाओं एवं उनके शोषण पर जिस प्रकार आवाजें बुलंद होती हैं, उनसे एक उम्मीद जागती है कि वर्षों से शोषित इस समाज हो ताकत देने के लिए देशभर में एक वातावरण बन रहा है। सभी वर्गों के लोग पीडि़तों के साथ खड़े हैं। ऐसी स्थिति में खूंटी गैंगरेप और शोषण के मामले पर पसरा सन्नाटा खतरनाक लगता है। यह डराता है। देश का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग और टीआरपी के लिए भूखे बैठे समाचार चैनल्स भी एक अजब-सी चुप्पी साधे हुए हैं। मानो हमारी संवेदनाओं पर भी अब राजनीति हावी हो गई है। अपराधी का धर्म देखकर अब विरोध के सुर का स्तर तय होता है। चूँकि इसमें शोषणकर्ता/आरोपी के वस्त्रों का रंग गेरुआ नहीं है, इसलिए रंगकर्मी भी 'शर्मिंदगी का बोर्ड' थाम कर फोटोसेशन नहीं करा रहे हैं। जबकि पाँचों लड़कियां और उनके साथी लड़के उनके कर्मक्षेत्र से ही आते हैं। पीडि़त रंगकर्मी हैं और वनवासी समाज को जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक करते हैं। कथित प्रबुद्ध वर्ग की यह प्रवृत्ति सभ्य समाज के लिए दु:खद ही नहीं, अपितु खतरनाक ही है। चूँकि इस अपराध में प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के प्रिय कम्युनिस्ट-नक्सली और चर्च शामिल है, इसलिए वह अपना मुंह नहीं खोल पा रहे हैं। त्रिशूल को कॉन्डम पहनाने जैसी सृजनशीलता भी नहीं दिखा पा रहे हैं। यह घटना खतरनाक इसलिए भी है, क्योंकि इसके पीछे जो विचार है, वह बहुत ही वहशी है। अपने विरोधी को डराने और उसे चुप कराने के लिए लोग मारपीट करते हैं, धमकाते हैं, अधिकतम उसकी हत्या कर देते हैं। किंतु, यहाँ अपने विरोधियों को डराने/चुप कराने के लिए उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है। यानी लड़कियों के शरीर की नहीं, बल्कि उनकी आत्मा की हत्या करने का दुस्साहस किया गया है। विचार प्रक्रिया के सबसे निचले स्तर पर जाकर ही अपने विरोधी के प्रति ऐसा बर्ताब करने का ख्याल आता है। इस अपराध का मुख्य आरोपी उग्रवादी संगठन पीएलएफआई का नेता एवं पत्थलगड़ी का समर्थक जॉर्ज जोनास किडो है और मुख्य सहयोगी आरसी मिशन चर्च द्वारा कोचांग में संचालित स्टॉपमन मेमोरियल मिडिल स्कूल के प्रभारी सह सचिव फादर अल्फोंस आइंद को बताया जा रहा है। पीडि़तों की शिकायत पर इनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई है। 
          खूंटी गैंगरेप काण्ड ने चर्च और नक्सलियों के देशविरोधी गठजोड़ को बेनकाब कर दिया है। बहुत समय से यह कहा जा रहा है कि वनवासी क्षेत्रों में चर्च धर्मांतरण के लिए नक्सलियों और अपराधियों से मिला हुआ है। नक्सली और चर्च इन क्षेत्रों में एक-दूसरे की मदद करते हैं। धर्मांतरण और मानव तस्करी के गोरखधंधे में चर्च और नक्सली बराबर से सम्मिलित हैं। दोनों मिलकर वनवासियों को विभिन्न प्रकार के उपक्रमों से बरगलाते हैं और उनके मन में देश के विरुद्ध जहर बोने का काम करते हैं। पिछले दिनों से पत्थलगड़ी की खूब चर्चा है। आंतरिक सुरक्षा एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि पत्थलगड़ी आंदोलन की आड़ में नक्सली वनवासियों को चुनी हुई केंद्र और राज्य सरकार के विरुद्ध भड़का रहे हैं। वहीं, ईसाई मिशनरीज उन्हें हिंदू धर्म से दूर कर चर्च की ओर धकेल रहे हैं। चर्च पत्थलगड़ी की आड़ में धर्मांतरण का अपना मकसद पूरा कर रहा है। 
          नाट्य मंडली के कार्यकर्ताओं के साथ दुष्कर्म अनायस नहीं है। जिस रिपोर्ट का जिक्र ऊपर किया गया है, उसके मुताबिक झारखंड के खूंटी जिले में ही पत्थलगड़ी की घटनाएं सबसे अधिक हुई हैं। उसके पीछे उन्होंने अफीम की खेती को भी प्रमुख कारण बताया है। खूंटी जिले में अफीम की खेती होती है। यहाँ नक्सली और अन्य अपराधी अफीम की तस्करी में शामिल हैं। पुलिस को दूर रखने के लिए यह लोग गाँव-गाँव पत्थलगड़ी के जरिये पुलिस प्रशासन को गाँव में प्रवेश से रोक रहे हैं। इस स्थिति में वनवासी क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्ताओं की सक्रियता धर्मांतरण, मानव एवं अफीम तस्करी के गोरखधंधे में शामिल लोगों को खटकती है। यह कहना अधिक उचित होगा कि वनवासी समाज को जागरूक कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता इस आपराधिक गठजोड़ के गोरखधंधे में बाधा बन रहे हैं। पीडि़त लड़कियों और लड़कों का समूह पत्थलगड़ी और मानव तस्करी के विरुद्ध खूंटी जिले में जन जागरण के लिए नुक्कड़ नाटक कर रहा था। उनके नुक्कड़ नाटकों का प्रभाव भी दिखाई दे रहा था। भोले-भाले वनवासियों के बीच पत्थलगड़ी की आड़ में चल रहे चर्च और नक्सलियों के गोरखधंधे से पर्दा उठने लगा था। इसलिए इन युवा रंगकर्मियों को सबक सिखाने के लिए सामूहिक बलात्कार के कुकृत्य को चर्च एवं नक्सलियों के गठजोड़ ने अंजाम दिया है। पुलिस को दर्ज कराए पीडि़तों के बयान के अनुसार नुक्कड़ नाटक के बहाने उन्हें कार में बैठा कर जंगल ले जाया गया और वहाँ पाँच लड़कियों के साथ हथियारबंद युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। साथी लड़कों को बांध कर उनकी पिटाई लगाई और उन्हें पेशाब पीने को मजबूर किया गया। यह सब करने के बाद अपराधियों ने कहा- 'तुम लोग पत्थलगड़ी का पर्चा बांटते हो और दीकू भाषा वालों की मदद कर रही हो। पुलिस की एजेंट हो। तुम लोगों को सबक सिखाना जरूरी है। अब कोई संस्था पुलिस प्रशासन का एजेंट बन कर प्रचार नहीं करेगी, नहीं तो इससे भी भयानक अंजाम होगा।' 
          खूंटी सामूहिक दुष्कर्म के मामले में आरसी मिशन चर्च के फादर अल्फोंस आइंद की भूमिका भी संदिग्ध है। वह अपराध के साजिशकर्ता और अपराधियों के संरक्षक के तौर पर नजर आ रहे हैं। पीडि़तों ने भी अपनी शिकायत में अल्फोंस को दुष्कर्म के पाँचों आरोपियों का सहयोगी बताया है। युवती ने अपने बयान में यहाँ तक कहा है कि चर्च के फादर अल्फोंस ने षड्यंत्र के तहत स्थानीय अपराधियों ने मिल कर लड़कियों का अपहरण कर गाली-गलौज और रेप की घटना को अंजाम दिलवाया है। पीडि़तों के कथन को पुष्टि इस बात से भी मिलती है कि जब यह लोग वापस लौटे तब फादर अल्फोंस ने पुलिस में शिकायत और अस्पताल में इलाज कराने की जगह पीडि़तों को धमकाने-डराने की भाषा में समझाने का प्रयास किया। अल्फोंस ने पीडि़तों से कहा- 'इसकी सूचना कहीं नहीं देना, नहीं तो तुम्हारे मां-बाप का मर्डर हो जाएगा। तुम्हारा परिवार खतरे में पड़ जाएगा।' अल्फोंस इसलिए भी संदिग्ध है कि जब नाट्य मंडली को जब नुक्कड़ नाटक के लिए ले जाया जा रहा था, तब उन्होंने अपने चर्च की सिस्टर को उनके साथ जाने से रोक लिया था। मंडली की लड़कियों के आग्रह के बाद भी अल्फोंस ने सिस्टर को उनके साथ नहीं भेजा। 
          यह मामला बहुत गंभीर है। पीडि़त लड़कियों और लड़कों को तो न्याय मिलना ही चाहिए। इसके साथ ही राज्य और केंद्र सरकार को गंभीरता से चर्च-नक्सल गठजोड़ की जाँच करानी चाहिए। वनवासी इलाकों में चल रही संदिग्ध गतिविधियों की पहचान कर उन्हें रोकने के यथासंभव प्रयास करने चाहिए। पत्थलगड़ी आंदोलन ऐसा ही संदिग्ध कार्यक्रम है। पत्थलगड़ी के सहारे वनवासी क्षेत्रों में देशविरोधी तत्व अपनी समानांतर सत्ताएं खड़ी करने का प्रयास कर रहे हैं। यहाँ तक कि वह अपना बैंक भी स्थापित करने में सफल हो गए हैं। यह लोग कई गाँवों एवं क्षेत्रों में सरकारी एवं अन्य बाहरी लोगों का प्रवेश पूर्णत: प्रतिबंधित करने में भी लगभग सफल हो गए हैं। विदेशी सहायता प्राप्त यह लोग भोले-भाले आदिवासियों के मन में यह बात बैठाने में सफल हो रहे हैं कि चुनी हुई सरकारें उनकी नहीं हैं। उनके प्रभाव में आकर वनवासी लोग अपने गाँव में बाहरी लोगों को घुसने नहीं दे रहे हैं। वहाँ दीवारों पर लिखे सरकार विज्ञापन मिटा रहे हैं, जो उनके लिए ही थे। सरकारी व्यवस्थाओं एवं सुविधाओं का बहिष्कार प्रारंभ हो गया है। भारत की आंतरिक सुरक्षा एवं अखण्डता के लिए खतरनाक होती जा रही इन्हीं स्थितियों को भांप कर पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पत्थलगड़ी आंदोलन के विघटनकारी स्वरूप की ओर सरकार और समाज का ध्यानाकर्षित कराया था। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने सरकारों को पत्थलगड़ी की घटनाओं पर चेताने का प्रयास किया है। खूंटी गैंगरेप से यह बात सामने आ गई है कि चर्च और नक्सली वनवासियों को मुख्यधारा से अलग कर उन्हें देश के विरुद्ध भड़का रहे हैं, तब बिना देरी किए राज्य और केंद्र सरकार को स्थानीय प्रभावशाली लोगों की मदद से वनवासी क्षेत्रों में संवाद बढ़ाना चाहिए। यदि सरकार अभी सक्रिय नहीं हुई तो बहुत देर हो जाएगी। जिस तरह से कथित 'पत्थलगड़ी' की आड़ में वनवासी समाज में जहर बोने का काम किया जा रहा है, उसकी काट बाद में ढूंढऩा कठिन हो जाएगा। इंडिया ब्रेकिंग ब्रिगेड झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन से मिल रही सफलता के बाद छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात में भी इस षड्यंत्र को ले जा रही है। चर्च और नक्सलियों के षड्यंत्र में वनवासी समाज की परंपरा 'पत्थलगड़ी' बदनाम हो रही है। परंपरा को कलंकित होने से बचाना भी आवश्यक है।

सुबह सवेरे समाचार पत्र में प्रकाशित आलेख

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दूषित मानसिकता है वामपंथियो की . और क्या कहें वे विरोध हो या समर्थन ..दलगत दृष्टि से करते हैं . ऐसे भीषण शर्मनाक काण्ड भी इसीलिए तमाशा बनकर रह जाते हैं .अच्छा आलेख .

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  2. सर आपकी लेखन शैली इतनी ज़बरदस्त है की गोते लगाकर बस डूबे रहकर रम जाने का दिल करता है।।आज पहली बार मैं आपके ब्लॉग को पढ़ा हूँ और पहली बार में ही कुछ ऐसा असर किया की शब्दसह हर लेख को पढ़ने का मन बन गया।।बेहतरीन।शानदार।ज़बरदस्त।ज़िंदाबाद।

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