सोमवार, 30 जुलाई 2018

सेकुलर-लिबरल साहित्यकारों की असहिष्णुता को उजागर करती एक पुस्तक ‘हम असहिष्णु लोग’


- विनय कुशवाहा 
“आप तो मां सरस्वती के पुत्र हो, तर्क के आधार पर सरकार को कठघरे में खड़े कीजिए। वरना समाज तो यही कहेगा कि आप साहित्य को राजनीति में घसीट रहे हैं।“ इन्हीं तथ्यपरक बातों के साथ देश में फैली अराजकता पर कटाक्ष करती एक पुस्तक 'हम असहिष्णु लोग'। अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक लोकेन्द्र सिंह ने लिखी है। यह पुस्तक असहिष्णुता के नाम पर देश में हो रहे कथित आंदोलनों और मुहिमों की ईमानदारी से पड़ताल करती है और उनके दूसरे पक्ष को उजागर करती है। लेखक ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने लेखों के संग्रह को एक पुस्तक की शक्ल दी है।
              पुस्तक का शीर्षक एक कौतुहल जगाता है। किन्तु, जब हम प्रारम्भ में ही लेखक के मन की बात और पुस्तक की पृष्ठ भूमि पढ़ते हैं तो यह भली प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि पुस्तक का शीर्षक ‘हम असहिष्णु लोग' क्यों रखा गया है? इस शीर्षक के माध्यम से ही लेखक ने बताया है कि कुछ लोग स्वयं अराजकता फैला रहे हैं, भोली-भाली जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं और अव्यवस्था का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ रहे हैं। यह पुस्तक उन अनैतिक गतिविधियों को कठघरे में खड़ा करती है, जो पिछले कुछ समय से कुछ विशेष घटनाओं को आधार बनाकर की जा रही हैं। अवॉर्ड वापसी,  एक ऐसी ही गतिविधि थी, जिसमें साहित्यकारों और कलाकारों ने एक घटना को आधार बनाकर अपने अवॉर्ड वापस करने की होड़ प्रारम्भ कर दी थी। लेखक ने साहित्यकारों और कलाकारों के इस समूह को ‘अवॉर्ड वापसी गैंग’ की संज्ञा दी है। सच ही है कि यह एक गैंग है, जिसने असहिष्णुता के नाम पर अवॉर्ड वापसी की मुहिम चलाकर एक तरह से देश की छवि को चोट पहुंचाई। 
           पुस्तक में असहिष्णुता के मुद्दे पर देश भर में फैलाई जा रही भ्रांतियों के बारे में लिखा गया है कि कैसे एक अभिनेता अपनी पत्नी के कथित भय को देश के सामने रख कर यह बताने का प्रयास करता है कि भारत में डर का माहौल है। भारत में रहने लायक स्थितियां नहीं बची हैं। यदि ऐसा ही माहौल रहा तो हमें देश छोड़ना होगा। जबकि समूचा देश जानता है जहाँ दुनिया में कत्लोगारत का माहौल है, वहीँ भारत में सब मिल-जुलकर रह रहे हैं। शांति और सहिष्णुता के देश को इस प्रकार बदनाम करना, एक साजिश ही तो है। पुस्तक में गौहत्या और गौमांस के मुद्दे पर हिन्दुओं को चिढ़ाने और गौरक्षा जैसे पवित्र कार्य को बदनाम करने वालों की भी जमकर खबर ली है। इस सम्बन्ध में लेखक ने न्यायालयों के निर्णय से लेकर मुग़ल बादशाहों के अभिमत को भी प्रस्तुत किया है, जिनमें गौरक्षा के महत्व को समझाया गया है। केरल जैसे राज्य, जहां साक्षतरता दर सर्वाधिक है वहां सार्वजनिक स्थलों पर आयोजित बीफ पार्टी के मंतव्य पर उन्होंने उचित ही टिप्पणी की है। 
          ‘हम असहिष्णु लोग’ शिक्षा परिसरों में चल रही देश विरोधी गतिविधियों पर भी विमर्श करती है। जेएनयू से लेकर जाधवपुर यूनिवर्सिटी की घटनाओं को सिलसिलेवार ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है। इस क्रम में प्रस्तुत लेखों को पढ़कर पाठक स्वयं ही समझ सकते हैं कि कैसे कम्युनिस्ट विचारधारा भारत में अलगाव के बीज बो रही है, कैसे इस विचारधारा से जुड़े लोग शिक्षा परिसरों में विषवमन कर रहे हैं। विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय आस्था की केन्द्र भारतमाता और हिन्दु धर्म की बेइज्जती के मामले में भी लेखक ने बड़ी सटीकता के साथ लिखा है। अफजल गुरु और याकूब मेनन को महिमामंडित करके उनके पक्ष में नारे लगाकर देश की न्यायव्यवस्था को हत्यारी बताने वाले लोगों को भी कठघरे में खड़ा किया गया है।
          ‘हम असहिष्णु लोग’ एक ऐसी पुस्तक है, जो 2014 के बाद से देश में अराजकता फ़ैलाने के जितने भी प्रयास हुए, उनकी पड़ताल करती है। यह एक दस्तावेज है, जिसके माध्यम से हम समझ सकते हैं कि कैसे देश का कथित सेकुलर-लिबरल बुद्धिजीवी वर्ग समाज में संघर्ष उत्पन्न करता है। अपनी इस वैचारिक स्वार्थ की पूर्ति में यह वर्ग देश की प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकता। देश को बांटने का काम कर रहीं ताकतों को पुस्तक में तर्क और तथ्य के साथ देश के सामने प्रस्तुत किया गया है। 
(लेखक एबीपी न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं,  ट्रेवलर और ब्लॉगर भी हैं।)


स्वदेश भोपाल में 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित 

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