सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस का अलगाववादी सुर

 कांग्रेस  के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने जम्मू-कश्मीर पर भारत विरोधी टिप्पणी करके अपनी पार्टी को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है। जम्मू-कश्मीर पर चिदंबरम का बयान अलगाववादियों और पाकिस्तानियों की बयानबाजी की श्रेणी का है। यदि चिदंबरम का नाम छिपा कर किसी से भी यह पूछा जाए कि जम्मू-कश्मीर की आजादी का नारा कौन लगाता है, तब निश्चित ही उत्तर में अलगाववादियों और पाकिस्तानी नेताओं का नाम ही आएंगे। प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का नाम भी अनेक लोग ले सकते हैं। कांग्रेस के शीर्ष श्रेणी के नेता पी. चिदंबरम ने बीते शनिवार को कहा था कि जब कश्मीरी कहें आजादी तो समझिए स्वायत्तता। उन्होंने कहा कि 'कश्मीर घाटी में अनुच्छेद 370 का अक्षरश: सम्मान करने की मांग की जाती है। इसका मतलब है कि वो अधिक स्वायत्तता चाहते हैं। चिदंबरम का यह बयान भारतीय हित को नुकसान पहुँचाता है।
          बात होनी चाहिए कि एक भारत में सब राज्यों के लिए एक नीति किस प्रकार तय की जाए? अलगाव के बीज किस प्रकार समाप्त किए जाएं? विभेद की रेखा कैसे मिटाई जाए? कांग्रेस के पास 70 वर्ष का समय था, परंतु वह कश्मीर समस्या का समाधान नहीं दे सकी। अपितु, उसके शासनकाल में जम्मू-कश्मीर की समस्या निरंतर बिगड़ती गई है। यूँ तो देश मानता है कि जम्मू-कश्मीर की समस्या कांग्रेस और पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की ही देन है। अंग्रेज जब भारत छोड़कर गए थे, तब उन्होंने देश को 562 टुकड़ों में बाँट दिया था। पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सूझबूझ और राष्ट्रनीति का पालन करते हुए सभी टुकड़ों को जोड़कर एक भारत का निर्माण किया। किंतु, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के मामले में सरदार पटेल को हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। परिणाम हमारे सामने है। 
          पी. चिदंबरम का बयान जम्मू-कश्मीर के मसले पर कांग्रेस की सोच का प्रतिनिधित्व करता है। भले ही कांग्रेस ने चिदंबरम के बयान से पल्ला झाड़ लिया है, परंतु प्रश्न तो कांग्रेस पर उठेंगे ही। उसका कारण भी है। क्योंकि, जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान तलाशने के लिए 70 वर्ष का समय कम नहीं था। देश को कांग्रेस की सफाई इसलिए भी स्वीकार्य नहीं होगी, क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस की ओर से अलगाववादी विचार सामने आया है। इसी वर्ष जून में कांग्रेस ने मोदी सरकार की आलोचना में 16 पृष्ठों की एक पुस्तिका जारी की थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से को 'इंडियन ऑक्युपाइड कश्मीर' बताया गया था। जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों और पत्थरबाजों के प्रति भी कांग्रेस सहानुभूति रखती है। जब जेएनयू में 'जम्मू-कश्मीर की आजादी और भारत के टुकड़े होने' की मंशा के नारे लगाए जाते हैं, तब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी देशद्रोही नारेबाजों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। पी. चिदंबरम ने भी पहली बार जम्मू-कश्मीर की आजादी की कामना नहीं की है, वह पहले भी जुलाई-2016 में जम्मू-कश्मीर की आजादी की बात कह चुके हैं। चूंकि प्रारंभ से ही कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के जम्मू-कश्मीर पर अलगाववादी सुर हैं, इसलिए 70 वर्ष में कोई स्थायी समाधान नहीं आया। इसी अलगाववादी सोच का नुकसान जम्मू-कश्मीर और देश की जनता उठा रही है।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-11-2017) को
    गुज़रे थे मेरे दिन भी कुछ माँ की इबादत में ...चर्चामंच 2775
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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