शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कहा- 'खून का दलाल'

 कांग्रेस  उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह अपरिपक्व नेता हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उन्होंने बेहद ओछी और निचले स्तर की भाषा का उपयोग किया है। उत्तरप्रदेश के देवरिया से प्रारंभ हुई अपनी किसान यात्रा के दिल्ली में समापन अवसर पर एक सार्थक भाषण प्रस्तुत करने की बजाय राहुल गाँधी कीचड़ उछालने वाली भाषा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहे थे। उन्होंने कहा कि 'जो हमारे जवान हैं, जिन्होंने अपना खून दिया है। जम्मू-कश्मीर में खून दिया है, जिन्होंने हिन्दुस्तान के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किए हैं, उनके खून के पीछे आप (मोदी) छिपे हैं। उनकी आप दलाली कर रहे हो। यह बिल्कुल गलत है।' राहुल गाँधी का यह बयान बेहद शर्मनाक है। यह बयान साबित करता है कि अभी तक राहुल गाँधी सोच-समझकर बोलना नहीं सीख पाए हैं। संभवत: कांग्रेस के प्रवक्ताओं को भी इस बयान का समर्थन करना मुश्किल होगा। देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसी अमर्यादित भाषा का उपयोग शायद ही अब तक किसी ने किया हो।
         चार दिन पहले पाकिस्तान के खिलाफ लक्षित हमला (सर्जिकल स्ट्राइक) करने का निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन करने वाले राहुल गाँधी को अचानक क्या हो गया कि उन्होंने इस तरह का घटिया बयान दे दिया? दरअसल, उन्होंने देखा कि लक्षित हमले का निर्णय लेने के कारण समूचे देश में प्रधानमंत्री मोदी की वाह-वाही हो रही है। भारतीय जनता पार्टी को इसका सीधा लाभ मिल रहा है। संभवत: यह देखकर ही सियासी तौर पर अपरिपक्व राहुल गाँधी बौखला गए। शायद राहुल यह समझने में नाकाम रहे हैं कि जो साहस दिखाता है, उसको श्रेय मिलना स्वाभाविक है। बार-बार आतंकवादी हमलों से आहत देश को गौरव की अनुभूति कराने के लिए प्रधानमंत्री की प्रशंसा क्यों नहीं होनी चाहिए? 
          सन् १९७१ में राहुल गाँधी की दादी इंदिरा गाँधी के साहस को भी देश ने मान दिया था। तब प्रतिपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी समूची पार्टी भाजपा ने इंदिरा गाँधी का समर्थन किया था। भाजपा के किसी नेता ने इंदिरा गाँधी के खिलाफ अमर्यादित टीका-टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन, राहुल गाँधी ने बता दिया कि वह गंभीर नेता नहीं है। अपनी सियासी नासमझी से वह अपनी ही पार्टी के नेता संजय निरूपम के समकक्ष खड़े दिखाई दे रहे हैं। हालाँकि संजय निरूपम के घटिया बयान से कांग्रेस ने पल्ला झाड़ लिया। लेकिन, राहुल गाँधी के बयान से कांग्रेस कैसे किनारा करेगी? कांग्रेस के नेतृत्व में यह साहस भी नहीं है कि गाँधी के बयान को 'निजी बयान' करार दे दे। यह संभव भी नहीं है, क्योंकि राहुल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। किसी भी दृष्टि से कांग्रेस उपाध्यक्ष के बयान को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। 
          राहुल गाँधी ने कहा है कि भारतीय सेना ने अपना काम कर दिया, अब सरकार को अपना काम करना चाहिए। कांग्रेस उपाध्यक्ष यह तो जानते ही होंगे कि भारतीय सेना को लक्षित हमला करने का निर्देश सरकार ने ही दिया था। आतंकवाद का फन कुचलने का साहसी निर्णय लेते समय क्या सरकार अपना काम नहीं कर रही थी? इस साहसी निर्णय को विपक्ष से साझा करते समय क्या सरकार अपना काम नहीं कर रही थी? देश-दुनिया में भारत के प्रति देखने का नजरिया बदलने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने किया है। अब तक भारत को नरम (सॉफ्ट स्टेट) और आतंकवाद से पीडि़त देश के रूप में देखा जाता था। लक्षित हमले की घोषण करके सरकार ने बड़ा काम किया है। इससे देश-दुनिया में संदेश गया है कि भारत अब आतंकवाद सहन नहीं करेगा। 
          लक्षित हमले की घोषणा का महत्त्व और वर्तमान सरकार को मिल रही प्रशंसा देखकर कांग्रेस ने भी बढ़-चढ़ कर यह कहना शुरू कर दिया कि हमारे समय में भी अनेक बार लक्षित हमले किए गए, परन्तु हमने उनको राष्ट्रहित में प्रचारित नहीं किया। कांग्रेस का यह झूठ ज्यादा देर नहीं चल सका। भारतीय सेना के पूर्व डीजीएमओ ले. जनरल विनोद भाटिया ने कांग्रेस के दावे की पोल खोलते हुए कह दिया कि कांग्रेस के कार्यकाल में कोई लक्षित हमला नहीं किया गया। यह पहली बार है जब राजनीतिक इच्छाशक्ति और सुनियोजित तरीके से आतंकवाद और पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारतीय सेना ने लक्षित हिंसा किया है। 
          राहुल गाँधी सहित कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों को यह भी समझना होगा कि लक्षित हमले की घोषण न करना कभी देशहित में रहा होगा, लेकिन मौजूदा परिस्थिति में इसकी घोषणा करना उससे भी अधिक देशहित में था। यह साबित भी हो रहा है। इस लक्षित हमले की गूँज ने देश को एक सशक्त और संप्रभु राष्ट्र के रूप में नई पहचान दी है। भारत के इस कदम के साथ अनेक देश खड़े हो गए हैं। 
          बहरहाल, क्या राहुल गाँधी साबित कर सकते हैं कि नरेन्द्र मोदी जवानों के खून की दलाली कर रहे हैं? कांग्रेस उपाध्यक्ष अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के संबंध में बेखबर रहते हैं, यह उनकी बहुत बड़ी कमजोरी है। उन्होंने शायद पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी का वह बयान देखा/ सुना/ पढ़ा नहीं होगा, जिसमें उन्होंने भाजपा के नेताओं और अपने मंत्रियों को समझाइश दी है कि लक्षित हमले पर बढ़-चढ़ कर बयानबाजी न करें। राहुल गाँधी को कहाँ से यह दिख गया कि नरेन्द्र मोदी जवानों के खून की दलाली कर रहे हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी का अब तक का एक भी बयान ऐसा नहीं आया है, जिससे यह भी साबित होता हो कि उन्होंने या उनकी सरकार ने लक्षित हमले का सीधे श्रेय लिया है। लक्षित हमले की घोषणा भी सरकार ने नहीं बल्कि सेना ने की। भारतीय सेना के डीजीएमओ ने प्रेसवार्ता बुलाकर सबको बताया कि भारत ने अपने शहीद जवानों के खून का बदला ले लिया है। 
          कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के इस बयान से इतना तो तय हो गया कि उन्हें भारतीय समाज और राजनीति को समझने के लिए अभी और वक्त चाहिए। उल्लेखनीय होगा कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ऐसा ही एक घोर आपत्तिजनक बयान राहुल गाँधी की माँ सोनिया गाँधी ने दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने गुजरात चुनाव से पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 'मौत का सौदागर' कह दिया था। सोनिया के इस बयान ने सबसे पहले गुजरात से और फिर देश से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। आज तक यह बयान सोनिया गाँधी का पीछा नहीं छोड़ता। इसी तरह अब लगता है कि 'खून की दलाली' राहुल गाँधी का पीछा करेगी। यह बयान राहुल गाँधी से कहीं अधिक कांग्रेस को नुकसान पहुँचाएगा। भाजपा सहित समूचा देश उनके इस बयान की निंदा कर रहा है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भावी अध्यक्ष राहुल गाँधी से इस प्रकार की अमर्यादित भाषा की अपेक्षा नहीं हैं। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-10-2016) के चर्चा मंच "मातृ-शक्ति की छाँव" (चर्चा अंक-2490) पर भी होगी!
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. भाई इसमें राहुल गान्धी का इतना सा दोष है कि वे 'थ्री ईडियट्स' के 'चतुर' की तरह समझ नही पारहे कि उनका भाषण तैयार करने वाले उन्हें पूरी तरह मिटा देने पर तुले हैं . वे तो बस जो लिखा है उसे बोल देते हैं ( तरस आता है ). सच तो यह है कि राहुल गान्धी इस राह ( राजनीति )के राहगीर हैं ही नही . उन्हें जबरन बलि का बकरा बनाया जा रहा है . उनकी बातें सुनकर यही लगता है कि उनके कथित अपने ही उनकी जड़ें हिलाने में लगे हैं .

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