भारत माँ के 21 लाल, जो माँ की सेवा में बलिदान हो गए, उन्हें प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि। भारत सरकार से आग्रह, साहब कुछ कीजिए इस तरह की घटनाएँ भारतीय जनमानस को तकलीफ दे रही हैं। आखिर कब तक हम अपने जवानों को 'राक्षसों' का शिकार होते रहने देंगे? जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में सेना के जवानों पर आतंकी हमला हमारे लिए खुली चुनौती है। हमारे खिलाफ जंग का सीधा ऐलान। क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? हम जानते हैं कि पिछले दो साल में सेना के हाथ खोले गए हैं। सेना आतंकियों का मुंहतोड़ जवाब दे रही है। अनेक आतंकवादी हमलों को नाकाम किया गया है। इसलिए आतंकवादी संगठन बौखलाकर सीधे सुरक्षा जवानों को निशाना बना रहे हैं। लेकिन, यह भी सच है कि हम अब भी रक्षात्मक नीति अपना रहे हैं। इस नीति में बदलाव जरूरी है। आपको चुना भी बदलाव के लिए है। प्रतिकार करना होगा। 21 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। सरकार को आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का अपना संकल्प न केवल दोहराना होगा, बल्कि उसे धरातल पर उतारना होगा। बहुत बर्दाश्त हुआ। अब आतंकवाद और उसके पोषकों पर खुलकर 'प्रहार हो'।
रविवार को जम्मू-कश्मीर में घात लगाकर किए गए आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तयबा ने ली है। उसके फिदाइन दस्ते ने इस हमले को अंजाम दिया। सेना ने हमला करने वाले चार आतंकियों को मार गिराया है। लेकिन, हमें ध्यान रखना होगा कि वह तो आए ही मरने के लिए थे। इसलिए हमले के बाद उनको जहन्नुम पहुँचाना हमारी उपलब्धि नहीं है। लश्कर और उसका पोषण करने वाले पाकिस्तान पर प्रहार करना हमारी उपलब्धि होगी। सरकार को रणनीति बनानी चाहिए कि कैसे आतंकवाद को उसके घर में घुसकर खत्म किया जाए। अंतरराष्ट्रीय कानून देश की संप्रभुता और भारतीय नागरिकों के जीवन से बढ़कर नहीं हैं। अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र ने भी खुद पर आतंकी हमला होने के बाद आतंकवाद पर उसके घरों में जाकर प्रहार किया है। किसी ने कोई प्रश्न नहीं उठाया। यदि कोई प्रश्न उठाए तो उससे पूछा जाए कि आतंकवाद के खिलाफ हो या उसके साथ हो? इसलिए अब शांति प्रवचन जनता को स्वीकार नहीं। आतंकवाद के खिलाफ खाली ललकार भी स्वीकार नहीं। इजराइल से लेकर अमेरिका तक कोई भी संप्रभु राष्ट्र इस तरह लगातार आघात नहीं झेलता। मानवता के दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए तोपों के मुंह खोलता है। अगर सरकार कोई ठोस कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है तब बता दे या फिर उसको निर्णय करने में कोई संकोच है, तब भी बता दे। सरकार को दुविधा और संकोच छोडऩा होगा।
देश ने 2014 में इरादों पर अटल रहने वाले नेतृत्व को कमान सौंपी थी, ताकि बार-बार मिलने वाले इन जख्मों से निजात पाई जा सके। यह हमारा दुर्भाग्य है कि आतंकवादी जहाँ चाहते हैं वहाँ और जब चाहते हैं तब भारत के शरीर पर वार करते हैं। लेकिन, हम अनेक प्रश्नों पर विचार करते ही रह जाते हैं। मानव लहू के प्यासे इन राक्षसों को सबक सिखाने की नहीं, बल्कि खत्म करने की जरूरत है। आज से विश्व संसद शुरू हो रही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा का ७१वाँ अधिवेशन। इस अधिवेशन में दुनियाभर के लगभग सभी प्रमुख राजनेता और प्रतिनिधि शामिल होंगे। भारत को सबके सामने विश्व संसद में आतंकवाद पर स्पष्ट वैश्विक नीति की माँग करनी चाहिए। अपितु, भारत को उद्घोषणा कर देनी चाहिए कि हम आतंक के खात्मे के लिए किसी भी स्तर तक जाएंगे, जो साथ आना चाहे, उसका स्वागत है।
सार्थक चिंतन एवं विचारणीय आह्वान ! आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ !
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