कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अपनी सियासी जमीन हासिल करने के सारे प्रयत्न कर रही है। इसी रणनीति का हिस्सा हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की 'खाट सभाएँ' और 'देवरिया से दिल्ली की यात्रा'। देवरिया से दिल्ली तक 2500 किलोमीटर की यात्रा में राहुल गांधी 39 जिलों के 55 लोकसभा क्षेत्रों और 233 विधानसभा सीटों से होकर गुजरेंगे। देवरिया जिले के रुद्रपुर के किसानों के साथ पहली खाट सभा से उन्होंने अपनी यह यात्रा प्रारंभ कर दी है। हालांकि, कांग्रेस को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि उसके लिए दिल्ली का रास्ता देवरिया होकर नहीं जाता है। दरअसल, कांग्रेस ने अपना 'होमवर्क' ठीक से नहीं किया है। उसका कारण है कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अपनी स्थिति का ठीक प्रकार से मूल्यांकन नहीं कर रही है। सिर्फ 'इवेंट मैनेजमेंट' से चुनाव नहीं जीता जा सकता, वह मात्र सहायक हो सकता है और यह तभी सहायक हो सकता है, जब आपने अपनी हैसियत का मूल्यांकन करके राजनीतिक प्रबंधन कर लिया हो। यहाँ राहुल गांधी चूक रहे हैं। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश को समझने बिना उन्होंने खाट सभा का आयोजन किया और अपनी खटिया लुटवा दी।
इसमें कोई दोराय नहीं कि 'खटिया लूटकांड' भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छी घटना नहीं है। इस घटना के लिए कांग्रेस की आलोचना नहीं बल्कि समाज की आलोचना की जानी चाहिए। इस घटना के लिए कांग्रेस अकेली जिम्मेदार नहीं है। सभी राजनीतिक दलों को सोचना चाहिए कि समाज में यह स्थितियाँ कैसे उत्पन्न हो गईं? इसके साथ ही सवाल यह भी है कि 'खटिया लूटने वाला समाज' लोकतंत्र में कैसे स्वस्थ भागीदारी निभा सकता है? राजनीतिक सभाओं में उमडऩे वाली भीड़ पर अकसर सवाल उठाए जाते हैं कि वह भाड़े की भीड़ है। यह भीड़ राजनेताओं के विचारों को सुनने नहीं आती बल्कि उन्हें किसी न किसी प्रकार का लोभ देकर वाहनों में भरकर लाया जाता है। भीड़ का व्यवहार देखकर लगता है कि यह आरोप महज आरोप नहीं हैं, बल्कि सच के काफी करीब हैं। बहरहाल, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहली खाट सभा में खटिया लुटने की घटना के बाद सवाल उठ रहा है कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की खाट बिछेगी या फिर खड़ी होगी? फिलहाल तो खाट लुट गई है। उत्तरप्रदेश के जमीनी हालात और राजनीतिक माहौल को देखकर स्पष्ट कहा जा सकता है कि इस प्रदेश में खाट बिछाने के लिए कांग्रेस को जगह मिलने वाली नहीं है। हाल में आए चुनाव पूर्व सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि कांग्रेस न केवल अंतिम पायदान पर रहेगी, बल्कि उसकी हैसियत और कम हो जाएगी। दरअसल, कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व जनता में भरोसा पैदा नहीं कर पा रहा है। कांग्रेस के अंदरखाने में अधिकतर अनुभवी नेता मानते हैं कि राहुल गांधी सीमित प्रभाव वाले नेता हैं। यह बात यूँ भी साबित हो जाती है कि उत्तरप्रदेश में वापसी के लिए अनेक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने प्रियंका को पार्टी का चेहरा बनाने की माँग की थी। यदि हम 'खटिया लूटकांड' को दूसरे नजरिए से देखें तब पाएंगे कि सभा में मौजूद हजारों लोगों में राहुल गांधी के प्रति कोई आकर्षण नहीं था, उनकी नजर सिर्फ खटिया पर थी। उन्होंने राहुल गांधी की खाट भी कहाँ छोड़ी।
इस घटना से साफ संकेत मिलते हैं कि लोग राहुल गांधी को सुनने के लिए नहीं आए थे। इस घटना से निश्चित ही राहुल गांधी के आत्मविश्वास और उत्साह पर नकारात्मक असर हुआ होगा। यही कारण है कि दूसरे दिन वह एक सभा में कहते हैं कि एक तरफ भाजपा खाट लूटने वाले किसानों को चोर कहती है और दूसरी तरफ विजय माल्या को सिर्फ डिफाल्टर घोषित करती है। भाजपा ने उनके इस बयान का विरोध किया है, क्योंकि भाजपा के किसी नेता ने किसानों को चोर नहीं कहा। भाजपा ने राहुल गांधी को आईना भी दिखाया कि विजय माल्या ने जो 'लूट' मचाई थी, वह कांग्रेस के शासनकाल का मामला है। बहरहाल, उत्तरप्रदेश में जमीनी हकीकत से बेखबर या फिर उसकी अनदेखी कर रही कांग्रेस को समझना होगा कि भले ही राहुल गांधी खाट सभाएँ करें और देवरिया से दिल्ली तक की यात्रा करें। लेकिन, कड़वा सच यह है कि कांग्रेस के लिए देवरिया से दिल्ली का कोई रास्ता नहीं जाता है।
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