महापर्व कुम्भ 'सिंहस्थ' से इस बार 'वैचारिक कुम्भ' की परिपाटी शुरू होगी। प्रदेश सरकार को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उसने कुम्भ के धार्मिक महात्म्य के साथ सामाजिक स्वरूप को पुनर्जीवित करने का प्रण लिया है। भारत के स्वर्णिम इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि देश और समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए हमारे मनीषी कुम्भ का उपयोग करते थे। समय के अनुसार समाज को किन बातों को अपनाना चाहिए और किन बातों को त्याग देना चाहिए, कुम्भ में इस संबंध में विमर्श किया जाता था। समाज में मूल्य और धर्म (कर्तव्य) की हानि तो नहीं हो रही, इस दिशा में ऋषि, महर्षि, संत-महात्मा गहन मंथन करते थे। इस वैचारिक मंथन से ही अमृत की बूंदें निकलती थीं, जो समाज को पुष्ट करती थीं। देशभर से कुम्भ में आने वाले लोग इन अमृत की बूंदों को लेकर समाज में जाते थे। इस तरह कुम्भ समाज में मूल्य और धर्म की स्थापना के लिए विमर्श केन्द्र थे।
किन्हीं कारणों से कुम्भ का यह वास्तविक स्वरूप छिप गया था। कुम्भ के उसी स्वरूप को सबके सामने लाने का संकल्प मध्यप्रदेश सरकार ने लिया है। यह समय की माँग भी है। समाज के प्रत्येक क्षेत्र में मूल्यों की गिरावट देखी जा रही है। व्यक्ति के जीवन में मूल्य कहीं पीछे छूट गए हैं। इस कारण ही समाज में अनेक बुराइयों ने घर कर लिया है। समाज को श्रेष्ठ बनाने के लिए मूल्यों की पुनर्स्थापना की जरूरत है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सिंहस्थ-2016 एक वैचारिक महाकुम्भ साबित होगा। इसके लिए धार्मिक नगरी उज्जैन में 12 से 14 मई तक ग्राम निनोरा में अंतरराष्ट्रीय वैचारिक महाकुम्भ का आयोजन भी होगा। वैचारिक महाकुम्भ का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत करेंगे जबकि समापन सत्र के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी होंगे। इस वैचारिक महाकुम्भ में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विभिन्न विषय के विद्वान शामिल होंगे और कृषि, ग्रामोद्योग, बेटी बचाओ अभियान और नारी शक्ति, ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन, विज्ञान एवं अध्यात्म और स्वच्छता अभियान पर वैचारिक मंथन किया जाएगा। वैचारिक महाकुम्भ के लिए उचित वातावरण बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने पिछले एक-डेढ़ साल में देश-प्रदेश में अनेक संगोष्ठियों का आयोजन किया है। यानी सरकार वैचारिक महाकुम्भ की परिपाटी को स्थापित करने के लिए अपने पूरे प्रयास कर रही है।
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा (22 अप्रैल) को आरम्भ स्नान के साथ महाकाल की नगरी उज्जैन में महापर्व 'सिंहस्थ' प्रारंभ हो चुका है। भारत को सांप-सपेरों का देश समझने वालों को सिंहस्थ से संदेश जाना चाहिए कि कुम्भ किसी अंधविश्वास की उपज नहीं है बल्कि यह विज्ञान है। हमारा देश विश्वास प्रणाली पर विश्वास करने वाला देश नहीं रहा। बल्कि यह जिज्ञासुओं का देश रहा है। कुम्भ दुनिया का किसी भी प्रकार का सबसे बड़ा आयोजन है। दुनिया को समझ आना चाहिए कि यह सिर्फ धार्मिक कर्मकाण्ड का आयोजन नहीं है, बल्कि समाज को दिशा देने का आयोजन है। बहरहाल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का समर्पण देखकर भरोसा हो रहा है कि सिंहस्थ श्रद्धा और तर्क से आगे विचारों का महाकुम्भ बन जाएगा और हम सिंहस्थ के साथ एक वैचारिक महाकुम्भ का भी सन्देश दुनिया को दे सकेंगे।
महाकुम्भ की सफलता के लिए शुभकामनाएँ...विलुप्त हो रहे नैतिक मूल्यों के लिए सार्थक संदेश लेकर आए यह महापर्व !
जवाब देंहटाएंसिंहस्थ श्रद्धा और तर्क से आगे विचारों का महाकुम्भ बन जाएगा और हम सिंहस्थ के साथ एक वैचारिक महाकुम्भ का भी सन्देश दुनिया को दे सकेंगे।
जवाब देंहटाएं