भा रत को समझने और जानने वाले व्यक्ति को भारत माता की जय बोलने में न तो कोई संकोच होता है, न उसे किसी बाहरी दबाव की जरूरत होती है। वह भारत से प्रेम करता है, इसलिए भारत की जय बोलता है। 'भारत माता के जयकारे' से जिन महानुभावों के पेट में दर्द हो रहा है, दरअसल उसमें उनका कोई दोष नहीं है। बीते समय में उनको 'दूषित बौद्धिक भोजन' कराया गया है। इसलिए उन्हें समस्या है। 'भारत माता की जय' बोलने में यूँ तो विवाद जैसा कोई विषय होना नहीं चाहिए। लेकिन, 'उल्टी धारा' के कुछ लोगों ने इस पर भी देश में वितंडावाद खड़ा कर दिया है। दरअसल, यह लोग 'भारत के विचार' को ठीक प्रकार से समझ नहीं पाए हैं। कुछ के सवाल तो बेहद हास्यास्पद हैं- भारत माता है, पिता है या राष्ट्रपुरुष? भारत माता की जय बोलना सांप्रदायिक है। कुछ लोगों का धर्म इसकी इजाजत नहीं देता, फिर क्यों भारत माता की जय बोलना चाहिए? क्या कहीं संविधान में लिखा है? टीवी के एक पत्रकार ने बड़ा लम्बा-चौड़ा पत्र लिखकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से पूछा है कि वह कब, कहाँ और कैसे भारत माता की जय बोलें? भैया एक बात बताओ, क्या उनके कहने से आप बोलेंगे, जैसा वह कहेंगे वैसा बोलोगे? नहीं न। फिर काहे बौद्धिक प्रलाप कर रहे हैं? आत्मचिंतन कीजिए। इस पूरे वितंडावाद के पीछे दो प्रमुख बातें हैं। एक, हम भारत के विचार को ठीक से जानते नहीं। दूसरी, हम किसी की मानते नहीं।
आज (आठ अप्रैल) से भारतीय नववर्ष प्रारंभ हो रहा है। भारत माता की जय (भारत के विचार) का विरोध करने वाले कितने बुद्धिजीवी हैं, जिन्हें यह नववर्ष याद है और क्या यह लोग एक जनवरी की तरह भारतीय नववर्ष का उत्सव मनाएंगे? उत्सव मनाना तो छोडि़ए, यह भारतीय नववर्ष को मानेंगे भी नहीं। जबकि वास्तविकता यह है कि भारतीय कालगणना विश्व की सभी कालगणनाओं से अधिक प्राचीन और वैज्ञानिक है। ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख है। लेकिन, देश का दुर्भाग्य है कि हमारे बुद्धिजीवियों ने अपनी लेखनी और वाणी से भारत के वैभव को प्रकट ही नहीं किया बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि जानबूझकर प्रकट होने नहीं दिया। अपने देशवासियों को अंधेरे में रखा और कहा कि विज्ञान का सूरज तो सिर्फ पश्चिम से ही उगा था। अपनी थातियों पर पर्दा डालकर रखा गया। क्या यही कारण नहीं है कि जिस कालगणना के आधार पर हम अपने सामाजिक और धार्मिक कार्यों को सम्पन्न करते हैं, उसी विरासत के बारे में हमें कोई भान नहीं है? क्या यह हमारे लिए गौरव का विषय नहीं होना चाहिए कि हमारे ऋषि वैज्ञानिकों ने अद्भुत कैलेंडर हमारे लिए बनाया था? हम क्यों अपने नववर्ष को धूमधाम से नहीं मनाते हैं?
आप आज लोगों को नववर्ष की शुभकामनाएं दीजिएगा, वे न केवल आश्चर्य से पूछेंगे कि आज किस बात का नया साल है? बल्कि कुछ लोग तो भारतीय नववर्ष की शुभकामनाओं से भी बिदक जाएंगे? क्योंकि, उन्हें भारत के विचार की समझ ही नहीं है। इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री मनमोहन वैद्य के विचार का जिक्र करना उचित होगा। श्री वैद्य कहते हैं कि भारत को समझने के लिए चार बिन्दुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। सबसे पहले भारत को मानो, फिर भारत को जानो, उसके बाद भारत के बनो और सबसे आखिर में भारत को बनाओ। उनका विचार उचित ही है कि अभी बहुत-से लोगों को भारत की मेधा पर भरोसा ही नहीं है। यदि कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से इन चारों बिन्दुओं पर चिंतन कर ले तब वह 'भारत के विचार' के साथ स्वत: ही खड़ा हो जाएगा। आज भारतीय नववर्ष है, सुयोग है, आज से ही भारत को जानने की दिशा में आगे बढऩा चाहिए।
विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दायित्व के साथ होना कितना जरूरी है ये इस बहस से साफ़ निकल के आ रहा है आज ... कुछ लोग, कुछ मीडिया वाले इस बात को भूल चुके हैं ... जन मानस का दबाव ही ऐसे लोगों को दिशा दे सकता है ...
जवाब देंहटाएंवे लोग निर्लज्ज अभिव्यक्ति की भी आज़ादी चाहते हैं... मर्यादा होनी ही चाहिए।
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