खु शहाल मंत्रालय (मिनिस्टरी ऑफ हैप्पीनेस) बनाने की मध्यप्रदेश सरकार की घोषणा एक सराहनीय और सार्थक पहल है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि विकास दर से ही सबकुछ नहीं होता है। अपार धन-दौलत वाले लोग भी आत्महत्या कर रहे हैं, अवसाद से ग्रस्त हैं, तनाव में हैं। प्रदेश सरकार इस मंत्रालय की मदद से लोगों के जीवन में समृद्धि के साथ-साथ खुशहाली लाने का प्रयास करेगी। सरकार ने भरोसे के साथ कहा है कि यह मंत्रालय जल्द ही अस्तित्व में आ जाएगा। यदि ऐसा होता है तब मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य होगा, जहाँ खुशहाल मंत्रालय होगा। गौरतलब है कि विश्व में भूटान पहला देश है जहाँ ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (सकल घरेलू उत्पादन) की जगह ग्रोस हैप्पीनेस इंडेक्स (सकल घरेलू सूचकांक) के आधार पर सरकार की नीतियां तय होती हैं।
वर्ष 1972 में भूटान नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने जीडीपी की जगह हैप्पीनेस इंडेक्स को लागू किया। वहाँ समृद्धि को मापने के लिए जीडीपी का उपयोग नहीं किया जाता है। दरअसल, जीडीपी मापने का तरीका ही दोषपूर्ण है, तब जीडीपी से वास्तविक विकास दर की गणना कैसे की जा सकती है? आर्थिक क्षेत्र में 'सुमंगलम्' की अवधारणा देने वाले भारत के प्रमुख अर्थचिंतक प्रो. बजरंग लाल गुप्ता भी मानते हैं कि जीडीपी के आधार पर व्यक्ति की खुशहाली तो दूर, विकास दर को भी ठीक से नहीं मापा जा सकता है। आज विश्व में विकास की परिभाषा को लेकर चल रही बहस के साथ-साथ विकास को मापने के तरीके पर भी सवाल उठ रहे हैं? विकास दर को मापने के प्रभावी फार्मूले पर विचार किया जा रहा है। इसी बीच दुनिया में हैप्पीनेस इंडेक्स की खूब चर्चा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2011 में प्रस्ताव पारित कर सभी सदस्य देशों से आग्रह किया था कि वे अपने यहाँ हैप्पीनेस इंडेक्स के आधार पर नागरिकों के जीवन स्तर को मापने की व्यवस्था करें। एक अप्रैल, 2012 को विश्व की पहली हैप्पीनेस सूची जारी हुई। हैप्पीनेस इंडेक्स में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, जीवन प्रत्याशा, अपनी पसंद की जिंदगी जीने के लिए सामाजिक सहारा और आजादी को खुशी का संकेतकों के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इसमें और सुधार की गुजांइश हो सकती है। फिलवक्त इन्हीं मापदण्डों के आधार पर खुशहाली मापी जा रही है। इस वर्ष (2016) के खुशहाल देशों के वैश्विक सूचकांक में भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं है। 158 देशों की सूची में भारत का स्थान 117वाँ है। क्या मध्यप्रदेश सरकार की तरह अन्य राज्यों में भी हैप्पीनेस मंत्रालय की स्थापना होने से यह प्रदर्शन सुधर पाएगा? भारत सरकार अपने स्तर पर इस सूची में ऊपर आने के लिए क्या प्रयास कर रही है? इन सवालों पर केन्द्र और राज्य सरकारों को चिंता करनी चाहिए।
बहरहाल, यह ध्यान देने की बात है कि भूटान में नागरिकों की खुशहाली मापने के लिए अलग से कोई मंत्रालय नहीं है। बल्कि, सभी मंत्रालयों को जनहित में योजना बनाते समय हैप्पीनेस इंडेक्स के मापदण्डों का ध्यान रखना होता है। लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने की जिम्मेदारी सभी मंत्रालयों की है। यह अधिक महत्वपूर्ण है। ऐसे में लोगों के जीवन को खुशहाल बनाने की जिम्मेदारी केवल एक मंत्रालय या विभाग की नहीं रह जाती। बल्कि सामूहिक प्रयास पर जोर दिया जाता है।
मध्यप्रदेश में यह मंत्रालय कैसा होगा और किस तरह काम करेगा? अभी इस संबंध में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन, शिवराज सिंह चौहान की छवि और उनकी विचार चिंतन के आधार पर आकलन किया जा सकता है कि हैप्पीनेस मंत्रालय की उनकी कल्पना में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का 'एकात्म मानव दर्शन' होगा। स्वयं शिवराज सिंह चौहान एकात्म मानव दर्शन के अच्छे अध्येयता और प्रवक्ता हैं। यह वर्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का 'जन्म शताब्दी वर्ष' भी है और 'एकात्म मानवदर्शन' का स्वर्ण जयंती वर्ष पूर्ण हो रहा है। एकात्म मानव दर्शन कहता है कि व्यक्ति के सुख को अलग-अलग करके नहीं आंका जा सकता। रोटी, कपड़ा और मकान तक की सुविधा उपलब्ध कराने से मनुष्य के सुख और आनंद की गारंटी नहीं है। आत्मा के सुख की भी चिंता जरूरी है। शरीर, बुद्धि, मन और आत्मा इन सबके सुख की चिंता एक साथ करनी होगी। यदि इनकी अलग-अलग चिंता की जाएगी तब मनुष्य के सुख की कोई गारंटी नहीं है। एकात्म मानव दर्शन व्यक्ति के संपूर्ण सुख की बात करता है। मध्यप्रदेश सरकार को भी खुशहाल मंत्रालय की मदद से इसी दिशा में आगे बढऩा चाहिए।
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