के न्द्र सरकार यानी यूपीए-२
भ्रष्टाचार के मामलों में अपनी साख बुरी तरह खो चुकी है। पहले सुप्रीम
कोर्ट की टिप्पणियों ने सरकार की जमकर किरकिरी कराई। बाद में, महालेखा
परीक्षक एवं नियंत्रक (कैग) ने सारी ठसक छीन ली। यह अलग बात है कि सरकार और
उसके नुमाइंदों ने बेशर्मी की मोटी चादर ओढ़ रखी है। बेहयाई की हद देखिए,
जिसने भी सरकार के कामकाज के तरीके पर अंगुली उठाई, सरकार चून बांधकर (फोकस
करके) उसके पीछे पड़ गई। चाहे वह बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे या फिर
अरविंद केजरीवाल। सरकार के नुमाइंदों ने सब को चोर, ठग और सिरफिरा करार दे
दिया। यूपीए-२ अब सीएजी को बदनाम करने के लिए प्रोपेगंडा रच रही है। भारतीय
राजनीति के इतिहास में आपातकाल के काले पृष्ठ को छोड़ दिया जाए तो
संवैधानिक संस्था को इस तरह कभी निशाना नहीं बनाया गया है। सीएजी को घेरना,
उसकी विश्वसनीयता, निष्पक्षता और ईमानदारी पर सवाल खड़े करना बेहद हल्की
राजनीति का उदाहरण भर है।
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस ने सीएजी के पूर्व अधिकारी आरपी सिंह के दावे को हथियार बनाकर भारतीय जनता पार्टी और सीएजी विनोद राय पर हमला बोल दिया है। आरपी सिंह ने दावा किया है कि सीएजी ने टूजी घोटाले में १.७६ लाख करोड़ के घाटे का जो आंकड़ा पेश किया है वह सही नहीं है। असल घाटा तो २६४५ करोड़ रुपए था। आरपी सिंह ने यह आरोप भी लगाया है कि रिपोर्ट पर जबरन दस्तखत कराए गए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि घाटे का आंकड़ा बड़ा दिखाने के लिए लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने सीएजी पर दबाव डाला था। इन आरोपों को मुद्दा बनाकर यूपीए की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी से लेकर हाल ही में प्रमोशन पाए सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी, कानून मंत्री अश्विनी कुमार और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भाजपा और संवैधानिक संस्था सीएजी पर सीधा हमला बोला है। इस मसले पर जरा गौर करें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि यूपीए-२ किसी भी हद तक जाकर अपनी इमेज सेट करने की कोशिश कर सकती है। एक ऐसे व्यक्ति की बातों को आधार बनाकर संवैधानिक संस्था पर आरोप लगाए जा रहे हैं, जिसने टूजी पर हुए भारी बवंडर के बीच तो चुप्पी साधे रखी। भ्रष्टाचार के आरोप में कई मंत्री-संत्री जेल की सैर कर आए लेकिन आरपी सिंह कुछ बोले नहीं। इतना ही नहीं इन महाशय ने लोक लेखा समिति और टूजी घोटाले की जांच कर रही जेपीसी के समझ भी यह सच्चाई नहीं उगली थी। सेवानिवृत्त होने के १४ महीने बाद मुंह खोला है। आरपी सिंह के रवैए को देखकर भाजपा के इस आरोप में दम दिखती है कि आरपी सिंह कांग्रेस के हाथ खेल रहे हैं। कांग्रेस सीएजी को झूठा साबित करके अपना दामन उजला दिखने की कोशिश में हैं। जबकि कांग्रेस का दामन कोयले में भी खूब काला हो चुका है। यूपीए-२ के मंत्री कपिल सिब्बल ने तो शुरुआत में ही 'जीरो लॉस' की थ्योरी पेश की थी, जिससे सरकार की जमकर थू-थू हुई। बाद में, सरकार ने टूजी मामले की जांच कराई और अपने ही मंत्रियों को इस मामले में जेल की हवा खिलवाई। यह सवाल उठता है कि यदि आरपी सिंह के दावे सही हैं तो क्या सरकारी एजेंसियों की जांच गलत है? क्या सुप्रीम कोर्ट गलत है? चलो एक बार को मान भी लें कि आरपी सिंह का यह दावा सच है कि घाटे का आंकडा १.७६ लाख करोड़ बहुत अधिक ज्यादा है लेकिन फिर भी सरकार ने खेल तो खेला ही न। घोटाला छोटा ही सही, हुआ तो। फिर सरकार अपने को पाक-साफ दिखने की जद्दोजहद क्यों कर रही है? क्यों नहीं अपनी गलती मानकर देशवासियों से माफी मांग लेती? क्यों नहीं भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा देती? लेकिन नहीं, कांग्रेसनीत सरकार गलती स्वीकार करने की जगह आरपी सिंह को ढाल बनाकर सीएजी पर अंगार उगल रही है।
कांग्रेस सीएजी को झूठा और नीचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। हालांकि हर बार उसे ही मुंह की खानी पड़ती है। इस मामले में भी आरपी सिंह ने जैसे ही खुद को घिरता देखा तो पलटी खा गए, साथ में कांग्रेस और यूपीए-२ को भी औंधा (उल्टा) करा दिया। दो दिन ही बीते कि आरपी सिंह ने कह दिया कि १.७६ लाख करोड़ के घाटे का आंकड़ा जारी कराने में भाजपा के वरिष्ठ नेता और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कोई दबाव नहीं डाला। पूर्व में मीडिया ने उनके बयान को गलत अर्थ में पेश किया। आरपी सिंह के पलटी खाते ही भाजपा सोनिया गांधी सहित कांग्रेसनीत यूपीए सरकार पर मुखर हो गई। टूजी स्पेक्ट्रम मामले में इससे भी कांग्रेस के बयान उसके गले की फांस बन गए थे। हाल ही में टूजी स्पेक्ट्रम की निराशाजनक नीलामी के बाद भी सरकार के ढोलों ने जमकर हल्ला मचाया था कि देखा, हमने तो पहले ही कहा था कैग ने मनगढंत आंकडे पेश किए हैं। सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ। कैग की मिलीभगत है भाजपा के साथ, उसने जबरन यूपीए सरकार को बदनाम करने की कोशिश की। दो दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी में विसंगति पाई और सरकार की जमकर खिंचाई कर दी। मतलब साफ है, यहां भी सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा साबित करने के लिए नीलामी ही गलत ढंग से कर दी।
यूपीए-२ सरकार सीएजी से इतनी परेशान है कि उसने सीएजी के पर कतरने की तैयारी तक कर रखी है। दरअसल, जल्द ही सीएजी जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना (जेएनएनयूआरएम), मनरेगा, किसान कर्ज माफी योजना और उर्वरकों की सबसिडी में हुए घोटाले और अनियमितता को लेकर संसद में रिपोर्ट पेश करने वाली है। इससे फिर कांग्रेस की छवि पर बट्टा लगना है। इसलिए सरकार के अंदरखाने के लोगों ने सीएजी को नख-दंतहीन संस्था बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। यह बात यूं साफ होती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने ११ नवंबर को बहुसदस्यीय महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव की भनक लगते ही विपक्ष ने जमकर विरोध किया। अपने मौन के लिए विख्यात प्रधानमंत्री को आखिर बोलना पड़ा। कहा कि कई सदस्यों का महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक बनाने की सरकार की कोई मंशा नहीं है। प्रधानमंत्री ने तब भले ही कांग्रेस और सरकार की किरकिरी होने से बचाने के लिए ऐसा जवाब दिया। असल में तो सरकार सीएजी को नापने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। दरअसल, सरकार का सोचना है कि सीएजी की गलत साबित करने के बाद ही जनता के बीच उसका चेहरा चमकदार दिखेगा।
इधर, केन्द्र सरकार ने दूसरे उपाय भी शुरू कर दिए हैं अपनी छवि सुधारने के लिए। कांग्रेस के नेता दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं कि कसाब को टांगकर सरकार ने जनता को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। वरना, देश की संसद पर हमला करने वाले अफजल का नंबर पहले था। खैर, सब जानते हुए जनता इस बात के लिए सरकार की पीठ थपथपा रही है। लेकिन, वह सरकार के घोटालों को भूलना नहीं चाहती। कसाब की फांसी के बदले केन्द्र सरकार की १०० गलतियों को माफ करना नहीं चाहती। २१ नवंबर को कसाब की फांसी की खबर सुनकर देशवासियों ने एक-दूसरे को बधाई संदेश भेजे। इनमें उन्होंने एक-दूसरे को याद दिलाया कि केन्द्र सरकार ने यह काम बढिय़ा किया है लेकिन उसके द्वारा किए गए घोटालों को हमें भूलना नहीं है।
कांग्रेस सीएजी पर सवाल उठाकर और कसाब को फांसी पर लटकाकर इतनी आसानी से अपनी इमेज सेट नहीं कर पाएगी। दरअसल, ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है। खास बात यह है कि इस बार पब्लिक माफ करने के मूड में दिख नहीं रही।
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस ने सीएजी के पूर्व अधिकारी आरपी सिंह के दावे को हथियार बनाकर भारतीय जनता पार्टी और सीएजी विनोद राय पर हमला बोल दिया है। आरपी सिंह ने दावा किया है कि सीएजी ने टूजी घोटाले में १.७६ लाख करोड़ के घाटे का जो आंकड़ा पेश किया है वह सही नहीं है। असल घाटा तो २६४५ करोड़ रुपए था। आरपी सिंह ने यह आरोप भी लगाया है कि रिपोर्ट पर जबरन दस्तखत कराए गए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि घाटे का आंकड़ा बड़ा दिखाने के लिए लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने सीएजी पर दबाव डाला था। इन आरोपों को मुद्दा बनाकर यूपीए की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी से लेकर हाल ही में प्रमोशन पाए सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी, कानून मंत्री अश्विनी कुमार और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भाजपा और संवैधानिक संस्था सीएजी पर सीधा हमला बोला है। इस मसले पर जरा गौर करें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि यूपीए-२ किसी भी हद तक जाकर अपनी इमेज सेट करने की कोशिश कर सकती है। एक ऐसे व्यक्ति की बातों को आधार बनाकर संवैधानिक संस्था पर आरोप लगाए जा रहे हैं, जिसने टूजी पर हुए भारी बवंडर के बीच तो चुप्पी साधे रखी। भ्रष्टाचार के आरोप में कई मंत्री-संत्री जेल की सैर कर आए लेकिन आरपी सिंह कुछ बोले नहीं। इतना ही नहीं इन महाशय ने लोक लेखा समिति और टूजी घोटाले की जांच कर रही जेपीसी के समझ भी यह सच्चाई नहीं उगली थी। सेवानिवृत्त होने के १४ महीने बाद मुंह खोला है। आरपी सिंह के रवैए को देखकर भाजपा के इस आरोप में दम दिखती है कि आरपी सिंह कांग्रेस के हाथ खेल रहे हैं। कांग्रेस सीएजी को झूठा साबित करके अपना दामन उजला दिखने की कोशिश में हैं। जबकि कांग्रेस का दामन कोयले में भी खूब काला हो चुका है। यूपीए-२ के मंत्री कपिल सिब्बल ने तो शुरुआत में ही 'जीरो लॉस' की थ्योरी पेश की थी, जिससे सरकार की जमकर थू-थू हुई। बाद में, सरकार ने टूजी मामले की जांच कराई और अपने ही मंत्रियों को इस मामले में जेल की हवा खिलवाई। यह सवाल उठता है कि यदि आरपी सिंह के दावे सही हैं तो क्या सरकारी एजेंसियों की जांच गलत है? क्या सुप्रीम कोर्ट गलत है? चलो एक बार को मान भी लें कि आरपी सिंह का यह दावा सच है कि घाटे का आंकडा १.७६ लाख करोड़ बहुत अधिक ज्यादा है लेकिन फिर भी सरकार ने खेल तो खेला ही न। घोटाला छोटा ही सही, हुआ तो। फिर सरकार अपने को पाक-साफ दिखने की जद्दोजहद क्यों कर रही है? क्यों नहीं अपनी गलती मानकर देशवासियों से माफी मांग लेती? क्यों नहीं भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा देती? लेकिन नहीं, कांग्रेसनीत सरकार गलती स्वीकार करने की जगह आरपी सिंह को ढाल बनाकर सीएजी पर अंगार उगल रही है।
कांग्रेस सीएजी को झूठा और नीचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। हालांकि हर बार उसे ही मुंह की खानी पड़ती है। इस मामले में भी आरपी सिंह ने जैसे ही खुद को घिरता देखा तो पलटी खा गए, साथ में कांग्रेस और यूपीए-२ को भी औंधा (उल्टा) करा दिया। दो दिन ही बीते कि आरपी सिंह ने कह दिया कि १.७६ लाख करोड़ के घाटे का आंकड़ा जारी कराने में भाजपा के वरिष्ठ नेता और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कोई दबाव नहीं डाला। पूर्व में मीडिया ने उनके बयान को गलत अर्थ में पेश किया। आरपी सिंह के पलटी खाते ही भाजपा सोनिया गांधी सहित कांग्रेसनीत यूपीए सरकार पर मुखर हो गई। टूजी स्पेक्ट्रम मामले में इससे भी कांग्रेस के बयान उसके गले की फांस बन गए थे। हाल ही में टूजी स्पेक्ट्रम की निराशाजनक नीलामी के बाद भी सरकार के ढोलों ने जमकर हल्ला मचाया था कि देखा, हमने तो पहले ही कहा था कैग ने मनगढंत आंकडे पेश किए हैं। सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ। कैग की मिलीभगत है भाजपा के साथ, उसने जबरन यूपीए सरकार को बदनाम करने की कोशिश की। दो दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी में विसंगति पाई और सरकार की जमकर खिंचाई कर दी। मतलब साफ है, यहां भी सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा साबित करने के लिए नीलामी ही गलत ढंग से कर दी।
यूपीए-२ सरकार सीएजी से इतनी परेशान है कि उसने सीएजी के पर कतरने की तैयारी तक कर रखी है। दरअसल, जल्द ही सीएजी जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना (जेएनएनयूआरएम), मनरेगा, किसान कर्ज माफी योजना और उर्वरकों की सबसिडी में हुए घोटाले और अनियमितता को लेकर संसद में रिपोर्ट पेश करने वाली है। इससे फिर कांग्रेस की छवि पर बट्टा लगना है। इसलिए सरकार के अंदरखाने के लोगों ने सीएजी को नख-दंतहीन संस्था बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। यह बात यूं साफ होती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने ११ नवंबर को बहुसदस्यीय महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव की भनक लगते ही विपक्ष ने जमकर विरोध किया। अपने मौन के लिए विख्यात प्रधानमंत्री को आखिर बोलना पड़ा। कहा कि कई सदस्यों का महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक बनाने की सरकार की कोई मंशा नहीं है। प्रधानमंत्री ने तब भले ही कांग्रेस और सरकार की किरकिरी होने से बचाने के लिए ऐसा जवाब दिया। असल में तो सरकार सीएजी को नापने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। दरअसल, सरकार का सोचना है कि सीएजी की गलत साबित करने के बाद ही जनता के बीच उसका चेहरा चमकदार दिखेगा।
इधर, केन्द्र सरकार ने दूसरे उपाय भी शुरू कर दिए हैं अपनी छवि सुधारने के लिए। कांग्रेस के नेता दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं कि कसाब को टांगकर सरकार ने जनता को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। वरना, देश की संसद पर हमला करने वाले अफजल का नंबर पहले था। खैर, सब जानते हुए जनता इस बात के लिए सरकार की पीठ थपथपा रही है। लेकिन, वह सरकार के घोटालों को भूलना नहीं चाहती। कसाब की फांसी के बदले केन्द्र सरकार की १०० गलतियों को माफ करना नहीं चाहती। २१ नवंबर को कसाब की फांसी की खबर सुनकर देशवासियों ने एक-दूसरे को बधाई संदेश भेजे। इनमें उन्होंने एक-दूसरे को याद दिलाया कि केन्द्र सरकार ने यह काम बढिय़ा किया है लेकिन उसके द्वारा किए गए घोटालों को हमें भूलना नहीं है।
कांग्रेस सीएजी पर सवाल उठाकर और कसाब को फांसी पर लटकाकर इतनी आसानी से अपनी इमेज सेट नहीं कर पाएगी। दरअसल, ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है। खास बात यह है कि इस बार पब्लिक माफ करने के मूड में दिख नहीं रही।
mafi milna vhi nhi chahiy bhaisab..ab ki to enka dimag deek karna hi hai.....
जवाब देंहटाएंसरकार किसी की भी हो, पर लंगड़ी न हो. बैसाखियां तो बैसाखियां, कंधे तक जवाब दे जाते हैं.
जवाब देंहटाएंआरपी सिंह जी की बात ही सच मान ली जाये तो सरकार को अपने बाकी विभागों में भी घोटाला राशि की एक परमिशिबल सीलिंग अनाऊंस कर देनी चाहिये,ताकि हम जैसे भी कुछ कानून सम्मत घोटाला कर सकें। किस काले कानून में लिखा है कि २६४५ करोड़ रुपए तक का घाटा कुछ विशेष लोगों को फ़ायदा देकर उठाया जाना जायज है?
जवाब देंहटाएंआज तो बस कोपी पेस्ट कर रहा हूँ..
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आरपी सिंह जी की बात ही सच मान ली जाये तो सरकार को अपने बाकी विभागों में भी घोटाला राशि की एक परमिशिबल सीलिंग अनाऊंस कर देनी चाहिये,ताकि हम जैसे भी कुछ कानून सम्मत घोटाला कर सकें। किस काले कानून में लिखा है कि २६४५ करोड़ रुपए तक का घाटा कुछ विशेष लोगों को फ़ायदा देकर उठाया जाना जायज है?
कांग्रेस सीएजी पर सवाल उठाकर और कसाब को फांसी पर लटकाकर इतनी आसानी से अपनी इमेज सेट नहीं कर पाएगी। दरअसल, ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है। -- Their crimes are unpardonable ! We will neither forgive nor forget ! They ought to take lesson from their errors.
जवाब देंहटाएंराजनीति पार्टी कोई भी आए ......ईमानदारी जरुरी है ( जिसकी उम्मीद करना बेकार है )
जवाब देंहटाएंnow they attack the integrity of cag, right from emergency they destroy the people oriented constitution, now we have one more chance, thanks for wonderful and thought provoking article
जवाब देंहटाएंye public hai sab janti hai........
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