म ध्यप्रदेश में प्रभात झा ने महज ढाई साल में
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया और शक्तिशाली भी बनाया।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में
स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे अति सक्रिय नेता थे। उनका क्षण-क्षण पार्टी के
विस्तार के लिए समर्पित था। पार्टी की जड़ें मजबूत करने में उनका अतुलनीय
योगदान है। उन्होंने देश के कई प्रांतों में भाजपा को खड़ा किया।
मध्यप्रदेश की राजनीति का सौभाग्य है कि इसे कुशाभाऊ ठाकरे ने सींचा।
प्रदेश के इस छोर से उस छोर तक प्रवास किया, कई बार किया। कभी थके नहीं,
कभी रुके नहीं, कभी थमे नहीं। छोटे से लेकर बड़े, सभी कार्यकर्ताओं के लिए
वे सहज थे। दूसरे दल के नेताओं के लिए भी अनुकरणीय थे। प्रभात झा को ऐसे ही
कुशल संगठनकर्ता का सानिध्य मिला। मार्गदर्शन मिला। सार्थक और सकारात्मक
काम करने की प्रेरणा मिली। सच के लिए अडऩे और लडऩे का हौसला मिला। कुशाभाऊ
ठाकरे के विराट व्यक्तित्व की तुलना प्रभात झा से नहीं की जा सकती लेकिन
राजनीति की जिस राह पर प्रभात झा ने कदम रखा है, जिस राह पर वे बढ़ रहे
हैं, उस राह पर स्वर्गीय ठाकरे के पग चिह्न हैं। वह राह ठाकरे की राह है।
वह सही राह है। सकारात्मक और असली राह है।
प्रभात झा ने ढाई साल पहले प्रदेशाध्यक्ष बनते ही अपने काम करने के तौर तरीके जाहिर कर दिए थे। मेरे स्वागत-सत्कार में कोई बैनर और होर्डिंग नहीं लगाया जाएगा। कार्यकर्ताओं को यही सबसे पहले निर्देश थे उनकी ओर से। वे जानते हैं, भारतीय जनता पार्टी के पितृपुरुष कभी नहीं चाहते थे कि भाजपा में व्यक्ति पूजा को महत्व दिया जाए। व्यक्तिवाद को बढ़ावा मिले। यह कैडर आधारित पार्टी है। यहां संगठन और सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, व्यक्ति नहीं। उन्होंने दूसरा जरूरी काम किया कि पार्टी को पार्टी कार्यालय से चलाया, बंगले से नहीं। प्रभात झा से पूर्ववर्ती प्रदेशाध्यक्ष बंगले से ही सारे राजनीतिक कार्यक्रम संचालित करते थे। ऐसे में पार्टी कार्यालय खाली-खाली सा रहता था। प्रभात झा के प्रदेशाध्यक्ष बनने से पार्टी कार्यालय में रौनक बढ़ गई। लगने लगा कि यह सत्तारूढ़ पार्टी का कार्यालय है। प्रदेश के पार्टी कार्यालय में ही प्रदेशभर के कार्यक्रमों की रूपरेखा बनना शुरू हो गई।
प्रभात झा का व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में भी गढ़ा गया है। वहीं उन्होंने सीखा कि कार्यकर्ता को अपने कार्य से सीख दो, सिर्फ भाषण से नहीं। उन्होंने मंडल-मंडल में प्रवास शुरू कर मंत्रियों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को नींद से जगाना शुरू किया। उन्होंने सबको साफ शब्दों में कह दिया आपको जो जिम्मेदारी पार्टी ने दी है, जनता ने दी है उसका निर्वहन ठीक ढंग से किया जाए। अपने-अपने क्षेत्र में लोगों से मिलो, संपर्क करो, दौरे करो। कुर्सी मिल गई है तो काम करो वरना कुर्सी जाते देर नहीं लगेगी। एक साधारण से कार्यकर्ता को अहसास कराया कि भाजपा तुम्हारी पार्टी है, तुम्हारे सहयोग के बिना नहीं चल सकती। सेठ-साहूकारों की जगह उन्होंने आम कार्यकर्ता से १०-१० रुपए चंदा एकत्र कराया ताकि कार्यकर्ता में समर्पण का भाव जगे। स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे के बाद प्रभात झा ऐसे प्रदेशाध्यक्ष हैं जिन्होंने अपने एक ही कार्यकाल में प्रदेश के लगभग सभी मंडलों में प्रवास किया, एक बार नहीं कई जगह तो कई बार पहुंचे। उनके लगातार संपर्क और अथक मेहनत का ही नतीजा रहा कि भाजपा उनके कार्यकाल में कोई भी उपचुनाव नहीं हारी। कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में भी जीत का परचम पहराया। स्थानीय नगर पालिका और नगर पंचायतों के चुनाव में भी पार्टी को विजय मिली। प्रभात झा ने कभी भी किसी जीत को अपनी या किसी और व्यक्ति विशेष की मेहनत नहीं बताया। उन्होंने हर जीत के बाद यही कहा कि यह जीत पार्टी की जीत है, अनुशासन की जीत है, कार्यकर्ताओं की मेहनत की जीत है। वर्ष २०११ में प्रदेश में कई जगह स्थानीय निकायों के चुनाव चल रहे थे। प्रभात झा प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते सभी जगह पहुंचकर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे थे। शाजापुर नगरपालिका के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी की आर्थिक स्थिति कुछ कमजोर थी। चुनाव खर्च उसके लिए मुश्किल खड़ी कर रहा था। प्रभात झा को इस बात का जैसे ही पता चला, उन्होंने तुरंत मौके पर ही उन्हें अपना एक माह का वेतन उस कार्यकर्ता को चुनाव लडऩे के लिए दे दिया। उनके इस प्रयास का असर बाकी कार्यकर्ताओं पर भी हुआ। शाजापुर नगरपालिका का अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे कार्यकर्ता के चुनाव प्रचार के लिए उसी दिन करीब १२ लाख रुपए जमा हो गए।
प्रभात झा भाजपा सरकार के श्रेष्ठ पालक साबित हुए। वे उच्चकोटि के पत्रकार रहे हैं। पत्रकारों को क्या खबर चाहिए, बेहतर जानते हैं प्रभात झा। अपने इसी चातुर्य का फायदा उन्होंने मुख्ममंत्री और भाजपा सरकार का संरक्षण करने में किया। वे ढाई साल तक पत्रकारों से लेकर कांग्रेसी नेताओं को अपने मायाजाल में ही उलझाकर रखे रहे। लगातार कांग्रेसी नेताओं पर बयानबाजी कर उन्हें घेरे रखा। उन्हें फुरसत ही नहीं दी कि वे भारतीय जनता पार्टी को सदन या सदन के बाहर घेर सकें। प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अधिक समाचार माध्यमों और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय प्रभात झा हो गए थे। यही कारण है कि प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने उन्हें डेंजर की उपाधि से नवाजा। प्रभात झा का कार्यकाल पूरा होने पर अजय सिंह ने राहत की सांस लेते हुए कहा भी - अहा! हमारा डेंजर चला गया।
हालांकि प्रभात झा को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलना अप्रत्याशित है। उनके मुताबिक परमाणु विस्फोट जैसा ही है। २०१३ विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। ढाई साल में प्रभात झा ने जो मेहनत की उसकी परीक्षा का समय आ रहा था। प्रभात झा की संगठन पर बढ़ती पकड़ और लोकप्रियता प्रदेश के मुख्यमंत्री को सशंकित करने लगी थी। उस पर भी प्रभात झा मुख्यमंत्री को हटाकर स्वयं प्रदेश के मुखिया बनना चाहते हैं, जैसी अफवाहों से बाजार गर्म था। इन सब कारणों से शिवराज सिंह चौहान प्रभात झा को फिर से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर देखना नहीं चाहते थे। वे अपने किसी विश्वस्त सिपहसलार को पार्टी संगठन की कमान सौंपना चाह रहे थे। वे ऐसे किसी चेहरे की तलाश में थे कि उनके सामने नरेन्द्र सिंह तोमर को आगे कर दिया गया। एक सुनियोजित योजना के तहत नरेन्द्र सिंह प्रदेश में अपनी वापसी के लिए प्रयासरत भी थे। आखिर शिवराज सिंह चौहान का वरदहस्त पाकर नरेन्द्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। हालांकि इसके पीछे राजनीति की लंबी कहानी है, जिसके बीज उत्तरप्रदेश के चुनावी संग्राम के समय ही बोए जा चुके थे। इसकी फसल नरेन्द्र सिंह तोमर काटेंगे। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में २०१३ के चुनाव जीतना तय बात है। यह भी तय बात है कि शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी होगी। लेकिन, यह बात भी गांठ बांध ली जाए कि शिवराज सिंह चौहान अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई और ही सुशोभित होगा। शिवराज सिंह चौहान जिस नरेन्द्र सिंह तोमर को अपना हितैषी और खास समझ रहे हैं तो उन्हें करीब तीन साल पुराना घटनाक्रम याद करना होगा। ये वही ठाकुर नरेन्द्र सिंह तोमर हैं जो शिवराज सिंह चौहान को ओबीसी कैटेगिरी का ठाकुर समझते हैं। उन्हें अपने से कमतर आंकते हैं। ये वही नरेन्द्र सिंह तोमर हैं जिन्होंने ग्वालियर में स्थापित महाराजा मानसिंह प्रतिमा को इसलिए दूध से धुलवा दिया था क्योंकि उसका अनावरण पिछड़ा वर्ग के शिवराज सिंह चौहान ने किया था। खैर, राजनीति में कब अपने पराए हो जाते हैं और पराए अपने, कहा नहीं जा सकता। फिलहाल तो यही कहना होगा कि भाजपा तमाम खामियों के बाद भी सच्ची लोकतांत्रिक पार्टी है। यही कारण है कि एक ऐसा आदमी जो स्वदेश के दफ्तर में जिस टेबल पर अपनी खबर लिखता था, रात में उसी टेबल पर सो जाता था, भारतीय राजनीति में उत्तरोत्तर सोपान चढ़ रहा है। प्रभात झा ने सिद्धांत, मूल्यपरक और स्वस्थ राजनीति की जो लकीर खींची है, उम्मीद है भाजपा उस पर आगे बढ़े। प्रभात झा ने यही किया, भाजपा को कांग्रेस संस्कृति से बाहर निकालकर सादगी, शुचिता और मूल्यों की राजनीति की धारा में लाए।
प्रभात झा ने ढाई साल पहले प्रदेशाध्यक्ष बनते ही अपने काम करने के तौर तरीके जाहिर कर दिए थे। मेरे स्वागत-सत्कार में कोई बैनर और होर्डिंग नहीं लगाया जाएगा। कार्यकर्ताओं को यही सबसे पहले निर्देश थे उनकी ओर से। वे जानते हैं, भारतीय जनता पार्टी के पितृपुरुष कभी नहीं चाहते थे कि भाजपा में व्यक्ति पूजा को महत्व दिया जाए। व्यक्तिवाद को बढ़ावा मिले। यह कैडर आधारित पार्टी है। यहां संगठन और सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, व्यक्ति नहीं। उन्होंने दूसरा जरूरी काम किया कि पार्टी को पार्टी कार्यालय से चलाया, बंगले से नहीं। प्रभात झा से पूर्ववर्ती प्रदेशाध्यक्ष बंगले से ही सारे राजनीतिक कार्यक्रम संचालित करते थे। ऐसे में पार्टी कार्यालय खाली-खाली सा रहता था। प्रभात झा के प्रदेशाध्यक्ष बनने से पार्टी कार्यालय में रौनक बढ़ गई। लगने लगा कि यह सत्तारूढ़ पार्टी का कार्यालय है। प्रदेश के पार्टी कार्यालय में ही प्रदेशभर के कार्यक्रमों की रूपरेखा बनना शुरू हो गई।
प्रभात झा का व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में भी गढ़ा गया है। वहीं उन्होंने सीखा कि कार्यकर्ता को अपने कार्य से सीख दो, सिर्फ भाषण से नहीं। उन्होंने मंडल-मंडल में प्रवास शुरू कर मंत्रियों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को नींद से जगाना शुरू किया। उन्होंने सबको साफ शब्दों में कह दिया आपको जो जिम्मेदारी पार्टी ने दी है, जनता ने दी है उसका निर्वहन ठीक ढंग से किया जाए। अपने-अपने क्षेत्र में लोगों से मिलो, संपर्क करो, दौरे करो। कुर्सी मिल गई है तो काम करो वरना कुर्सी जाते देर नहीं लगेगी। एक साधारण से कार्यकर्ता को अहसास कराया कि भाजपा तुम्हारी पार्टी है, तुम्हारे सहयोग के बिना नहीं चल सकती। सेठ-साहूकारों की जगह उन्होंने आम कार्यकर्ता से १०-१० रुपए चंदा एकत्र कराया ताकि कार्यकर्ता में समर्पण का भाव जगे। स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे के बाद प्रभात झा ऐसे प्रदेशाध्यक्ष हैं जिन्होंने अपने एक ही कार्यकाल में प्रदेश के लगभग सभी मंडलों में प्रवास किया, एक बार नहीं कई जगह तो कई बार पहुंचे। उनके लगातार संपर्क और अथक मेहनत का ही नतीजा रहा कि भाजपा उनके कार्यकाल में कोई भी उपचुनाव नहीं हारी। कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में भी जीत का परचम पहराया। स्थानीय नगर पालिका और नगर पंचायतों के चुनाव में भी पार्टी को विजय मिली। प्रभात झा ने कभी भी किसी जीत को अपनी या किसी और व्यक्ति विशेष की मेहनत नहीं बताया। उन्होंने हर जीत के बाद यही कहा कि यह जीत पार्टी की जीत है, अनुशासन की जीत है, कार्यकर्ताओं की मेहनत की जीत है। वर्ष २०११ में प्रदेश में कई जगह स्थानीय निकायों के चुनाव चल रहे थे। प्रभात झा प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते सभी जगह पहुंचकर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे थे। शाजापुर नगरपालिका के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी की आर्थिक स्थिति कुछ कमजोर थी। चुनाव खर्च उसके लिए मुश्किल खड़ी कर रहा था। प्रभात झा को इस बात का जैसे ही पता चला, उन्होंने तुरंत मौके पर ही उन्हें अपना एक माह का वेतन उस कार्यकर्ता को चुनाव लडऩे के लिए दे दिया। उनके इस प्रयास का असर बाकी कार्यकर्ताओं पर भी हुआ। शाजापुर नगरपालिका का अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे कार्यकर्ता के चुनाव प्रचार के लिए उसी दिन करीब १२ लाख रुपए जमा हो गए।
प्रभात झा भाजपा सरकार के श्रेष्ठ पालक साबित हुए। वे उच्चकोटि के पत्रकार रहे हैं। पत्रकारों को क्या खबर चाहिए, बेहतर जानते हैं प्रभात झा। अपने इसी चातुर्य का फायदा उन्होंने मुख्ममंत्री और भाजपा सरकार का संरक्षण करने में किया। वे ढाई साल तक पत्रकारों से लेकर कांग्रेसी नेताओं को अपने मायाजाल में ही उलझाकर रखे रहे। लगातार कांग्रेसी नेताओं पर बयानबाजी कर उन्हें घेरे रखा। उन्हें फुरसत ही नहीं दी कि वे भारतीय जनता पार्टी को सदन या सदन के बाहर घेर सकें। प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अधिक समाचार माध्यमों और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय प्रभात झा हो गए थे। यही कारण है कि प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने उन्हें डेंजर की उपाधि से नवाजा। प्रभात झा का कार्यकाल पूरा होने पर अजय सिंह ने राहत की सांस लेते हुए कहा भी - अहा! हमारा डेंजर चला गया।
हालांकि प्रभात झा को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलना अप्रत्याशित है। उनके मुताबिक परमाणु विस्फोट जैसा ही है। २०१३ विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। ढाई साल में प्रभात झा ने जो मेहनत की उसकी परीक्षा का समय आ रहा था। प्रभात झा की संगठन पर बढ़ती पकड़ और लोकप्रियता प्रदेश के मुख्यमंत्री को सशंकित करने लगी थी। उस पर भी प्रभात झा मुख्यमंत्री को हटाकर स्वयं प्रदेश के मुखिया बनना चाहते हैं, जैसी अफवाहों से बाजार गर्म था। इन सब कारणों से शिवराज सिंह चौहान प्रभात झा को फिर से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर देखना नहीं चाहते थे। वे अपने किसी विश्वस्त सिपहसलार को पार्टी संगठन की कमान सौंपना चाह रहे थे। वे ऐसे किसी चेहरे की तलाश में थे कि उनके सामने नरेन्द्र सिंह तोमर को आगे कर दिया गया। एक सुनियोजित योजना के तहत नरेन्द्र सिंह प्रदेश में अपनी वापसी के लिए प्रयासरत भी थे। आखिर शिवराज सिंह चौहान का वरदहस्त पाकर नरेन्द्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। हालांकि इसके पीछे राजनीति की लंबी कहानी है, जिसके बीज उत्तरप्रदेश के चुनावी संग्राम के समय ही बोए जा चुके थे। इसकी फसल नरेन्द्र सिंह तोमर काटेंगे। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में २०१३ के चुनाव जीतना तय बात है। यह भी तय बात है कि शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी होगी। लेकिन, यह बात भी गांठ बांध ली जाए कि शिवराज सिंह चौहान अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई और ही सुशोभित होगा। शिवराज सिंह चौहान जिस नरेन्द्र सिंह तोमर को अपना हितैषी और खास समझ रहे हैं तो उन्हें करीब तीन साल पुराना घटनाक्रम याद करना होगा। ये वही ठाकुर नरेन्द्र सिंह तोमर हैं जो शिवराज सिंह चौहान को ओबीसी कैटेगिरी का ठाकुर समझते हैं। उन्हें अपने से कमतर आंकते हैं। ये वही नरेन्द्र सिंह तोमर हैं जिन्होंने ग्वालियर में स्थापित महाराजा मानसिंह प्रतिमा को इसलिए दूध से धुलवा दिया था क्योंकि उसका अनावरण पिछड़ा वर्ग के शिवराज सिंह चौहान ने किया था। खैर, राजनीति में कब अपने पराए हो जाते हैं और पराए अपने, कहा नहीं जा सकता। फिलहाल तो यही कहना होगा कि भाजपा तमाम खामियों के बाद भी सच्ची लोकतांत्रिक पार्टी है। यही कारण है कि एक ऐसा आदमी जो स्वदेश के दफ्तर में जिस टेबल पर अपनी खबर लिखता था, रात में उसी टेबल पर सो जाता था, भारतीय राजनीति में उत्तरोत्तर सोपान चढ़ रहा है। प्रभात झा ने सिद्धांत, मूल्यपरक और स्वस्थ राजनीति की जो लकीर खींची है, उम्मीद है भाजपा उस पर आगे बढ़े। प्रभात झा ने यही किया, भाजपा को कांग्रेस संस्कृति से बाहर निकालकर सादगी, शुचिता और मूल्यों की राजनीति की धारा में लाए।
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लोकेन्द्र जी का सार्थक आलेख है मी प्रभात जी को दिल्ली से ही जनता हु बहुत अच्छे साधक लेखक जमीनी कार्यकर्ता है इस लेख के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंराजनीति में जिससे खतरा होता है या आगे बढ़ने लगता है उसके पर काट दिए जाते है,
जवाब देंहटाएंrecent post : समाधान समस्याओं का,
जानकारीपूर्ण आलेख. मेरे लिये सब कुछ नया है क्योंकि देश की दलगत राजनीति से कभी कोई सम्बन्ध नहीं रहा, विशेषकर मध्य प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य के बारे में कुछ भी नहीं पता.
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंशिवराज का ये बर्ताव वाकई में दुखद है। दर असल आज भाजपा की सबसे बडॆ दुश्मन भाजपा ही बनी हुई है। और नेताओं के ये हरकते आम कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी विचारको को ठेस पहुंचाती हैं और दीर्घकालीन असर डालती हैं। वहीं तोमर का सुपॆरियरिटॆ कोम्प्लेक्स भी आत्मघाती है। जो उन्हें लम्बी रेस का घोडा नहीं बनाने देगी। संघ और भाजपा जैसे संगठनो में जहां जातिगत उच्चता और नीचता का कोइ स्थान नहीं है, वैसे में ये नेता लोग अभी भी घटिया मानसिकता पाले हुए हैं। इस प्रकरण से न केवल कार्यकर्ताओं का सद्भाव आहत होगा बल्कि आम जनता भी सोचेगी की एम् पी में सी एम् तो ठाकुर है ही, प्रदेश अध्यक्ष भी ठाकुर। यानी भाजपा में ठाकुरवाद चल रहा है।
राजस्थान में भी यही हाल है, एक और वसुंधरा का राज्यव्यापी असर हैं वही दूसरी और गुलाबचंद कटारिया अपनी दूकान खोले बैठे रहते हैं। एक -दो गुट और हैं। दूसरी ओर एक दूसरे के घोर विरोधी कोंग्रेसी हमेशा पार्टी हित में एकजुट हो जाते हैं। उत्तरांचल का बहुगुणा-रावत प्रकरण इसकी मिसाल है।
उम्मीद है आपके लेख से शीर्ष नेतृत्व की आँखे खुले।
yes every word true.......very nice writing.............parvatji....holy heart..and gr8 person...i know
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