म ध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
समाज के प्रत्येक वर्ग के करीबी हो गए हैं। जब कोई अपना हो जाता है तो उसे
उसके मुख्य नाम से नहीं बुलाते। उसके लिए प्यार से एक नया नाम यानी निकनेम
रखते हैं। प्रदेश में लिंगानुपात बहुत अधिक है। लड़का-लड़की के भेद को कम
करने के लिए मुख्यमंत्री ने लाडली लक्ष्मी योजना शुरू की। इसके बाद शिवराज
सिंह प्रदेशभर की बच्चियों के 'मामा' बन गए। किसान खुशहाल हों तो प्रदेश भी
तरक्की की राह पकड़ ले। यही सोचकर मुख्यमंत्री ने किसानों के लिए जीरो
फीसदी पर कर्ज मुहैया कराने की योजना शुरू की। यानी ब्याज जीरो, किसान हीरो
का नारा देकर वे किसानों के मसीहा बन गए। किसान पुत्र बन गए। हाल ही में
बुजुर्गों को मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना के तहत तीर्थ यात्रा पर भेजकर
शिवराज इस युग के 'श्रवण कुमार' बन गए। काफिला रुकवाकर किसी की दुकान से
जलेबी तो किसी ठेलेवाले से पोहा खाना, लोगों के कंधे पर हाथ रखकर उनका
हालचाल पूछना और गांव-गांव संपर्क करने से उन्हें 'पांव-पांव वाले भैया' के
नाम से पुकारा जाने लगा। योग और गीताज्ञान को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम
में शामिल कराकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को संघ का खाटी 'स्वयंसेवक'
कहलाने में गुरेज नहीं। भेष बदलकर, चोरी-छिपे जनता का हाल जानने सड़कों पर
निकलकर 'विक्रमादित्य' बन गए शिवराज। प्रदेश में लोकप्रियता के चरम पर हैं
शिवराज सिंह चौहान। मुख्यमंत्री की लोकप्रियता के बारे में एक लाइन में कुछ
कहना हो तो - मध्यप्रदेश का मुखिया भारत के दिल पर काबिज है और आगे भी
रहने वाला है।
शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता, पार्टी गाइडलाइन का पालन, वरिष्ठ नेताओं व पार्टी संगठन से सांमजस्य और विरोधियों की प्रशंसा करने के गुण उन्हें अन्य नेताओं से अलग करते हैं। 29 नवंबर, 2005 को उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सात साल से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान की शैली ऐसी है कि कोई उनसे नाराज नहीं होता। यहां तक कि विरोधी भी उनकी विनम्रता के मुरीद हो जाते हैं। विधानसभा की कार्यवाही में भी अकसर दिख जाता है कि कांग्रेस भाजपा सरकार को तो घेरने के प्रयास करती दिखती है लेकिन सीएम को निशाना नहीं बनाती। हाल ही में ग्वालियर में स्वर्गीय माधवराज सिंधिया प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में कांग्रेस के युवा मंत्री ज्योतिरादित्य ने मुख्यमंत्री की कार्यशैली, विनम्रता और वाकपटुता की खुलकर प्रशंसा की। सिंधिया ने मुख्यमंत्री की प्रशंसा उस वक्त की है जबकि प्रदेश कांग्रेस का एक धड़ा उन्हें कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर २०१३ के चुनाव फतेह करना चाहता है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी कहते हैं कि एक सफल शासक में जिस प्रकार की विनम्रता जरूरी है, शिवराज का व्यक्तित्व उस पहलू को बहुत उजागर करता है।
किसान परिवार में जन्मे और किरार जाति (पिछड़ा वर्ग) से संबंध रखने वाले शिवराज सिंह चौहान का भाषण देना का अंदाज भी निराला है। जिस तरह कथावाचक अपने श्रोताओं को बांधकर रखता है वैसे ही शिवराज सिंह चौहान अपनी बात आहिस्ता-आहिस्ता जनता के मन में गहरे तक उतार देते हैं। सरकार की उपलब्धि पर वे मंच से जनता की हामी भरवा लेते हैं और केन्द्र सरकार के खिलाफ अपनी बात पर लोगों की मुहर भी लगवा लेते हैं।
जाति फैक्टर का भारतीय राजनीति में बड़ा महत्व है। किसी भी प्रांत की राजनीति पर नजरें दौड़ा लें तो जाति बड़ा कारक सामने आता है। उत्तरप्रदेश में यादव, ब्राह्मण और दलित राजनीति का बोलबाला है। बिहार में भी भाजपा के आने से पहले यही हाल था। शिवराज सिंह चौहान इस मामले में भी अन्य राजनेताओं से अलग दिखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में पाए गुणों के कारण ही वे समरस समाज का स्वप्न देखते हैं और जातिगत राजनीति से दूर रहते हैं। वर्ष २००५ में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान को ग्वालियर आने के लिए उनके जातिगत समाज ने बुलावा भेजा। किरार समाज ने अपनी जाति के साधारण से किसान पुत्र को बुलंदी चूमने पर सम्मानित करने का निर्णय लिया था। वीरागंना लक्ष्मीबाई समाधिस्थल के सामने मैदान में मुख्यमंत्री के सम्मान का समारोह आयोजित किया गया। मंच से किरार जाति के नेताओं ने समाजहित की चिंता करते हुए कुछ अपेक्षाएं अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समझ व्यक्त कीं। माइक संभालते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सम्मान के लिए समाज को धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्होंने भरे मंच और मैदान में कहा- शिवराज किसी एक समाज का नहीं है। उसे प्रदेश के हर समाज, प्रत्येक वर्ग की चिंता का गुरुतर दायित्व प्रदेश की सारी जनता ने दिया है। इसीलिए आपसे माफी मांगते हुए कहता हूं कि मैं महज किरार समाज का नहीं वरन् सब समाज का हूं।
भारतीय राजनीति में किसी भी नेता के लिए जाति के बड़े-बड़े नेताओं के सामने इस तरह की बात कहना इतना आसान नहीं होता लेकिन जिसे समाज को समरस बनाना हो उसके लिए इतना कठिन भी नहीं होता है। वरना वोटों और कुर्सी के भूखे नेता ऑनर किलिंग तक का समर्थन कर जाते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यही व्यक्तित्व है, जिसके आगे विपक्ष टिक नहीं पा रहा है और भाजपा के लिए मिशन-२०१३ की राह भी आसान दिख रही है।
शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता, पार्टी गाइडलाइन का पालन, वरिष्ठ नेताओं व पार्टी संगठन से सांमजस्य और विरोधियों की प्रशंसा करने के गुण उन्हें अन्य नेताओं से अलग करते हैं। 29 नवंबर, 2005 को उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सात साल से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान की शैली ऐसी है कि कोई उनसे नाराज नहीं होता। यहां तक कि विरोधी भी उनकी विनम्रता के मुरीद हो जाते हैं। विधानसभा की कार्यवाही में भी अकसर दिख जाता है कि कांग्रेस भाजपा सरकार को तो घेरने के प्रयास करती दिखती है लेकिन सीएम को निशाना नहीं बनाती। हाल ही में ग्वालियर में स्वर्गीय माधवराज सिंधिया प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में कांग्रेस के युवा मंत्री ज्योतिरादित्य ने मुख्यमंत्री की कार्यशैली, विनम्रता और वाकपटुता की खुलकर प्रशंसा की। सिंधिया ने मुख्यमंत्री की प्रशंसा उस वक्त की है जबकि प्रदेश कांग्रेस का एक धड़ा उन्हें कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर २०१३ के चुनाव फतेह करना चाहता है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी कहते हैं कि एक सफल शासक में जिस प्रकार की विनम्रता जरूरी है, शिवराज का व्यक्तित्व उस पहलू को बहुत उजागर करता है।
किसान परिवार में जन्मे और किरार जाति (पिछड़ा वर्ग) से संबंध रखने वाले शिवराज सिंह चौहान का भाषण देना का अंदाज भी निराला है। जिस तरह कथावाचक अपने श्रोताओं को बांधकर रखता है वैसे ही शिवराज सिंह चौहान अपनी बात आहिस्ता-आहिस्ता जनता के मन में गहरे तक उतार देते हैं। सरकार की उपलब्धि पर वे मंच से जनता की हामी भरवा लेते हैं और केन्द्र सरकार के खिलाफ अपनी बात पर लोगों की मुहर भी लगवा लेते हैं।
जाति फैक्टर का भारतीय राजनीति में बड़ा महत्व है। किसी भी प्रांत की राजनीति पर नजरें दौड़ा लें तो जाति बड़ा कारक सामने आता है। उत्तरप्रदेश में यादव, ब्राह्मण और दलित राजनीति का बोलबाला है। बिहार में भी भाजपा के आने से पहले यही हाल था। शिवराज सिंह चौहान इस मामले में भी अन्य राजनेताओं से अलग दिखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में पाए गुणों के कारण ही वे समरस समाज का स्वप्न देखते हैं और जातिगत राजनीति से दूर रहते हैं। वर्ष २००५ में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान को ग्वालियर आने के लिए उनके जातिगत समाज ने बुलावा भेजा। किरार समाज ने अपनी जाति के साधारण से किसान पुत्र को बुलंदी चूमने पर सम्मानित करने का निर्णय लिया था। वीरागंना लक्ष्मीबाई समाधिस्थल के सामने मैदान में मुख्यमंत्री के सम्मान का समारोह आयोजित किया गया। मंच से किरार जाति के नेताओं ने समाजहित की चिंता करते हुए कुछ अपेक्षाएं अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समझ व्यक्त कीं। माइक संभालते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सम्मान के लिए समाज को धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्होंने भरे मंच और मैदान में कहा- शिवराज किसी एक समाज का नहीं है। उसे प्रदेश के हर समाज, प्रत्येक वर्ग की चिंता का गुरुतर दायित्व प्रदेश की सारी जनता ने दिया है। इसीलिए आपसे माफी मांगते हुए कहता हूं कि मैं महज किरार समाज का नहीं वरन् सब समाज का हूं।
भारतीय राजनीति में किसी भी नेता के लिए जाति के बड़े-बड़े नेताओं के सामने इस तरह की बात कहना इतना आसान नहीं होता लेकिन जिसे समाज को समरस बनाना हो उसके लिए इतना कठिन भी नहीं होता है। वरना वोटों और कुर्सी के भूखे नेता ऑनर किलिंग तक का समर्थन कर जाते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यही व्यक्तित्व है, जिसके आगे विपक्ष टिक नहीं पा रहा है और भाजपा के लिए मिशन-२०१३ की राह भी आसान दिख रही है।
जाति, धर्म, भाषा के बंधनों से उठे बिना राष्ट्रधर्म की बात ही बेमानी है!
जवाब देंहटाएंशिवराज जी से आशाएं तो हैं । इससे शायद कोई इनकार नही करेगा ।
जवाब देंहटाएंमेरी राजनीति की समझ बहुत गहरी नहीं हैं.. लेकिन जब आपने कहा है तो इनकार नहीं कर सकता!!
जवाब देंहटाएंनेता ऐसा ही होना चाहिये - बड़बोला न हो, विनम्र हो, इरादे नेक हों और सबको साथ लेकर चलने का माद्दा हो।
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