उफ! बड़े दिन बाद कुछ लिखने का मौका मिला है। थोड़ी राहत की सांस ले रहा हूं। पत्रकारिता में आकर बुरा फंस गया हूं, लेकिन जितना फंसा हूं उतना ही मजा भी आ रहा है। .... तो साहब अपनी फिलहाल तो यह स्थिति है कि रबड़ी खा भी रहे हैं और उसके दोष भी गिना रहे हैं। जब से पत्रकारिता के मैदान में कूदा हूं न खाने का वक्त बचा है, न सोने का कोई ठीक समय है। हमारे पुरखे कहते हैं कि ब्रह्म मूहूर्त में उठो, लेकिन हम उसी समय सोने के लिए बिस्तर टटोलते हैं। सुबह का सूरज चादर तले कभी सपने में दिख जाए तो ठीक नहीं तो जय रामजी की। मध्य प्रदेश का वासी हूं सो जब आँख खुलती है तो जलता हुआ बल्ब भी नसीब नहीं होता। इसी बात पर एक चुटकुला याद आया- एक अंग्रेज आया हिन्दी सीखने, मप्र में रहने लगा और जब गया तो दो वाक्य सीखे हिन्दी के दो वाक्य सीखे एक बिजली आ गई और दूसरा बिजली चली गई। हां तो कह रहा था कि सुबह का सूरज... और शाम का डूब जाता है ऑफिस में, कम्प्यूटर के आगे गिटर-पिटर करते-करते।
...........सामाजिक रिश्तों से यूं दूर हुआ कि मेरे पडोस में रहने वाला दोस्त भी कहता है कि कहां गया था यार, बहुत दिन से दिखा नहीं। किताबें पढऩे का शौक तो लगता है बहुत दूर छूटते जा रहा है। कई दोस्तों से किताबें ले रखी हैं पढऩे के लिए वक्त मिले तो पढूं। उनकी किताबें वापस न करने से अपनी तो साख पर बट्टा लग गया है। जिसे देखो कह देता है देखो लोकेन्द्र बदल गया है इसे किताबें न देना, मेरी अभी तक वापस नहीं की हैं। पहले अपन जिससे किताब लेते थे नियत समय पर वापस करते थे या फिर थोड़ी शेष रहने की स्थिति में उससे अनुमति लेकर कुछ दिन रख लेते थे। ...........मेरी होने वाली पत्नी की सौत हो गई है पत्रकारिता। वो जब भी फोन करती हैं तब या तो हम सो रहे होते हैं या फिर अखबार पढ़ रहे होते हैं। अक्सर यह कहकर फोन काट देती हैं कि-जब आपके अपने अखबारों से फुरसत मिल जाए तो इस सबला नारी को भी याद कर लेना, हम होंठ सिले सुनते रहते हैं और उनके फोन काटने का इंतजार करते हैं। ...........अरे यार मैं भी न.... समय मिला तो कुछ लिखने की जगह अपनी व्यथा सुनाने लगा आपको। चलो यार अब जैसी भी जिंदगी है इसे भी मजे से जीना है और जो भी लिख गया है आप उसे उतने ही मजे से पढ़ लीजिएगा। वैसे एक सलाह दूं (चेतावनी : मुफ्त की सलाह से बचो) - अगर कोई पत्रकारिता में आना चाह रहा हो तो न आना और न ही अपने बच्चों को भेजना ओके। रहने दो आप तो आ ही जाना बड़ा मजा आएगा शानदार करियर है इस क्षेत्र में बस आत्मविश्वास और जूझने की प्रवृत्ति हो आपके मन में, फिर कोई पंगा नहीं। पहले रखना पहले वाली मुफ्त की सलाह थी।
बहुत खूब लोकेन्द्र भाई.....
जवाब देंहटाएंकुवर जी,
badhiya likha panchu !
जवाब देंहटाएंbahut khoob. dil ki bat kah di yar.
जवाब देंहटाएंये तो होता ही है लोके्द्र, चिंता नहीं करना है, लगे रहो
जवाब देंहटाएंYe Kya ho gaya Lokendra ?
जवाब देंहटाएंTheek toh ho na ?
Sanjeewani le lo Himalaya ki
पंचू भैया अब आ ही गए हो तो क्या करोगे। कहते हैं कि एक बार आदमी पत्रकार बन जाए तो फिर और किसी लायक नहीं रहता। अब आप पत्रकार बन ही गए हैं तो इसका आनंद लीजिए।
जवाब देंहटाएंपत्रकारीय जीवन के भी अपने मजे हैं। जब सारी दुनिया दफ्तर के घर लौटती है तो आप दफ्तर के लिए निकल रहे होते हैं। सारी दुनिया सो रही होती है तो आप व्यस्त होते हैं। इसके अलावा भी फायदे हैं। सबसे बड़ी बात आपका अखबार पढ़कर ही किसी व्यक्ति की सुबह होती है। कई लोगों की आदत होती है कि वह बिना अखबार पढ़े .....नहीं कर पाते। आप उनकी मदद करते हैं। है ना मजेदार। तो जनाब परेशान मत होइए बस मजा लीजिए।
चलो जान कर अच्छा लगा .... आप अपनी होनी वाली पत्नी की सौत से अच्छी तरह से निबाह रहे हैं .... आपकी होने वाली पत्नी को ये बात ज़रूर पसंद आएगी ....
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंआपने बड़ी संवेदना के साथ पत्रकारिता से जुडी अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं. आपकी दुविधाएँ, संकल्प और गर्व इस पोस्ट में स्पष्ट हुई है.
जवाब देंहटाएंसमाज में पत्रकारिता की भूमिका और आजीविका के रूप में पत्रकारिता पर यथोचित बहस मेरे ध्यान में नहीं आयी है. पत्रकारिता के माध्यम से जितना लिखा जाता है, उसका सूक्ष्मांश भी पत्रकारिता को लेकर नहीं लिखा गया है. मेरी समझ से पत्रकार ऐसे सैनिक होते हैं जो नागरिक, समाज, देश और मानवता के अनेक शत्रुओं से निरंतर युद्धरत रहते हैं. उनके योगदान को यथेष्ठ पहचान नहीं मिली है. मेरे विचार से इस मुद्दे पर व्यापक बहस होनी चाहिए. आप अपने ब्लॉग से शुरुआत कर सकते हैं.
तुमने मेरे दिल की बात कह दी। मैं भी काफी दिनों से सोच रहा था। कभी-कभी तो लगता है, कहां आ गए। फिर समझा लेते हैं कि ठीक है कुछ अलग तो है। अब अगर इसमें आ ही गए हैं, तो क्या दिन, क्या रात। सब एक जैसे हैं। एक बात कहूं। शायद इसलिए ये जुमला प्रचलित है कि पत्रकारों को शादी नहीं करनी चाहिए। वर्तमान स्थितियों को देखते हुए वर्तमान में सभी पत्रकारों का अगर एक सर्वे किया जाए तो यही बात सामने आएगी। बुरे फंसे यार...। हो सकता है कि कुछ संतुष्ट भी हों। यहां एक छोटी सी लघुकथा याद आती है। एक लड़के को देखने लड़की वाले आते हैं। लड़का बेचारा बदकिस्मती से पेशे से पत्रकार है और अखबार में नौकरी करता हैं। लड़की के पिता ने लड़के के पिता से पूछा कि लड़का क्या करता है। पत्रकार का पिता ेबेचारा सहमा सा क्या कहता। कह दिया कि पत्रकार है। लड़की के पिता ने जवाबी लहजे में फिर पूछ लिया कि पत्रकार तो है, लेकिन करता क्या है। एक दो बार यही चला। लड़की के पिता ने साफ कह दिया कि ठीक है, लेकिन कमाता कितना है। भाई तो ये हालत है, पत्रकारों की। समझे। संभल जाओ, तुम्हारी भी शादी नहीं हुई, वैसे हुई तो मेरी भी नहीं है। कहीं दूसरा ठिकाना ढूंढें क्या ? कभी-कभी तो मन करता है, लेकिन ये कीड़ा बेकार है। क्या करें...
जवाब देंहटाएंलोकेंद्र भाई पहली बार किसी का ब्लाग पड़ा। अच्छा। लिखा भी अच्छा है। आपने मुफ्त की सलाह दी है कि पत्रकारिता में नहीं आना। इसी बात पर एक कहानी याद आई। गांव का एक युवक था पहली बार शहर में खरीदारी करने आया था इसलिए उसकी मां ने खूब समझाा बुझाा कर भेजा था। बेटा दुकानदार जिस किसी सामान के जो भी दाम बताए ठीक उसके आधे कर देना । इससे तू ठगाई नहीं आएगा। युवक ने भी मां की बात मानी और शहर में खरीदारी करने पहुंच गया। सबसे पहले उसने मां के लिए साड़ी ली। दुकानदार बोला 300 रुपए की है। युवक को मां की सीख याद आई और बोला 150 की दोगेंं। काफी जद्दोजहद के बाद दुकानदार 150 रुपए पर आ गया। तभी युवक तपाक से बोला 75 रुपए की देगा दुकानदार झल् ला गया और बोल पड़ा फ्री में ले जा। युवक फिर भी नहीं समझा क्यों कि मां ने सीख जो दी थी। मुफ्त में एक नहीं दो लूंगा। सो भाई सलाह तुमने एक नहीं दो दी अच्छा किया। हमारा देश भले ही 21 भी शताब्दी में चला गया लेकिन सोच आज भी ग्रामीण परिवेश की है और लकीर के फकीर बने रहने की आदत भी कम नहीं। मैं भी कुछ इसी प्रकार का हूं। इसलिए निश्चित है तुम्हारी पहली सलाह लोग अवश्यक मानेंगे। अब बात करते है सोने जागने और होने वाली पत् नी से बात करने की तो भाई मैं भी एक सलाह दे रहा हूं। होने वाली पत्नी से जरूर बात करें। बात करते में इस बात का भी ध्यान रखे कि ज्यादा भावुक न हो और अपने अंदर की बात नहीं बताएं। क्योंकि अभी वह आपकी पत्नी होने वानी है न की हो गई है। परिवार में जिस व्यक्ति को आप सबसे ज्यादा प्यार करते है उसके बारे में अवश्य बताएं क्यों कि शादी के बाद उस व्यक्ति की आपकी पत् नी से ठीक वहीं आशाएं होगी जो वह आप से करता / करती है इससे उसे भी काफी मदद मिलेगी। अब थोड़ा सा दर्शनीक बन । जाऊ सोने जागने का कोई समय नहीं होता, जब सौ तभी रात और जब जागों तभी सुबह । मतलब समझ मैं नहीं आए तो जयशंकर प्रसाद का व्यग्य टार्च बेचने वाला पड़ लेना। समझ में आ जाए तब भी पड़ लेना। मेरा विश्वास में एक बार पढऩे के बाद या तो बार- बार पढ़ोगें या फिर जिंदगी भर याद रखोंगे इतना अच्छा लिखा है।
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