बीना स्टेशन। स्वर्णजयंती एक्सपे्रस। २७ जुलाई २०११। सार्थक ग्वालियर से भोपाल जा रहा था। उसकी भोपाल में पोस्टिंग हो गई थी। वह वहां एक अखबार में काम करता है। बीना स्टेशन पर ट्रेन को रुके हुए १५ मिनट से ज्यादा वक्त बीत गया था। सभी यात्री गर्मी और उमस से बेहाल थे। महीना तो सावन का था, लेकिन भीषण गर्मी और पसीने से तरबतर शरीर से चैत्र मास का अहसास हो रहा था। कई लोग उमस से परेशान हो कर डिब्बे से उतरकर प्लेटफार्म पर खड़े हो गए थे। जिसके हाथ जो था वह उसी से हवा करने की कोशिश में था। सब की एक ही चाह थी कि जल्द ही ट्रेन चल दे तो थोड़ी राहत मिले।
'अहा! ट्रेन चल दी।' एक हल्के से झटके से सार्थक को यह अहसास हुआ। उसने सुकून की लम्बी सांस खींची और सीट से अपनी पीठ टिका दी। ट्रेन ने हल्की गति भी पकड़ ली।
लेकिन तभी, 'उफ! यह क्या हुआ?' प्लेटफार्म पर बदहवास चीखते-चिल्लाते ट्रेन के बराबर में एक महिला को भागते देखकर अनायस सार्थक के मुंह से निकला। वह जोर-जोर से बिट्टो-बिट्टो पुकार रही थी। बिट्टो शायद उसकी बेटी का नाम था। जो ट्रेन में अपने पिता के साथ सफर कर रही थी। हां, बिट्टो उसी की बेटी है। कोई १०-११ साल की लड़की। सार्थक को याद आया कि थोड़ी देर पहले ही तो वह मेरी खिड़की के पास खड़ी थी। वह अपने पति और बेटी को छोडऩे स्टेशन आई थी। उस समय गर्मी से परेशान सार्थक के कानों में भी उनकी बातें घुल रहीं थीं। वह अपने पति से कह रही थी- 'मुझे भी साथ चलना है।'
'हां बाबा। मैं जल्द ही तुम्हें ले जाऊंगा।' पति लाड़ से उसे समझाते हुए कह रहा था।
'जल्द ही मतलब जल्द ही मुझे ले जाना और हां ट्रेन में बिट्टो का ध्यान रखना। पानी की बोटल रख ली या नहीं। गर्मी बहुत है।' - महिला ने अपने पति को हिदायत देते हुए कहा।
इसके बाद सार्थक खुद अपने सुबह में खो गया। सुबह जब वह तैयार हो रहा था तो उसकी पत्नी के भी लगभग यही वाक्य थे। भारतीय नारियों के हृदय में कितना साम्य होता है। अगर वह पश्चिमी जीवन शैली की चपेट में न आई हो तो। खैर...
फिर अचानक इसे क्या हुआ? ये इस तरह क्यों चीख रही है? तरह-तरह के उलझे हुए सवाल सार्थक के दिमाग में दस्तक देने लगे। अच्छा खुद ही उनके तरह-तरह जवाब भी तलाश रहा था। ट्रेन जब तक रुकी थी बेटी और पति उसके पास थे, लेकिन जैसे ही गाड़ी ने चलना शुरू किया होगा उसकी ममता जाग उठी होगी। उसकी छाती बेटी से बिछडऩे के भय से बैठने लगी होगी। मां आखिर मां होती है। हां यही कारण तो मौजूं दिखता है। उसके इस तरह बेसुध होकर बिट्टो-बिट्टो पुकारते हुए भागने के लिए। बेटी से बिछडऩे की पीढ़ा उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। पति से दूर रहने का गम एक बारगी भारतीय स्त्री सह सकती है, लेकिन अपने बच्चों से दूर उससे नहीं रहा जाता। हां, यही सच है।
गाड़ी तेज होती जा रही थी। वह अब भी और जोर लगाकर दौड़ रही थी। आंखों से आंसुओं की नदी बह रही थी। वह बिट्टो के अलावा और कुछ बोल भी नहीं पा रही थी। उस क्षण सार्थक के मन में एक ही बात ने जोर मारा। जल्दी से चेन खींचकर गाड़ी को रोका जाए। यह सोचते हुए सार्थक ने चेन पुलिंग के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि गाड़ी से कूदता हुआ उसका पति उसे दिखा। गाड़ी से इस तरह उतरते समय वह गिरते-गिरते बचा था।
'क्या हुआ? क्या बात है?' उसने अपनी पत्नी का चेहरा दोनों हाथों में भरकर उससे पूछा। ऐसी किसी स्थिति में पुरुष अक्सर क्रोधित हो जाते हैं। उसने विस्मय और परेशानी के लहजे में यह पूछा था। लेकिन, अब भी महिला के मुंह से सिवाय बिट्टो के कुछ नहीं निकला। वह और कुछ नहीं कह पाई। इस पर भागते हुए उस युवक ने गाड़ी से अपनी बेटी को उतारा। प्लेटफार्म पर तीनों मां-पिता और बेटी एक दूसरे से लिपटकर खड़े हो गए। महिला अभी भी सिसक-सिसक कर रो रही थी। उसके पति की भी आंखे नम हो गई थी। उसने पत्नी और बेटी को अपने कलेजे से ऐसे चिपका लिया जैसे सालों बाद उनसे मिला हो। सार्थक भी नम पलकों से उन्हें तब तक निहारता रहा। जब तक वे उसे नजर आए। इसके बाद भोपाल तक रास्ते भर वे उसके जेहन में बने रहे।
दो शब्द : यह एक सत्य घटना है। जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। इसे मैंने एक लघुकथा का रूप देने की कोशिश की है। पता नहीं सफल रहा या असफल। इतना तो पता है कि मैं उस मां निश्चल प्रेम और अपनी बेटी के लिए उसकी तड़प अंकित करने में असफल रहा।
मार्मिक घटना! ममता और वात्सल्य से बडी भावनायें क्या हो सकती हैं भला?
जवाब देंहटाएंbhai sachhi ghatana ko bahut khubsurat dhang se shabdo me poroya........ bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कहानी है उससे भी बड़ा जैसे आपने वर्णन किया है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
प्रभावित कर रही है कहानी..बढ़िया प्रयास .
जवाब देंहटाएंलोकेन्द्र जी इस तरह की घटनाएँ बस ह्रदय से महसूस की जा सकती हैं. बस कुछ कहा नहीं जा सकता!!
जवाब देंहटाएंआपकी कहानी पड़ी बहुत अच्छी लगी..एक सार्थक प्रयास.....
जवाब देंहटाएंbahut acha lokendra bahi maa ki mamta ke bare main
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक और दिल को छू लेने बाली कहानी है भाई | मां की ममता का इससे बढ़िया उदाहरण अक्सर ही हामरी आँखे नाम कर देता है | तुम्हारा प्रयास सचमुच ही प्रशंशनिये है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से आपने इस घटना को प्रस्तुत किया है! दिल को छू गई! भावमय और मार्मिक प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
प्रस्तुतीकरण अच्छी है लेकिन तस्वीर पाश्चात्य महिला की लग रही है.
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मार्मिक घटना और प्रस्तुति भी उतनी ही मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंयह अनोखी घटना है।
जवाब देंहटाएंसत्य हमेशा असर करता है…………सजीवता का मार्मिक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, मार्मिक सत्यकथा, सुन्दर संयोजन, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
जवाब देंहटाएंalexa backlink seo mistakes backlink service backlink service
जवाब देंहटाएंसजीव और मार्मिक चित्रण किया है आपने घटना का...
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