मैं ग्वालियर नगर में ही पैदा हुआ और यहां की माटी में ही खेल-कूद कर बढ़ा हुआ हूं। यहां कि आबा-ओ-हवा मुझे बड़ा ही सुकून देती है। जब से होश संभाला ग्वालियर को निरंतर बदलते देखा। उसके बारे में पढ़ा-सुना। रियासत काल की कल्पना के चित्र मस्तिष्क में खिंचे, लेकिन ग्वालियर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व सरल हृदय श्री जगदीश जी तोमर की 'गोपाचल गाथा' ने जो दृश्य उपस्थित किए वे अद्भुत रहे। गोपाचल गाथा पढऩे के बाद लगा कि मैं अपने ग्वालियर से कितना अनजान था। ग्वालियर को समझना है या उसके बारे में जानना है तो मैं एक ही पुस्तक का नाम लूंगा वो है 'गोपाचल गाथा'। पुस्तक 'ग्वालियर : प्राचीन भारत की सांस्कृतिक धड़कन' से शुरू होकर परिशिष्ट पर जाकर खत्म होती है। इसी बीच में ग्वालियर का समग्र समाहित है। जिसमें ग्वालियर किले की निमार्ण कथा का खूबसूरत चित्रण हैं। इस पर अधिपत्य के लिए जो संघर्ष हुआ उसका बेजोड़ चित्रण श्री तोमर ने किया है। ग्वालियर के पाल से लेकर सिंधिया वंश के राजाओं के शौर्य व पराक्रम का जिक्र है तो अत्याचारी और विधर्मी मुगलों के अत्याचार का भी सटीक वर्णन हैं। मुगलों ने यहां भी उन्हीं करतूतों को अन्जाम दिया जो पूरे भारतवर्ष को झेलनी पड़ी हैं। ग्वालियर में जैसे ही मुगलों की सल्तनत कायम हुई उन्होंने मंदिरों को ज़मीदोज कर दिया, किले की दीवारों पर उकेरी गईं जैन पंथ के आराध्यों की मूर्तियों को छिन्न-भिन्न कर दिया, शिवजी की विशाल पिण्ड़ी (कोटेश्वर महादेव) को किले से नीचे फिंकवा दिया गया इसके अलावा जगह-जगह इस्लाम की मान्यताओं को दरकिनार कर मस्जिदें तामील करा दी गईं।
गोपाचल गाथा, ग्वालियर का राजनैतिक-सांस्कृतिक सफरनामा
- श्री जगदीश तोमर, वर्तमान में प्रेमचंद सृजनपीठ के निदेशक
मूल्य : 450 रुपए
प्रकाशन : प्रकाशन
मनोज श्रीवास्तव, आयुक्त, जनसंपर्क, मध्यप्रदेश, भोपाल
'गोपाचल गाथा' में मुगलों से अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए रानियों का जौहर और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वीर-वीरांगनाओं की शहादत भी मार्मिक वर्णन किया गया। ग्वालियर के सांस्कृतिक इतिहास का तो लाजवाब रेखाचित्र खींचा है श्री जगदीश जी ने। संगीत, साहित्य-परंपरा, चित्रकला और मूर्तिकला साथ ही पत्रकारिता आरंभ एवं उन्नयन का भी खूब बखान किया है। पुस्तक में कोहिनूर कथा का बड़ा रोचक चित्रण है। कोहिनूर दुनिया का सबसे कीमती हीरा है। कभी उसका वजन लगभग साढ़े तीन तोला था। उसके दो टुकड़े हो चुके हैं। उसकी कहानी भारत से आरंभ होती है, किन्तु अब वह इंग्लैंड़ में है। यह सब तो मैं जानता था। नहीं जानता था तो कि कभी ग्वालियर भी इस नायाब हीरे का मालिक रहा। कोहिनूर ग्वालियर के तोमरवंशी राजाओं के पास लगभग 90 वर्ष रहा। एक बार 1437 ई. में मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वह ग्वालियर नरेश डूंगरेन्द्र सिंह तोमर के हाथों परास्त हो गया। ग्वालियर की सेना ने उसे गिरफ्तार कर लिया। तब वह महाराजा डूंगरेन्द्र सिंह को कोहिनूर भेंट में देकर उनकी गिरफ्त से मुक्त हो सका। वह हीरा 1437 से 1523 ई. तक ग्वालियर के तोमर शासकों के पास रहा। फिर कैसे वह मुगलों के हाथ गया और उनके हाथ से अंग्रेजों के हाथ पहुंचा इसकी रोचक कथा का शानदार चित्रण है गोपाचल गाथा में। इसके साथ ही पुस्तक में आपको ग्वालियर के गौरव महान विभूतियों के बारे में भी जानने को मिलेगा। श्री जगदीश जी तोमर ने अपनी पुस्तक में ग्वालियर के इतिहास पुरुषों के साथ ही वर्तमान में साहित्य सेवा में लगे साहित्य सेवियों का भी समुचित उल्लेख किया है। ग्वालियर की पत्रकारिता भी विस्तार से प्रकाश डाला है।
गोपाचल गाथा, ग्वालियर का राजनैतिक-सांस्कृतिक सफरनामा
- श्री जगदीश तोमर, वर्तमान में प्रेमचंद सृजनपीठ के निदेशक
मूल्य : 450 रुपए
प्रकाशन : प्रकाशन
मनोज श्रीवास्तव, आयुक्त, जनसंपर्क, मध्यप्रदेश, भोपाल
'गोपाचल गाथा' में मुगलों से अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए रानियों का जौहर और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वीर-वीरांगनाओं की शहादत भी मार्मिक वर्णन किया गया। ग्वालियर के सांस्कृतिक इतिहास का तो लाजवाब रेखाचित्र खींचा है श्री जगदीश जी ने। संगीत, साहित्य-परंपरा, चित्रकला और मूर्तिकला साथ ही पत्रकारिता आरंभ एवं उन्नयन का भी खूब बखान किया है। पुस्तक में कोहिनूर कथा का बड़ा रोचक चित्रण है। कोहिनूर दुनिया का सबसे कीमती हीरा है। कभी उसका वजन लगभग साढ़े तीन तोला था। उसके दो टुकड़े हो चुके हैं। उसकी कहानी भारत से आरंभ होती है, किन्तु अब वह इंग्लैंड़ में है। यह सब तो मैं जानता था। नहीं जानता था तो कि कभी ग्वालियर भी इस नायाब हीरे का मालिक रहा। कोहिनूर ग्वालियर के तोमरवंशी राजाओं के पास लगभग 90 वर्ष रहा। एक बार 1437 ई. में मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वह ग्वालियर नरेश डूंगरेन्द्र सिंह तोमर के हाथों परास्त हो गया। ग्वालियर की सेना ने उसे गिरफ्तार कर लिया। तब वह महाराजा डूंगरेन्द्र सिंह को कोहिनूर भेंट में देकर उनकी गिरफ्त से मुक्त हो सका। वह हीरा 1437 से 1523 ई. तक ग्वालियर के तोमर शासकों के पास रहा। फिर कैसे वह मुगलों के हाथ गया और उनके हाथ से अंग्रेजों के हाथ पहुंचा इसकी रोचक कथा का शानदार चित्रण है गोपाचल गाथा में। इसके साथ ही पुस्तक में आपको ग्वालियर के गौरव महान विभूतियों के बारे में भी जानने को मिलेगा। श्री जगदीश जी तोमर ने अपनी पुस्तक में ग्वालियर के इतिहास पुरुषों के साथ ही वर्तमान में साहित्य सेवा में लगे साहित्य सेवियों का भी समुचित उल्लेख किया है। ग्वालियर की पत्रकारिता भी विस्तार से प्रकाश डाला है।
सुन्दर पुस्तक समीक्षा. एक-आध उद्धरण भी होना चाहिए था.
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