शुक्रवार, 23 मई 2025

धर्मशाला नहीं है भारत

शरणार्थियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। एक मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “भारत कोई धर्मशाला नहीं है। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। हम हर जगह से आए शरणार्थियों को शरण नहीं दे सकते”। न्यायालय ने यह  टिप्पणी श्रीलंका से आए नागरिक के संदर्भ में की, जो लिट्टे से जुड़ा रहा है। न्यायालय ने उसे सात साल की सजा सुनाई थी और कहा था कि वह सजा पूरी होते ही अपने देश वापिस चला जाए। लेकिन वह वापस नहीं जाना चाहता क्योंकि वहाँ उसे कठोर सजा मिल सकती है। उसने भारत में ही शरण लेने के लिए याचिका दायर की थी। भले ही न्यायालय की यह टिप्पणी श्रीलंकाई नागरिक के संदर्भ में है लेकिन यह टिप्पणी हमारे लिए अन्य शरणार्थियों के संदर्भ में भी मार्गदर्शन करती है। न्यायालय की टिप्पणी को व्यापक बहस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। हमारे देश में एक वर्ग ऐसा है, जो आपराधिक प्रवृत्ति के शरणार्थियों की पैरोकारी करता है। हिंसक व्यवहार और आपराधिक प्रवृत्ति के कारण म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों को भगाया गया है। वहाँ से आकर रोहिंग्या मुसलमान भारत में बस गए हैं। यहाँ भी रोहिंग्या हिंसा, चोरी, लूटपाट, महिला अपराधों में शामिल हैं। यहाँ तक की सांप्रदायिक हिंसा में भी रोहिंग्याओं के शामिल होने के प्रमाण सामने आए हैं। इसके बाद भी देश में तथाकथित सेकुलर एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवी इन रोहिंग्याओं के निर्वसन का विरोध करते हैं।

देश के स्वनामधन्य बड़े वकील और एक्टिविस्ट योजनापूर्वक आपराधिक प्रवृत्ति के रोहिंग्याओं को भारत में ही शरण देने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाते रहते हैं। पिछले दिनों यह समूह भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली मनगढंत कहानी लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गया था कि सरकार ने 43 रोहिंग्या को देश से बाहर निकालते हुए अंडमान के समुद्र में फेंक दिया है। याद हो उस समय भारत और पाकिस्तान के बीच हमले हो रहे थे। देश कठिन स्थिति से गुजर रहा था और ये तथाकथित सेकुलर गिरोह इस प्रकार की कहानियां लेकर न्यायालय में खड़े थे। यह तो अच्छी बात है कि उस समय भी न्यायालय ने इस समूह को कड़ी फटकार लगाई। न्यायालय ने कहा कि आप लोग रोज एक नई कहानी लेकर आ जाते हो। जब देश कठिन दौर से गुजर रहा है, तब भी आप इस प्रकार की मनगढंत कहानियां लेकर आ रहे हो। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कहा कि कोई भी तीसरी ताकत बाहर बैठकर भारत की संप्रभुता पर सवाल नहीं उठा सकती है। यह भारत तय करेगा कि उसे किसे शरण देना है और किसे नहीं? शरणार्थियों को बाहर निकालने का पूरा अधिकार भारत को है। 

बहरहाल, इन दोनों ही प्रकरणों में उच्चतम न्यायालय ने हमें जगाने का प्रयास किया है कि हम शरणार्थियों को झेलने की स्थिति में नहीं है। भारत पहले से ही अपने 140 करोड़ की आबादी को लेकर चिंतित है, ऐसे में आपराधिक प्रवृत्ति के शरणार्थियों को भी यहाँ जगह दे देंगे, तो स्थितियां और विकट हो जाएंगी। ये शरणार्थी भारत के नागरिकों के अधिकारों, उसके हिस्से के संसाधनों और अवसरों को छीनेंगे। भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि यह देश हर किसी के लिए धर्मशाला न बन जाए। जो वास्तविक पीड़ित हैं, उन्हें शरण देना भारत का धर्म है लेकिन जो लोग/समुदाय अपने हिंसक एवं आपराधिक प्रवृत्ति के चलते किसी देश से खदेड़े गए हैं, उन्हें ढोने की कतई आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार के शरणार्थी भारत के लिए समस्याएं ही पैदा करेंगे। 

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