गुरुवार, 15 मई 2025

चीन के बचकाने प्रयास : अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम बदलने से क्या सच बदल जाएगा?

विस्तारवादी मानसिकता से ग्रसित चीन अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने के व्यर्थ और बेतुके प्रयास कर रहा है। इस तरह की बचकाना हरकत वह पहली बार नहीं कर रहा है, बल्कि पहले भी उसने ऐसा किया है और भारत ने हर बार चीन को आईना दिखाया है। इस बार भी भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन की बचकानी सोच पर कहा है कि “हमने देखा है कि चीन भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने के अपने व्यर्थ और बेतुके प्रयासों में लगा हुआ है। हमारे सैद्धांतिक रुख के अनुरूप, हम इस तरह के प्रयासों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं। नामकरण से इस निर्विवाद वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा”। 

चीन किसी भ्रम में न रहे कि वह भारत का गलत नक्शा बनाकर, वास्तविकता को बदल देगा। भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। सच तो यह है कि चीन ने 1962 में धोखे से भारत की जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को ‘हिन्दी-चीनी, भाई-भाई’ के खोखले नारे में उलझाकर चीन ने भारत पर हमला किया और हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया। यह दुर्भाग्य की बात है कि तत्कालीन नेतृत्व ने अपनी खोयी हुई जमीन को वापस पाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए। बल्कि उसे बंजर जमीन मानकर उससे मुंह ही फेर लिया। हमने भूमि को रणनीतिक महत्व से देखने का प्रयास ही नहीं किया।

अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा बतानेवाले चीन को अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए कि उसने स्वयं ही तिब्बत पर अनैतिक कब्जा कर रखा है। तिब्बत के लोग चीन की इस विस्तारवादी और तानाशाही मानसिकता के विरुद्ध लंबे समय से आंदोलन चला रहे हैं। कहना होगा कि तिब्बत एक स्वतंत्र देश है, जिस पर चीन ने अपने सैन्य बल का प्रयोग करते हुए कब्जा किया हुआ है। इसलिए भारत के अरुणाचल प्रदेश से चीन का कोई संबंध ही नहीं है। अपने कागजों में अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम बदलने से यह प्रदेश उसका हो जाएगा, यह हसीन ख्वाब चीन को नहीं देखना चाहिए। 

दरअसल, चीन एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास कर रहा है और इस कार्य में वह भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता रहा है। वैश्विक पटल पर भारत की मजबूत होती छवि से उसको चिंता होती है। इसलिए भारत के प्रति उसके मन में कहीं न कहीं द्वेष है। जबकि भारत को कभी भी चीन की प्रगति से जलन नहीं हुई है। भारत ने तो सदैव चीन के साथ मित्रवत व्यवहार की अपेक्षा की है। लेकिन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही एवं पूंजीवादी सरकार ने हर बार धोखेबाजी की है। 

भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा उठाने का एक अर्थ यह भी है कि चीन कैसे भी करके भारत को नये मोर्चे पर उलझाकर पाकिस्तान की सहायता करना चाहता है। चीन अपने रणनीतिक स्वार्थों के चलते पाकिस्तान का किस हद तक समर्थन करता है, यह अनेक बार सामने आ चुका है। जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के अंतर्गत पाकिस्तान पर अपने हमले तेज कर दिए थे, तब चीन खुलकर मैदान में आ गया था और उसने कहा था कि वह पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा करने के लिए उसके साथ खड़ा है। हालांकि, भारतीय सेना ने पाकिस्तान को खूब धूल चटाई और चीनी हथियारों को नष्ट करके चीन को भी उसकी औकात दिखा दी है।

भारत सरकार को चाहिए कि इसी प्रकार स्पष्टता के साथ चीन के बचकाने कृत्यों का विरोध करे और साथ में तिब्बत की स्वतंत्रता के मुद्दे को हवा दे। चीन के कब्जे से भारत की जमीन को मुक्त कराने के बारे में भी भारत सरकार को ठोस रणनीति बनाने और उस दिशा में पहलकदमी के लिए आगे बढ़ना चाहिए।

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