सोमवार, 9 सितंबर 2019

चंद्रयान-2 अभियान, विजय ही विजय


चंद्रमा पर चंद्रयान-2 के उतरने से पहले ही लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने को इस अभियान की असफलता नहीं माना जाना चाहिए। चंद्रमा के जिस हिस्से (दक्षिणी ध्रुव) पर आज तक कोई नहीं पहुँचा, वहाँ सॉफ्ट लैंडिंग का हमारा बड़ा लक्ष्य अवश्य था, किंतु यह चंद्रयान-2 का एकमात्र लक्ष्य कतई नहीं था। मौटे तौर पर चंद्रयान मिशन के दो लक्ष्य थे। पहला- विज्ञान से जुड़ा और दूसरा- तकनीक का प्रदर्शन। लैंडिंग और रोवर मुख्यत: तकनीक प्रदर्शन के लिए थे। जबकि विज्ञान का बड़ा हिस्सा ऑर्बिटर से जुड़ा है, जो चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हो गया है। यह सात वर्ष तक हमें चंद्रमा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करता रहेगा। इसलिए केवल हम ही नहीं, बल्कि दुनिया कह रही है कि चंद्रयान-2 अपने उद्देश्य में लगभग सौ प्रतिशत सफल रहा है। इस संबंध में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख डॉ. के. सिवन ने भी स्पष्ट किया है। उनके अनुसार मिशन अपने अधिकतर उद्देश्यों में सफल रहा है। इसरो अपने मिशन की सफलता को लेकर आश्वस्त है। चंद्रयान-2 को 99.5 प्रतिशत सफल माना जा सकता है।उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि लैंडर और रोवर का चंद्रमा की सतह पर 14 दिन का ही मिशन था। इस मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा तो ऑर्बिटर से ही जुड़ा है। भावुकता छोड़ कर विज्ञान के लिहाज से देखें तो भारत के हिस्से बड़ी सफलता आई है।
          विश्व की अग्रणी विज्ञान संस्थाएं भी भारत के इस मिशन को सफल मान रही हैं। नासा ने ट्वीट कर चंद्रयान-2 की सराहना की है। उसने ट्वीट किया, ‘अंतरिक्ष कठिन है। हम इसरो के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 को उतारने के प्रयास की सराहना करते हैं। आपने हमें प्रेरित किया है और भविष्य में हम सौर मंडल का पता लगाने के लिए साथ काम करेंगे।नासा का यह ट्वीट हमारे चंद्रयान-2 की सफलता को दर्शाता है। निश्चित तौर पर चंद्रयान-2 मिशन के माध्यम से इसरो ने भारत के स्पेस सुपरपावरबनने की महत्वाकांक्षा को पंख लगा दिए हैं। इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने अथक परिश्रम और मेधाशक्ति से भारत की साख को बढ़ाया है। इसरो की अब तक की सफलताओं के साथ चंद्रयान-2 मिशन ने भारत के प्रति विश्व की दृष्टि को भी बदल कर दिया है। भारत के मंगल मिशनकी घोषणा पर हमारा मजाक बनाने के लिए व्यंग्य-चित्र प्रकाशित करने वाले न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी चंद्रयान-2 की सफलता के अवसर पर हमारी प्रशंसा की है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, ‘भारत भले ही अपने पहले प्रयास में लैंडिंग नहीं कर पाया, लेकिन उसके प्रयास बताते हैं कि उसके पास अभियांत्रिकी के क्षेत्र में किस स्तर तक शौर्य एवं साहस है और दशकों में उसने वैश्विक महत्वाकांक्षा के साथ अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कितना विकास किया है।विश्वभर की मीडिया ने चंद्रयान-2 को अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की सफलता के तौर पर देखा है।
          इसमें कोई दोराय नहीं कि यदि हम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफल होते तो मंगलयान की तरह अपने पहले ही प्रयास में चंद्रमा पर उतरने का इतिहास रचते। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और रूस जैसे देश भी चंद्रमा पर पहले प्रयास में नहीं उतर सके थे। 1958 से लेकर अब तक अमेरिका, रूस, जापान और चीन सहित यूरोपीय संघ ने 109 चंद्र अभियान लांच किए, इनकी सफलता 60 प्रतिशत ही रही है। इन 109 अभियानों में ऑर्बिटर और लैंडर शामिल रहे हैं। इनमें से 61 अभियान सफल और 48 विफल रहे हैं। ध्यान रहे कि अमेरिका को चंद्रमा की कक्षा में ही पहुँचने के लिए पाँच बार असफलता का सामना करना पड़ा। रूस के भी प्रारंभिक चार मिशन असफल रहे। हालाँकि अमेरिका और रूस के उन प्रयासों को असफलता कहना ठीक नहीं, क्योंकि उनसे भी सबक मिले, तकनीक और ज्ञान में वृद्धि हुई।


          चंद्रयान-2 मिशन के एक लक्ष्य (चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग) की पूर्ति न होने पर भारत के वैज्ञानिकों सहित देश में एक उदासी अवश्य छा गई थी, लेकिन अब उस उदासी को पीछे छोड़ कर आकांक्षावान भारत सकारात्मक दृष्टि से आगे बढऩे को उत्साहित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आचरण की खुलकर सराहना करनी चाहिए। सबसे पहले वह इस ऐतिहासिक अवसर पर वैज्ञानिकों के बीच पहुँचे। फिर जब उन्होंने वैज्ञानिकों को निराश और भावुक होते देखा तो उनका मनोबल ऊंचा उठाने के लिए इसरो प्रमुख को गले लगाकर पीठ थप-थपाई। देश के शीर्षस्थ नेता का यह व्यवहार उन्हें महानता की ओर लेकर जाता है। यह दृश्य पूरे देश को भावुक करने वाला था और आश्वस्त करने वाला भी कि देश का मुखिया हर हाल में अपने लोगों के साथ डट कर खड़ा है। वह हताशा छोड़ आगे बढऩे के लिए प्रेरित कर रहा है। हतोत्साहित नहीं, बल्कि प्रोत्साहित कर रहा है। संभव है कि उस क्षण प्रधानमंत्री मोदी भी उदास हुए होंगे, किंतु उन्होंने अपनी उदासी पर पर्दा डालकर भारत के वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाने का काम किया। इस अवसर पर उन्होंने बहुत सुंदर और प्रेरक बात कही, जो किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मशीलों के लिए ध्येय वाक्य हो सकती है- विज्ञान में विफलता नहीं होती, केवल प्रयोग और प्रयास होते हैं।उन्होंने उचित ही कहा- हर मुश्किल, हर संघर्ष, हर कठिनाई, हमें कुछ नया सिखाकर जाती है।चंद्रयान-2 के तीन चरण सफल रहे हैं, जो एक चरण फिलहाल पूरा नहीं हो सका है, उसे पूर्ण करने का साहस, सामर्थ्य और कौशल भारत के पास है। सोशल मीडिया पर उचित ही लिखा गया कि ‘संपर्क टूटा है, संकल्प नहीं।’ सुविख्यात बोधवाक्य है- ‘जिनके संकल्प शुभ होते हैं, प्रकृति भी उन्हें साकार करने में सहयोग प्रदान करती है।’ 

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