गुरुवार, 10 जनवरी 2019

न्याय में अब देर न हो


- लोकेन्द्र सिंह -
सर्वोच्च न्यायालय में आज फिर श्रीराम जन्मभूमि का मामला आएगा। हिंदुओं की आस्था और भावनाओं से जुड़े इस बहुप्रतीक्षित मामले की सुनवाई के लिए पाँच न्यायमूर्तियों की संवैधानिक पीठ तय हो गई है। हिंदू समाज प्रार्थना कर रहा है कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में यह पीठ श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई आज से नियमित करे और शीघ्र ही निर्णय सुनाए, ताकि न्याय की प्रतीक्षा समाप्त हो। इस प्रकरण में न्यायालय का अब तक का रुख देखकर आशंका भी है कि सुनवाई फिर न टल जाए। क्योंकि, मुख्य न्यायाधीश स्वयं भी इसे राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मानते हैं और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं अधिवक्ता कपिल सिब्बल पहले ही श्रीराम जन्मभूमि के मामले को 2019 के बाद तक टालने की माँग से लेकर प्रयास तक कर चुके हैं। पिछली बार ही 4 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले पर मात्र 60 सेकंड तक सुनवाई चली। इस दौरान कोई भी पक्ष अपना तर्क प्रस्तुत नहीं कर सका था। उस दिन मात्र 60 सेकंड में न्यायमूर्ति ने मामले को 10 जनवरी तक टाल दिया था। इससे पहले भी न्यायमूर्ति लोग कह चुके हैं कि श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रकरण उनकी प्राथमिकता में नहीं है। इसलिए ही हिंदू समाज आशंकित है कि आज से नियमित सुनवाई प्रारंभ हो सकेगी या मामला फिर से टाल दिया जाएगा।
          न्यायालय को हिंदू समाज की भावनाओं को ध्यान में रखकर और इस प्रकरण से जुड़े बहुत बड़े वर्ग का ध्यान रखकर अब सुनवाई में और अधिक विलंब नहीं करना चाहिए। वरना, न्यायालय के प्रति एक अविश्वास हिंदू समाज के मन में घर करने लगेगा। उसके मन में ये प्रश्न तो उठने ही लगे हैं कि आतंकवादियों के लिए न्यायालय आधी रात को खुल जाता है। शहरी नक्सलियों को जमानत देने की बात हो तब भी न्यायालय तुरंत सुनवाई कर लेता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में देश की जनता के सामने आए हैं। हालाँकि, इनमें कोई बुराई नहीं है कि किसी भी मनुष्य के संदर्भ में संविधान से मिले मौलिक अधिकारों की चिंता के लिए न्यायालय ने त्वरित सुनवाई की। यह होना ही चाहिए। न्याय के लिए भटकना और अटकना नहीं पड़े, यह व्यवस्था सबके लिए सुनिश्चित हो। जब न्यायालय एक-एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को लेकर इतना अधिक सजग रहता है, तब क्या करोड़ों हिंदुओं के मौलिक अधिकार के संबंध में उपजे प्रश्न का समाधान उसे नहीं करना चाहिए?
          चूँकि न्यायालय ने अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए पिछली बार तीन न्यायधीशों की पीठ बनाने की बात कही थी, किंतु मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ बनाई गई है। इसलिए इस बार यह विश्वास मन में मजबूत हो रहा है कि अब श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई नियमित प्रारंभ होगी। यह सूर्य की तरह अखण्ड और उजला सत्य है कि भगवान श्रीराम हिंदुओं के आराध्य तो हैं, किंतु उससे कहीं अधिक वह भारतीयता के शिखर पुरुष हैं। भारतीयता के प्रतीक हैं। भारतीय संस्कृति के मान-बिंदु हैं। इसलिए देश की सामान्य जनता से लेकर अभिमत निर्माता बुद्धिजीवियों एवं राजनेताओं से आग्रह है कि इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा न बनाएं। अब तो देश की अल्पसंख्यक आबादी का अधिकांश हिस्सा भी अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का पक्षधर है। यदि धार्मिक कट्टरवाद और राजनीति आड़े न आती तो अब तक हिंदू-मुस्लिम मिल-बैठ कर इस मामले को सुलझा चुके होते। 
          एक लंबा समय बीत चुका है। सरयू में बहुत पानी बह चुका है। अब देश की बहुसंख्यक जनता श्रीरामजन्मभूमि पर उनके भव्य मंदिर के सपने को साकार होते देखना चाहती है। इस सपने में उजाले भरने की राह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से निकलती है। न्यायालय को अब न्याय में देर नहीं लगानी चाहिए।
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