भारतीय फिल्म उद्योग में जब भी किसी ऐतिहासिक घटना या व्यक्तित्व पर फिल्म बनाने का विचार प्रारंभ होता है, तब उसके साथ विवाद भी उत्पन्न हो जाते हैं। दरअसल, हमारे निर्देशकों में एक बड़ी बीमारी है कि वह इतिहास को उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत न करके अपने ढंग से छेड़छाड़ करके प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। जहाँ मान्य सत्य के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया जाता है, वहीं विवाद खड़ा होता है। निर्देशक अपने चश्मे से इतिहास को देखने और दिखाने की जिद में समाज को आहत करने की गलती कर बैठते हैं। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक-निर्माता संजय लीला भंसाली को थप्पड़ मारने की घटना इसी आहत समाज के आक्रोश का प्रकटीकरण है। करणी सेना के लोगों ने जयपुर में 'पद्मावती' फिल्म के शूटिंग स्थल पर पहुंच कर विरोध किया और भंसाली को थप्पड़ मार दिया। करणी सेना के इस कृत्य की निंदा की जानी चाहिए। लेकिन, जितनी निंदा करणी सेना की करना जरूरी है, उससे कहीं अधिक निंदा और आलोचना संजय लीला भंसाली की भी करना आवश्यक है।
संजय लीला भंसाली ने जब 'पद्मावती' फिल्म बनाने की घोषणा की थी, उसी वक्त से उनसे आग्रह किया जा रहा था कि इस ऐतिहासिक प्रकरण को वास्तविक रूप में ही दिखाया जाए, किसी प्रकार की छेड़छाड़ स्वीकार्य नहीं होगी। खासकर, रानी पद्मावती के चरित्र को प्रदर्शित करने में कोई भी चूक नहीं होनी चाहिए। रानी पद्मावती समूचे राजस्थान के लिए प्रेरणा की स्रोत हैं। वह साहस, बलिदान और आत्म सम्मान की प्रतीक हैं। राजस्थान ही नहीं, बल्कि समूचे देश में उनके लिए सम्मान का विशिष्ट स्थान है। चित्तौड़ की इस रानी की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। ऐसे में भारतीय समाज के लिए आदर्श पद्मावती के चरित्र को यदि कोई निर्देशक जबरन विकृत ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहे, तब क्या उसको रोका नहीं जाना चाहिए? समाज में मान्य और स्वीकार सत्य के विपरीत जाकर, जानबूझकर उसकी संवेदनाओं को ठेस पहुँचाना कितना उचित ठहराया जा सकता है?
रानी पद्मावती के संबंध में स्वीकार तथ्य यह है कि वह जितनी सुंदर थी, उससे कहीं अधिक बुद्धिमान और साहसी थीं। उनके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर दुष्ट चरित्र के दिल्ली के शासक अल्लाउद्दीन खिलजी ने उन्हें पाने के लिए चित्तौड़ पर हमला किया और राजा रतन सिंह को अपनी कैद में ले लिया था। रतन सिंह को कैद से मुक्त करने के बदले खिलजी ने उनकी पत्नी पद्मावती की माँग की। वीर राजपूत राजा को यह कदापि स्वीकार नहीं था। रानी पद्मावती ने इस अवसर पर बहुत कुशलता से रणनीति बनाकर खिलजी को उसी की भाषा में जवाब दिया। उन्होंने डोलियों में सैनिकों को बैठाकर खिलजी के पास भेज दिया और इन राजपूत सैनिकों ने खिलजी की सेना पर हमला बोलकर राजा को मुक्त करा लिया। बाद में जब खिलजी ने फिर से हमला किया, तब पद्मावती ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए चित्तौड़ की अन्य नारियों के साथ 'जौहर' कर लिया।
आक्रांता के हाथ लगने की अपेक्षा जीवन को अग्नि को समर्पित करने का निर्णय साहसी नारियां ही ले सकती हैं। ऐसी साहसी और सती रानी पद्मावती को खिलजी की प्रेमिका बताना, घोर आपत्तिजनक है। संजय लीला भंसाली को समझना चाहिए कि अपनी फिल्म को अधिक 'बेचने योग्य' बनाने के लिए इतिहास को विकृत करने की जिद नहीं पालना चाहिए। इतिहास को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करके भी एक अच्छी फिल्म बनाई जा सकती है।
पद्मावती के बारे में जो सर्वमान्य तथ्य है , उसे तोड़ने की कोशिश निन्दनीय है . दरअसल हमारे यहाँ तथ्यों को तोड़कर अपने विचार ठूँसने को ही बुद्धिवादिता मान लेने की गलतफहमी बहुत फलफूल रही है .इसका विरोध तो कहीं न कहीं होगा ही .
जवाब देंहटाएंऐतिहासिक तथ्य हो चाहे लोक-कथाओँ का कथ्य ,जातीय आदर्शों और चरित्र की दृढ़ता के प्रतिमानों को तोड़ना या मनमाने ढंग से विकृत करना जिससे उन सांस्कृतिक मूल्यों का हनन हो उस संस्कृति के प्रति अपराध कहा जायेगा .
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा article है। ......... very nice with awesome depiction ......... Thanks for sharing this article!! :)
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