देश में रचनात्मक राजनीति का दावा करने वाले आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल निरंतर अमर्यादित राजनीति के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका राजनीतिक आचरण किसी भी प्रकार रचनात्मक और सकारात्मक दिखाई नहीं देता है। यह कहना अधिक उचित ही होगा कि कई अवसर पर उनका आचरण निंदनीय ही नहीं, अपितु आपत्तिजनक भी होता है। यह भी स्थापित हो चुका है कि केजरीवाल की राजनीति आरोपों से शुरू होकर आरोपों पर ही खत्म होती है। आरोप दागने की अपनी तोप के निशाने पर वह किसी को भी ले सकते हैं, क्योंकि उन्हें यह भी गुमान है कि समूची भारतीय राजनीति में उनके अलावा कोई दूसरा नेता ईमानदार नहीं है। यहाँ तक कि वह संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ भी मुँह खोलने से पहले विचार नहीं करते हैं। चुनाव आयोग की फटकार से सबक सीखने की बजाय आयोग को ही न्यायालय में चुनौती देने का दंभ उनके इसी आचरण की बानगी है।
चुनाव आयोग ने अरविंद केजरीवाल को गोवा में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में कठघरे में खड़ा किया है। केजरीवाल अपनी सभाओं और रैलियों में लगातार यह कह रहे थे कि जनता को कांग्रेस एवं भाजपा सहित अन्य सभी पार्टियों से नकद पैसा लेना चाहिए, बल्कि महंगाई के इस दौर में पाँच की जगह दस हजार रुपये की माँग करनी चाहिए। जनता को यह सब पैसा नये नोट में लेना चाहिए। इसके आगे वह कहते हैं कि जनता पैसा सबसे ले, लेकिन वोट सिर्फ आम आदमी पार्टी को दे। जनता से इस तरह का आह्वान केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी किया था। स्पष्टतौर पर अपने पक्ष में चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल न केवल चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि नैतिक आचरण की सीमा रेखा भी लांघ रहे हैं।
देश में निष्पक्ष और स्वच्छ ढंग से चुनाव सम्पन्न कराने के लिए सजग चुनाव आयोग ने अरविंद केजरीवाल को इस संदर्भ में नोटिस जारी किया है। केजरीवाल ने इसका चलताऊ स्पष्टीकरण चुनाव आयोग को भेजा, जिसे आयोग ने स्वीकार नहीं किया। इस पर केजरीवाल का कहना है कि चुनाव आयोग का फैसला सही नहीं है और वे अदालत में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देंगे। चुनाव आयोग को अदालत में चुनौती देने की बात करके केजरीवाल इस संवैधानिक संस्था की प्रतिष्ठा और गरिमा को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। केजरीवाल को यह पता होना चाहिए कि जब चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तब चुनाव आयोग के फैसले पर न्यायिक हस्तक्षेप संभव नहीं है। चुनाव आयोग कठोरता बरते तो वह अरविंद केजरीवाल के इस प्रकार के अमर्यादित आचरण के कारण आम आदमी पार्टी की मान्यता रद्द कर सकता है और उसे चुनाव लडऩे से रोक सकता है। अपनी गलतियां सुधारने की जगह प्रतिष्ठित संवैधानिक संस्था को ही चुनौती देना किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल ने जिस प्रकार की टिप्पणी की है, उसके निहितार्थ पर गौर करें, तब पाएंगे कि अन्य राजनेताओं और समाज के संबंध में उनकी कितनी गलत धारणा है। यह भी स्पष्ट होगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की लड़ाई कितनी झूठी और बनावटी है। गोवा में केजरीवाल द्वारा की गई टिप्पणी का स्पष्टतौर पर यह ही अर्थ निकलता है कि कांग्रेस और भाजपा मतदाताओं को धन देकर वोट पाने की कोशिश कर रहे हैं। बिना किसी प्रमाण केजरीवाल अपने विरोधी दल पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं, क्या इसे उचित ठहराया जा सकता है? वहीं, दूसरी तरफ जनता को पैसा लेने का सुझाव देकर वह जनता को भ्रष्ट बनने के लिए उकसा रहे हैं या फिर वह मानते हैं कि देश की जनता भ्रष्ट है, जनता पैसे के बदले अपना मत देती है। अरविंद केजरीवाल की दोनों ही सोच न केवल गलत हैं, बल्कि विकृत हैं। उन्हें समझना चाहिए कि देश में अनेक नेता उनसे भी अधिक ईमानदार हैं। यह भी उन्हें ठीक से समझना चाहिए कि इस देश की जनता बिकाऊ नहीं है कि नोट के बदले वोट देगी। यदि केजरीवाल जनता को शुचिता की सीख नहीं दे सकते और उसे अपने मताधिकार के उपयोग के लिए जागरूक नहीं कर सकते, तो उन्हें कम से कम जनता को भ्रष्टाचार के लिए उकसाना तत्काल बंद कर देना चाहिए।
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