मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के यशस्वी कार्यकाल को 29 नवम्बर को 11 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। निश्चित ही उनकी यह यात्रा आगे भी जारी रहेगी। इंदौर में आयोजित 5वीं ग्लोबल इन्वेस्टर समिट-2016 के समापन समारोह में उन्होंने कहा भी है कि अगली इन्वेस्टर समिट 2019 में उनकी ही सरकार कराएगी। मुख्यमंत्री के इस बयान को कुछ लोग उनका आत्मविश्वास कह सकते हैं और कुछ लोग अति विश्वास भी कहने से नहीं चूकेंगे। वास्तव में यह जनता का भरोसा है, जिसके आधार पर शिवराज यह कह गए। अपनी इस यात्रा में शिवराज बड़ों को आदर देकर, छोटों को स्नेह देकर और समकक्षों को साथ लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। यह उनके नेतृत्व की कुशलता है। उनका व्यक्तित्व इतना सहज है कि जो भी उनके नजदीक आता है, उनका मुरीद हो जाता है। शिवराज के राजनीतिक विरोधी भी निजी जीवन में उनके व्यवहार के प्रशंसक हैं। सहजता, सरलता, सौम्यता और विनम्रता उनके व्यवहार की खासियत है। उनके यह गुण उन्हें राजनेता होकर भी राजनेता नहीं होने देते हैं। वह मुख्यमंत्री हैं, लेकिन जनता के मुख्यमंत्री हैं। 'जनता का मुख्यमंत्री' होना उनको औरों से अलग करता है। प्रदेश में पहली बार शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री निवास के द्वार समाज के लिए खोले। वह प्रदेश में गाँव-गाँव ही नहीं घूमे, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को मुख्यमंत्री निवास पर बुलाकर भी उनको सुना और समझा। अपने इस स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान 'जनप्रिय' हो गए हैं। मध्यप्रदेश में उनके मुकाबले लोकप्रियता किसी मुख्यमंत्री ने अर्जित नहीं की है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सब वर्गों में व्यापक स्वीकार्यता है। जनता ने लाड़ दिखाते हुए उनके अनेक नाम रख दिए हैं। प्रदेश की बेटियों की चिंता करने के कारण वह सबके 'मामाजी' बन गए। बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा पर भेजकर वह शिवराज से 'श्रवण कुमार' हो गए। काफिला रुकवाकर किसी की दुकान से जलेबी तो किसी ठेलेवाले से पोहा खाना, लोगों के कंधे पर हाथ रखकर उनका हालचाल पूछना और गांव-गांव संपर्क करने से उन्हें 'पांव-पांव वाले भैया' के नाम से पुकारा जाने लगा। योग और गीता ज्ञान को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कराकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को 'राष्ट्रवादी' कहलाने में कोई गुरेज नहीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक होने के कारण वह समरस समाज का स्वप्न देखते हैं और जातिगत राजनीति से दूर रहते हैं। वंचित और पिछड़े समाज के हितों की चिंता करने में शिवराज सिंह चौहान सबसे आगे आकर खड़े हो जाते हैं। हम जानते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक छोटे-से गाँव जैत की मिट्टी में पले-बढ़े हैं। किसान के बेटे होने के कारण किसानों की समस्याओं और उनके जीवन से भली प्रकार परिचित हैं। इसलिए वह सदैव किसानों के हित की चिंता करते हुए दिखाई देते हैं। खेती को लाभ का रोजगार बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उनके यह प्रयास रंग भी ला रहे हैं। प्रदेश को लगातार चार बार से कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हो रहा है। अपना रोजगार शुरू करने के लिए सरकार की गारंटी पर लोन दिलाकर मुख्यमंत्री ने युवाओं के बीच गहरी जगह बनाई है। शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तित्व का एक पहलू यह भी है कि वह नवाचारी हैं। उनके प्रयास के कारण ही मध्यप्रदेश 'खुशहाल मंत्रालय' (अभी विभाग) की स्थापना करने वाला पहला राज्य है। डिजिटल इंडिया के साथ ही डिजिटल मध्यप्रदेश की ओर बढऩे वाला भी पहला राज्य मध्यप्रदेश ही है। इसी तरह, 'मेक इन इंडिया' की तर्ज पर 'मेक इन मध्यप्रदेश' की पहल करने वाला एकमात्र राज्य मध्यप्रदेश है। उनके नेतृत्व में पहली बार सिंहस्थ के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ का आयोजन होता है। मुख्यमंत्री के नवाचारी होने का नवीनतम प्रसंग है, शौर्य स्मारक। जवानों की शहादत को प्रणाम करने के लिए देश का पहला 'शौर्य स्मारक' भी मध्यप्रदेश में स्थापित किया गया है।
शिवराज सिंह चौहान की वक्तृत्व कला भी उन्हें सबसे अलग पहचान देती है। वह बेहद सहज और सरल अंदाज में अपनी बात रखते हैं। कुछ लोग हास-परिहास में टिप्पणी करते हैं कि मुख्यमंत्री का भाषण देने का अंदाज कुछ ऐसा है कि मानो वह 'सत्यनारायण की कथा' कह रहे हों। दरअसल, उनके भाषण में एक लय है। यह लय ही उनके कहे को सीधे जनता के हृदय में उतारती है। जिस बोली में प्रदेश का सामान्य व्यक्ति बातचीत करता है, मुख्यमंत्री उसी बोली में अपनी बात रखते हैं। विशुद्ध किसान परिवार से आने के कारण शिवराज सिंह चौहान के शब्दकोश में गाँव-देहात में उपयोग होने वाले शब्दों की सहज उपलब्धता है। यही कारण है कि जनता को दूसरे राजनेताओं की अपेक्षा शिवराज अपने अधिक नजदीक दिखाई देते हैं। प्रदेश के सामान्य जन मानते हैं कि हममें से ही एक व्यक्ति प्रदेश का मुखिया है, शिवराज कोई दीगर नहीं है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि अत्यधिक विनम्र होने के कारण ही शिवराज सिंह चौहान की वाणी में कभी भी आक्रामकता देखने को नहीं मिलती। कई बार उन पर व्यक्तिगत हमले भी किए गए, लेकिन उन्होंने किसी भी परिस्थिति में अपना संयम नहीं खोया। शिवराज सिंह की भाषण कला इतनी प्रभावी और अनूठी है कि अपनी वक्तृत्व कला से सबको मंत्र मुग्ध करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उनके मुरीद हैं। पिछले वर्ष भोपाल में आयोजित 'भाजपा कार्यकर्ता महाकुम्भ' में उन्होंने स्वयं यह स्वीकार किया कि उन्हें एकात्म मानवदर्शन पर शिवराज सिंह चौहान का धाराप्रवाह भाषण सुनना बड़ा प्रिय लगता है।
आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले प्रधानमंत्री मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम की तर्ज पर अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी 'शिव की बात' के जरिए प्रदेश की जनता से संवाद करेंगे। मुख्यमंत्री का यह निर्णय इस बात को दर्शाता है कि उन्हें जनता के साथ संवाद करना और उसके बीच में रहना सुहाता है। संभवत: यही कारण है कि उन्हें जनता का मुख्यमंत्री कहा जाता है। अपने 11 वर्ष के कार्यकाल में शिवराज जनता के बीच और जनता के लिए सहज उपलब्ध रहे हैं। मध्यप्रदेश के इतिहास में अब तक उनसे अधिक और व्यापक दौरे-प्रवास कभी किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किए होंगे। शिवराज सिंह बाढग़्रस्त क्षेत्रों का हवाई दौरा नहीं करते हैं, बल्कि जमीनी स्तर पर सुदूर क्षेत्रों में जाकर पीडि़त जनता के दर्द को समझने का प्रयास करते हैं। संकट की घड़ी में प्रदेश के मुखिया को अपने बीच पाकर जनता को भरोसा होता है कि उनकी चिंता की जाएगी। अनेक अवसर ऐसे उपस्थित होते हैं, जब सुरक्षा कारणों से उन्हें दौरा करने से रोका जाता है। लेकिन, मुख्यमंत्री जिद करके मुसीबत में घिरे लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए उन तक पहुँचते हैं। शिवराज के इस आचरण से उनके और जनता के बीच आत्मीय संबंध बन गया है।
भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के प्रति शिवराज के मन में अगाध श्रद्धा है। उनका प्रयास रहता है कि समाज में भारतीय जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना हो। बहरहाल, बहुत कम लोगों को पता होगा कि शिवराज सिंह चौहान की संगीत में गहरी रुचि है। मुख्यमंत्री गोविंदा बनकर मटकी फोड़ते हैं, भजन गाते हैं, ढोल बजाकर आनंदित होकर नाचते भी हैं। धार्मिक साहित्य पढऩे और धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने में उनका मन रमता है। प्रतिवर्ष नवरात्रि में मुख्यमंत्री आवास पर दुर्गा पधरवाते हैं, कन्या भोज कराते हैं और उनके पाँव पूजते हैं। शिवराज सिंह चौहान परिवार घूमने के बड़े शौकीन हैं। मनोरम स्थलों की सैर करना उन्हें सुखद लगता है। यही कारण है कि वर्ष में कम से कम एक बार वह पचमढ़ी जरूर जाते हैं। इसके अलावा प्रदेश में उन्होंने घूमने के नए स्थान विकसित करा दिए हैं। इन स्थानों पर वह कैबिनेट की बैठक भी आयोजित करा देते हैं। इसके अलावा उन्हें गाने सुनना और फिल्में देखना भी भाता है। सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों को वह सदैव प्रोत्साहित करते हैं। अनेक अवसर पर सार्थक फिल्मों को वह प्रदेश में कर मुक्त कर देते हैं।
बहरहाल, जब हम शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तित्व को देखते-समझते हैं, तब एक शब्द से उनको संपूर्ण अभिव्यक्त किया जा सकता है कि वह बेहद संवेदनशील हैं। वह कहते हैं कि 'प्रजा सुखं सुखं राज: प्रजाना च हिते हितम्।' अर्थात् प्रजा के सुख से राजा का सुख है। प्रजा के हित में उसका हित है। शिवराज सिंह चौहान इसको न केवल कहते हैं, बल्कि जीते भी दिखाई देते हैं। अपने संवेदनशील हृदय के कारण ही शिवराज सिंह चौहान जनहित के लिए प्रतिबद्ध हैं।
बहुत ही उम्दा .... sundar lekh .... Thanks for sharing this nice article!! :) :)
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