के न्द्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के शोधार्थी छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या अफसोसजनक है। किसी युवा का इस तरह जाना स्वस्थ समाज के लिए ठीक नहीं है। लेकिन, इससे भी अधिक अफसोसजनक और शर्मनाक रोहित की आत्महत्या पर हो रही राजनीति है। हमारे राजनेताओं ने जातिभेद को खत्म करने के लिए भले कभी कोई प्रयास नहीं किया होगा, लेकिन इस मामले को जातिवाद का रंग देकर जातिभेद को गहरा करने का काम जरूर कर रहे हैं। रोहित वेमुला की आत्महत्या को जातिवाद से जोडऩा किसी भी नजरिए से ठीक नहीं है। लेकिन, अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए हम यह पाप भी कर रहे हैं। जातिवाद की इस घृणित राजनीति के जरिए हम दलित और सवर्ण को एक-दूसरे के सामने दुश्मन की तरह खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। हम सामाजिक समरसता को बिगाडऩे के लिए इतने उतावले क्यों बैठे हैं? जबकि इतना सच तो सबको पता है कि रोहित वेमुला के छात्रावास से निष्कासन में कहीं भी जाति कारण नहीं थी। इसके बाद भी हमारे राजनेता और बुद्धिवादी झूठ बोलने का साहस कहाँ से बटोरकर लाते हैं?
रोहित वेमुला और उसके साथियों को एबीवीपी के कार्यकर्ता पर जानलेवा हमला करने के आरोप में छात्रावास से निष्कासित किया गया था। इस झगड़े की जड़ आतंकवादी 'याकूब' का समर्थन करना था। रोहित वेमुला और उसके साथियों ने आंबेडकर स्टूडेंट्स असोसिएशन (एएसए) एवं कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े छात्र संगठनों के साथ मिलकर विश्वविद्यालय परिसर में आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया और बाद में याकूब के लिए श्रद्धांजलि सभा का भी आयोजन किया। शिक्षा संस्थान में आतंकवादी के समर्थन में हो रहे इस प्रदर्शन के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र सुशील कुमार ने फेसबुक/ट्वीटर पर कुछ लिख दिया। इसके बाद रोहित और उसके साथियों ने सुशील कुमार की जमकर मार-पिटाई कर दी। छात्र की बहुत तबीयत बिगड़ गई थी। छात्र की माँ तब अदालत भी पहुंची थी। मामले ने बहुत तूल पकड़ लिया था। एबीवीपी ने मामले की शिकायत विश्वविद्यालय प्रशासन से की। लेकिन, विश्वविद्यालय प्रशासन ने तब इस मामले में ठोस कार्रवाई नहीं की।
एबीवीपी ने केन्द्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय को ज्ञापन दिया, जिसमें विश्वविद्यालय में चल रही अराजकता और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की गई थी। दत्तात्रेय ने इन गतिविधियों पर संज्ञान लेने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखा। बाद में, रोहित वेमुला और उसके चार साथियों को एक विद्यार्थी की पिटाई करने के मामले में छात्रावास से निष्कासित कर दिया गया। अब रोहित ने आत्महत्या कर ली। इस पूरे प्रकरण में जातिभेद कहीं भी नहीं है। पीडि़त छात्र की शिकायत और शिक्षा परिसर में अनुशासन बनाए रखने के लिए निष्कासन की कार्रवाई स्वाभाविक थी। इसलिए राजनेताओं को समझना चाहिए कि अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए समाज में विभेद की खाई को गहरा करने का षड्यंत्र न करें। उन बुद्धिवादियों को भी संभलकर लिखना-बोलना चाहिए जो दादरी के बाद हैदराबाद का इंतजार कर रहे थे। जिनकी संवेदनाएं इंदौर, टोंक, मालदा, पूर्णिया और पुणे के घटनाक्रमों पर मर गईं थीं।
फिलहाल, छात्रों के विरोध और गुस्से को देखते हुए पुलिस ने केन्द्रीय मंत्री बडारू दत्तात्रेय, भाजपा विधायक एमएलसी रामचंद्र राव और विश्वविद्यालय के कुलपति सहित अन्य के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। जबकि केन्द्रीय मंत्री का कहना है कि रोहित की आत्महत्या से उनका कोई लेना-देना नहीं हैं। उन्होंने तो सिर्फ एबीवीपी की शिकायत को मानव संसाधन विकास मंत्रालय भेजा था। बहरहाल, मामले की ईमानदारी से जाँच होनी चाहिए। इस बात की भी निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए कि रोहित वेमुला ने किसके प्रभाव में आकर या फिर किसके उकसाने पर आत्महत्या की?
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-01-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2228 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सत्य शोर में छिप जाता है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन क्या लिखा जाये, क्या नहीं - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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