आ तंकियों ने पाकिस्तान के चारसद्दा स्थित बाचा खान विश्वविद्यालय में घुसकर विद्यार्थियों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया है। विद्यार्थी अपने भविष्य को संवारने के लिए तालीम हासिल कर रहे थे। जहाँ हसीन सपने जन्म ले रहे थे, बर्बर मानसिकता के हमलावरों ने छात्रों के उन्हीं मस्तिष्क को उड़ा दिया। यह घटना बेहद दर्दनाक है। पाकिस्तान सरकार के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए कि आतंकवादी शिक्षा प्राप्त कर रहे युवाओं को अपना शिकार बना रहे हैं। तकरीबन एक साल पहले दिसंबर-२०१४ में आतंकियों ने पेशावर में सेना के स्कूल पर हमला किया था। उस हमले में करीब १५० मौत हुईं थीं, इनमें ज्यादातर विद्यार्थी थे। दोनों शिक्षा संस्थानों पर हमला करके छात्रों की जान लेने वाला आतंकी संगठन एक ही है। तहरीक-ए-तालिबान ने विद्यार्थियों का खून बहाया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बाचा खान विश्वविद्यालय पर हुए आतंकी हमले में करीब २५ लोगों की जान चली गई है, जबकि करीब ५० गंभीर घायल हैं। दुनियाभर में इस हमले की निंदा हो रही है।
क्या विडम्बना है कि बाचा खान यानी खान अब्दुल गफ्फार खान यानी सीमांत गांधी की पुण्यतिथि पर ही उनके नाम से स्थापित विश्वविद्यालय में आतंकियों ने कहर बरपाया है। खान अब्दुल गफ्फार खान गांधीवादी विचारों के वाहक थे। उनकी सोच उदारवादी थी। वह महिला शिक्षा के भी हिमायती थे। उनके विचारों के कारण ही विश्वविद्यालय में लड़के और लड़कियों के साथ-साथ पढऩे की व्यवस्था की गई थी। बाचा खान की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित अमन मुशायरे में शामिल छात्रों पर गोलियां बरसाकर आतंकियों ने उदारवादी सोच की हत्या करने का कुप्रयास किया है। पाकिस्तान की आवाम और सरकार को कम से कम अब तो तय कर लेना चाहिए कि आतंकियों के मनसूबे ठीक नहीं हैं। आतंक और आतंकी किसी के सगे नहीं हैं। आतंकी अपनी सुविधा के अनुसार किसी की भी जान ले सकते हैं। आतंकियों का दिमाग इस कदर खराब कर दिया जाता है कि वे समूची मानवता के लिए खूंखार हो जाते हैं।
पाकिस्तान सरकार को आतंकवाद के खात्मे के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। बाचा खान विश्वविद्यालय पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा है कि बच्चों की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। छात्रों की हत्या करने वालों का कोई धर्म नहीं है। नवाज शरीफ को समझना होगा कि बच्चों की कुर्बानी तभी बेकार नहीं जाएगी, जब पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाए। आतंकवाद पर ढुलमुल रवैए से काम नहीं चलेगा। पाकिस्तान सरकार को आतंकवाद से निपटना है तो भारत विरोधी आतंकी संगठनों और आतंकियों को भी अपनी जमीन पर पलने से रोकना होगा। हाफिज सईद हो या मसूद अजहर, किसी को भी पालने की जरूरत नहीं है। यह दोनों सिर्फ भारत के दुश्मन नहीं है। इनसे सबको खतरा है। आज यदि इन विषधरों का फन नहीं कुचला गया तो कल यह पाकिस्तान को भी डस सकते हैं। हालांकि पाकिस्तान के लिए आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेडऩे के लिए छप्पन इंच के सीने की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि, वर्षों पाकिस्तान ने आतंकवाद को खाद-पानी उपलब्ध कराया है।
भले ही हम कहें कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है लेकिन आतंकियों ने आड़ के लिए इस्लाम का झंडा उठा रखा है। इसलिए भी पाकिस्तानी हुकूमत को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पसीने छूट जाते हैं। हालांकि, विद्यालय और महाविद्यालय में विद्यार्थियों पर आतंकी हमला ऐसा अवसर है जब आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में पाकिस्तान सरकार को अपनी आवाम का साथ मिल सकता है। क्योंकि, अपने बच्चों को यूं जाया होते कोई नहीं देख सकता। इसलिए नवाज शरीफ को बिना देरी किए ठोस कदम उठा लेना चाहिए। बहरहाल, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमले की कड़ी निंदा की है और मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
घर के चराग से जलता घर
जवाब देंहटाएंपता नहीं फिर लोग आतंकियों की पैरवी क्यों करने लगते हैं?
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