राजनीति किसी को भी शीर्षासन करा सकती है। फिलहाल वामपंथ धर्म पर शीर्षासन करता हुआ नजर आ रहा है। अपनी नीतियों, विचारों और दोहरे आचरण के कारण वामपंथी दल भारत में लगभग अप्रासंगिक हो चुके हैं। वामपंथी दलों का राजनीतिक जनाधार लगातार खत्म होता जा रहा है। भारतीय राजनीति में अपना वजूद बचाने के लिए वामपंथी दल उदारवादी रास्ते की ओर बढऩे का विचार बना रहे हैं क्या? 'ठहरे हुए पानी' में कुछ दिनों से अजीब-सी हलचल हो रही है। यही हलचल इस सवाल का कारण है। 'धर्म को अफीम' मानने वाली विचारधारा की रुचि 'धर्म' में बढ़ती नजर आ रही है। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी केरल के शिवगिरि स्थित समाज सुधारक संत श्रीनारायणगुरु के तीर्थस्थान पहुंचे और धर्म के प्रति वामपंथी नजरिए को स्पष्ट करने का प्रयास किया। घोषित तौर पर नास्तिक सीताराम येचुरी का श्रीनारायणगुरु के तीर्थस्थान पर पहुंचना, कोई सहज घटना नहीं है। राजनीति ही नास्तिक येचुरी को खींचकर यहाँ ले आई है। गौरतलब है कि श्रीनारायणगुरु की बहुत मान्यता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यहाँ आ चुकी हैं। केरल में आने वाले चुनावों के मद्देनजर श्रीनारायणगुरु के अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित करने का लोभ येचुरी को धर्म की सरण में ले आया है।
येचुरी ने कहा है- ''मार्क्स के मशहूर कथन 'धर्म लोगों के लिए अफीम है' को हमेशा गलत तरीके से समझा गया है। जैसे अफीम का नशा करने के बाद इंसान एक अलग दुनिया में चला जाता है और वास्तविक धरातल से ऊपर उठ जाता है, वैसा ही धर्म के साथ होता है। वामपंथ धर्म की आलोचना नहीं करता, लेकिन उन स्थितियों और पाखंडों की आलोचना करता है, जिनसे लोगों पर धर्म थोपा जाता है।'' यहां सवाल उठता है कि आखिर इतने वर्षों बाद कार्ल मार्क्स के कथन को कथित 'सही संदर्भों' में समझाने की क्या आवश्यकता पड़ गई? जनता यह क्यों माने कि येचुरी माक्र्स के कथन का सही आशय बता रहे हैं? उनके पूर्ववर्ती प्रकांड वामपंथियों ने तो उसका आशय हमेशा कुछ और ही बताया है। क्या इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि येचुरी और उनकी विचारधारा के प्रमुख लोगों को यह अहसास हो गया है कि भारत में धर्म को, खासकर 'हिन्दू धर्म' को अफीम की संज्ञा देकर राजनीति संभव नहीं है। धर्म को लेकर मार्क्स का 'अफीम दर्शन' भारत में वामपंथ के लिए धीमा जहर साबित हुआ है। गौरतलब है कि वामपंथ ने अपनी राजनीतिक जड़ें जमाने के लिए शुरुआत से ही भारत के मूल धर्म के साथ भेद-भाव किया है। वामपंथी और तथाकथित प्रगतिशील होने के लिए हिन्दू धर्म की निंदा करना अनिवार्य शर्त हो गई है। हिन्दुओं को गाली दे रहे हो, उनका उपहास उड़ा रहे हो, उनके आराध्यों के संबंध में अनर्गल लिख-पढ़ रहे हो, यानी आप खरे वामपंथी हो। जबकि वामपंथी विचारकों ने कभी भी ईसाई और इस्लाम के आडम्बरों की आलोचना नहीं की। ईसाई और इस्लाम की आलोचना करके आप वामपंथी नहीं रह सकते। एक तो धर्म की गलत समझ और ऊपर से इस तरह के दोहरे आचरण के कारण वामपंथ समूचे भारत में स्वीकार्यता नहीं पा सका। कांग्रेसी सत्ता के संरक्षण में वामपंथ ने थोड़ा-बहुत जनाधार बना लिया था। लेकिन, जैसे-जैसे वामपंथ का असली चेहरा बहुसंख्यक समाज के सामने आता गया, वैसे-वैसे यह जनाधार भी खत्म होता गया।
सीपीएम महासचिव येचुरी ने श्रीनारायणगुरु के समर्थकों से कहा कि उनकी पार्टी हर किसी को उसकी मर्जी के धर्म और मान्यता में आस्था रखने और उसका प्रचार करने की पूरी छूट देगी। येचुरी के इस कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि वामपंथ में ईसाई और इस्लाम का आदर था, हिन्दुत्व की उपेक्षा और यह भी कि वामपंथ में सबको समान आजादी नहीं थी। यानी वामपंथ में अब तक 'सबके' को कोई स्थान नहीं था। उनके कथन से वामपंथ के 'समानता के नारे' की पोल-पट्टी भी खुलकर सामने आ गई है। दरअसल, येचुरी संदेश देना चाह रहे थे कि अब हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों को भी वामपंथ में स्वीकार्य किया जाएगा। लेकिन, येचुरी भूल गए कि उनकी पार्टी में आने के लिए कोई लालायित नहीं है, जो वह लोगों को अपने धर्म को बनाए रखने की छूट देने की बात कर रहे हैं। यहां येचुरी और उनकी विचारधारा का अहंकार दिखाई देता है। ज्यादा अच्छा होता यदि येचुरी धर्म के प्रति मार्क्स के दर्शन की तथाकथित सही व्याख्या करने की जगह वामपंथ की सबसे बड़ी गलती को स्वीकार कर लेते। भारत की धर्म-परंपरा, संस्कृति और बहुसंख्यक समाज का लम्बे समय तक अपमान करते रहने के लिए क्षमा मांग लेते। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि अभी भी वह धर्म को समझे नहीं हैं। धर्म का राजनीतिक हित साधने के लिए इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। यहां ध्यान देना होगा कि ऊपरी तौर पर भले ही लग रहा है कि वामपंथी दल 'अफीम' चाटने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन वामपंथी दलों की फितरत और इतिहास बताता है कि यह सब लोगों को भ्रम में रखने का उनका प्रयास है। येचुरी का श्रीनारायण गुरु के आश्रम में जाना इसलिए भी चौंकाता है क्योंकि हाल में, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर वामपंथी विचारधारा श्रीनारायणगुरु का अपमान कर चुकी है। लम्बे समय तक धर्म को 'गरियाने' के बाद अब धार्मिक हो जाना, वामपंथ के लिए लगभग मुश्किल है।
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