ग जब है! आज के समय में हिन्दुस्थान में हिन्दुओं को अपने घर बचाने के लिए धर्म बदलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं कि मुगलों के अत्याचार से बचने के लिए हिन्दुओं ने मजबूरी में इस्लाम स्वीकार किया। जरूर किया होगा। गर्दन पर तलवार रखी हो और पूछा जा रहा हो- 'जान बचानी है या धर्म? ' तब विकल्प ही कितने बचते हैं आदमी के पास। कुछ ने मौत स्वीकारी तो बहुतों ने मजबूरी में इस्लाम। लेकिन, अब न तो मुगलिया शासन है और न उनकी तलवार का आतंक। फिर कौन है? क्या परिस्थितियां हैं? क्या संकट है कि अपना घर बचाने के लिए हिन्दू धर्मांतरण को मजबूर हैं।
उत्तरप्रदेश में जब से समाजवादी पार्टी सरकार में आई है, वहां हिन्दू जनमानस के समक्ष चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हिन्दुओं के लिए अपनी बेटी, अपना धर्म और अपना घर तक बचाना मुश्किल हो रहा है। हिन्दुओं के साथ हो रहे दोयम दर्जे के व्यवहार को देखकर कभी-कभी भ्रम होता है कि उत्तरप्रदेश, उत्तरप्रदेश है या पाकिस्तान। उत्तरप्रदेश सरकार के ताकतवर मंत्री और कौमी नेता मोहम्मद आजम खान के चुनावी क्षेत्र रामपुर में हिन्दू बस्ती को चिह्नित कर, हिन्दुओं के घर तोड़े जाने का तुगलकी फरमान नगर निगम से जारी हुआ। मुसीबत का मारा हिन्दू समाज अपने घरों की हिफाजत करने के लिए सड़क पर उतर आया। आंदोलन शुरू कर दिया। प्रदर्शन किया। धरने पर भी बैठा। लेकिन, सरकार ने अपना रुख नहीं बदला बल्कि प्रदर्शन कर रहे 86 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। आजम खान के दबाव में मुलायम सरकार की छवि लगातार मुस्लिम हितैषी और हिन्दू विरोधी बन गई है। जब कोई जतन काम नहीं आया तो मोहम्मद आजम खान को खुश करके अपने घर बचाने के लिए करीब 100 हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन करना स्वीकार कर लिया। हिन्दुओं के मुसलमान बन जाने से शायद आजम खान का दिल पसीज जाए और गरीब वाल्मीक परिवारों की छत बची रह जाए। उत्तरप्रदेश के रामपुर से आ रहीं खबरें तो ये भी हैं कि अपने घरों को बचाने के लिए हिन्दुओं पर इस्लाम स्वीकार करने के लिए दबाव बनाया गया। उनके समक्ष सवाल खड़ा किया गया-'घर प्यारा है या धर्म? '
बहरहाल, घटना का इतना विवरण इसलिए दिया है, क्योंकि अखबारों और न्यूज चैनल्स पर यह खबर कहीं नहीं है। धर्मांतरण की इतनी बड़ी घटना पर कहीं कोई हंगामा नहीं। सेक्युलर बुद्धिजीवियों की जमात हमेशा की तरह खामोश रही। मॉल की ओर जाने वाली सड़क को चौड़ा करने के लिए गरीबों के घर तोडऩे के फरमान पर वामपंथी ब्रिगेड भी गुड़ खाकर बैठी रही। जबकि आगरा में 'घर वापसी' के घटनाक्रम पर इन सबने आसमान सिर पर उठा लिया था। कभी इसी तरह की मजबूरी में हिन्दू से मुसलमान बने लोग वापस हिन्दू होना भी चाहें तो ये होने नहीं देते। लेकिन, दबाव और लालच से हिन्दू समुदाय का धर्मांतरण करने की घटनाओं पर ये मूक दर्शक बने रहते हैं। इस चयनित सेक्युलरिज्म को क्या नाम दिया जाए? कितने आश्चर्य की बात है कि भारत जैसे देश में हिन्दुओं के सामने ऐसी स्थितियां खड़ी कर दी जाती हैं कि उन्हें अपना घर बचाने के लिए अपना धर्म बदलने का फैसला करना पड़ता है। ऐसी खबर लाहौर से आती है तो आश्चर्य नहीं होता लेकिन, भारत के किसी हिस्से से आए तो शर्मनाक है, आपत्तिजनक है और चिंतनीय भी है। ऐसा तो पाकिस्तान में ही होता है कि हिन्दुओं के घरों पर कब्जा कर लिया जाता है। हिन्दुओं की लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्मांतरण किया जाता है। वर्ष 2014 में उत्तरप्रदेश में अपहरण कर हिन्दू लड़की का धर्मांतरण करने का मामला भी सामने आया था। साहब! हिन्दुस्थान को हिन्दुस्थान ही रहने दीजिए पाकिस्तान मत बनाइए। यहां अमन है, वहां संघर्ष है। यहां दोनों समुदायों के बीच मोहब्बत की खिड़कियां खुली हुई हैं, वहां दोनों के बीच कभी न टूटने वाली दीवार खड़ी हो गई है। यहां सब तरह की आजादी है, वहां बंदिशें ही बंदिशें हैं। यहां लोकतंत्र है, वहां दमनतंत्र है।
एक सवाल हर बार जवाब मांगता है कि हिन्दुओं के साथ उत्तरप्रदेश में इस तरह का भेदभाव किसके इशारे पर किया जा रहा है? क्या यह सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे का षड्यंत्र है? या फिर एक मंत्री अपनी ताकत का इस्तेमाल हिन्दुओं को जलील करने के लिए कर रहा है? बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर साम्प्रदायिक माहौल बिगाडऩे का आरोप लगाने वालों को सोचना चाहिए कि असल में सांप्रदायिकता के बीज कौन बो रहा है? जरा देखना होगा कि जब से समाजवादी पार्टी सरकार में आई है तब से उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक तनाव की कितनी घटनाएं हो चुकी हैं? सैकड़ों की संख्या में इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, कारण क्या है? सरकार किसके दबाव में है और क्यों है? सरकार को तटस्थ रहना चाहिए। किसी खास संप्रदाय के प्रति सरकार का झुकाव सांप्रदायिक तनाव ही बढ़ाता है। इस तरह के मामलों पर उत्तरप्रदेश सरकार को अपनी नीयत साफ रखनी होगी।
भारत में किसी भी सरकार का उद्देश्य लोक कल्याण है। वंचितों और गरीबों के हितों का संरक्षण करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। लेकिन, उत्तरप्रदेश सरकार अपनी इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं कर पा रही है। उक्त घटना से यह भी जाहिर होता है कि सपा सरकार को गरीबों के हित की चिंता नहीं है, उसे तो मॉल की ओर जाने वाली सड़क चौड़ी करनी है। इसके लिए चाहे गरीबों के घरौंदे ही क्यों न तोडऩे पड़ें। आखिर, सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरियां आ खड़ी हुईं कि एक मॉल के रास्ते में आने वाले सैकड़ों परिवारों के घरों पर बुलडोजर चलाने का फैसला लेना पड़ा। क्या गरीब लोगों के घरों से ज्यादा अहम मॉल हो गया है? क्या हिन्दू वाल्मीक बस्ती से ही मॉल का रास्ता निकलता है? सरकार की नीयत में खोट होगा तो ऐसे सवाल उठेंगे ही। घर हिन्दुओं के हों या मुसलमानों के, किसी एक मॉल के लिए नहीं टूटने चाहिए। मॉल वैसे भी लोक कल्याण का उपक्रम नहीं है कि उसके लिए गरीबों से उनकी छत छीनी जाए। मामला और अधिक तूल पकड़े, सरकार की किरकिरी हो, उससे पहले ही ठोस कदम उठाने होंगे। सरकार को दखल देकर नगर निगम का तुगलकी फरमान वापस करवाना चाहिए। इससे भी एक कदम आगे बढ़कर सरकार को अपना रवैया बदलना होगा। उसे सब पंथों के साथ समान रूप से व्यवहार करना चाहिए। और हां, कौमी नेताओं की नकेल भी कसनी होगी। सरकार किसी की जागीर नहीं, सबके लिए है।
(स्वदेश ग्वालियर में प्रकाशित आलेख।)
आज़ादी के बाद से अब तक कितने हिन्दुओं ने अपने धर्म का परित्याग कर अन्य धर्मों को स्वीकार किया है ..इस बात का सर्वेक्षण किया जाना चाहिये और पूरी दुनिया के सामने यह रिपोर्ट रखी जानी चाहिये । स्वतंत्र भारत में भी यदि हिन्दू धर्मांतरण के लिये तैयार होता है तो निश्चित ही स्थितियाँ भयावह हैं । हम भारत को आज भी स्वतंत्र देश नहीं मानते । राष्ट्रवादी लोग भी अपंग होते दिखायी पड़ रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंमीडिया दिखाई नहीं दे रही है उन्हे हिंदुओं का धर्मांतरण दिखाई नहीं देता यदि मुसलमानों का मतांतरण हुआ होता तो ये पत्रकार आसमान सिर उठा लेते ।
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