कमोडिटीज कंट्रोल डॉट कॉम के सम्पादक कमल शर्मा से बातचीत
'स मय परिवर्तनशील है। जब आप समय के साथ जुड़ते हैं तो आपका विकास निश्चित है। बदलाव को समझिए और उसके साथ हो लीजिए, यह ही जीवन है। समूची पत्रकारिता में आ रहे बदलाव को हम सब महसूस कर रहे हैं। वेब मीडिया एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। स्थिति यह है कि अगले दो साल यानी 2016 में वेब मीडिया में भी परिवर्तन आना है। हम मीडिया को मुट्ठी में बंद कर घूमेंगे। अपनी खबरें, अपने हिसाब से, जी चाहेगा तब देख-पढ़ सकेंगे। यह होगा। अपना वजूद बचाए रखने के लिए देश के बड़े मीडिया संस्थानों को यह करना ही पड़ेगा।' अपने 30 साल के पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर कमोडिटीज कंट्रोल डॉट कॉम के सम्पादक कमल शर्मा ने गहरे आत्मविश्वास के साथ ये विचार साझा किए। उन्होंने वेब मीडिया को समय की जरूरत बताया। उनके साथ हुई बातचीत को बताने से पहले बेहद सहज, सरल और बेबाक कमल शर्मा का जिक्र करना चाहूंगा। 31 अगस्त, 1963 को राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में जन्मे कमल शर्मा हिन्दी के शीर्ष के उन पत्रकारों में शामिल हैं, जिन्होंने आगे बढ़कर चुनौतियों को स्वीकार किया। वे भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के पत्रकारिता पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स के पहले बैच के छात्र हैं। बाद में उन्होंने सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी, राजकोट से पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। नवभारत टाइम्स, नईदिल्ली से शुरू हुआ पत्रकारिता का सफर बड़े शान से राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला कारोबार, व्यापार, लोकमत समाचार, देवगिरी समाचार और दैनिक भास्कर मुम्बई ब्यूरो प्रमुख होते हुए करीब दस साल पहले कमोडिटीज कंट्रोल डॉट कॉम तक पहुंचा है। इस बीच वे कभी न थके, न रुके और न ही अपने पथ से डिगे। निरंतर चलते जाना ही उनका मूलमंत्र रहा। आज भी देशभर में घूम-घूमकर आर्थिक पत्रकारिता को बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं। ईटीवी ग्रुप में बतौर बिजनेस एडिटर और सीएनवीसी आवाज में बतौर प्रोड्यूसर भी श्री शर्मा काम कर चुके हैं।
जब भारत में वेब पत्रकारिता ने कदम रखे तब खालिस पत्रकार इस विद्या में जाने का जोखिम लेने से बच रहे थे, तब पहले पहल वेब पत्रकारिता को चुनौती की तरह कमल शर्मा ने स्वीकार किया। इंडिया इंफो डॉट कॉम के बुलावे पर वहां कंटेंट मैनेजर (सम्पादक) के रूप में सार्थक समय बिताया। मैंने उनसे सवाल किया कि जब आपके साथी टीवी पत्रकारिता की ओर रुख कर रहे थे तब आपने नए माध्यम में जाने की क्यों सोची? भारत जैसे देश में वेब मीडिया के सफल होने पर सब शंका कर रहे थे, तब आपने वेब पत्रकारिता से जुडऩे का साहस कहां से जुटाया? श्री कमल शर्मा ने हंसते हुए कहा - 'सही मायने में जोखिम और चुनौतियों का ही तो दूसरा नाम पत्रकारिता है। फिर, वेब पत्रकारिता में जाने के लिए अलग से साहस की जरूरत कहां।' उन्होंने कहा कि बदलाव समय की अनिवार्य शर्त है। बदलाव को पढऩा आपको आना चाहिए। समय के साथ हो रहे अच्छे बदलाव के साथ आप जुड़ जाते हैं तो आप निश्चित ही ग्रोथ करेंगे। यह सच है, जब वेब मीडिया ने भारत में आमद दर्ज कराई तब उन्हें अच्छे पत्रकारों की जरूरत थी। लेकिन, हर कोई वहां जाने को तैयार नहीं था। जब मैंने वेब पत्रकारिता में जाने का फैसला किया तो दोस्तों ने खूब रोका -'मत जाओ, देश में कम्प्यूटर साक्षर लोग ही बहुत नहीं है तो फिर इंटरनेट पर तुम्हारी खबरों को देखेगा-पड़ेगा कौन? करियर चौपट हो जाएगा, अच्छा-खासा मुकाम तुमने प्रिंट पत्रकारिता में हासिल कर लिया है तो फिर क्यों ऐसा जोखिमभरा फैसला ले रहे हो?' बड़ा अच्छा लगता है कि आज उन सब दोस्तों के अखबार-न्यूज चैनल्स इंटरनेट पर भी हैं। उन्हें भी अपनी-अपनी वेबसाइट बनाने को मजबूर होना पड़ा है। यह ही है वेब मीडिया की ताकत। शुरुआती दौर में इंडिया इंफो डॉट कॉम और रेडिफ डॉट कॉम ही ऐसी वेबसाइट थीं, जिन्होंने कंटेन्ट (समाचार, मनोरंजन और विविध सामग्री) इंटरनेट के माध्यम से परोसने का साहस किया। आज तो ढेरों वेबसाइट हैं।
'वेब मीडिया की ताकत से एक सवाल उपजता है, जो आजकल गाहे-बगाहे चर्चा में भी रहता है। आपको क्या लगता है कि वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया को खा जाएगा? खत्म कर देगा? दुनिया में जिस तरह बड़े-बड़े अखबारों के शटर गिर रहे हैं, क्या वैसी स्थिति वेब मीडिया भारत में बना सकेगा? हालांकि यही हौव्वा टीवी पत्रकारिता की शुरुआत में उठाया गया था लेकिन हुआ विपरीत, अखबारों के कई एडिशन शुरू हो गए और प्रसार संख्या की तेजी से बड़ी है।' मेरे इस सवाल का श्री शर्मा ने बड़ी सहजता से जवाब दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि अखबार खत्म हो जाएंगे और टीवी चैनल्स बंद हो जाएंगे। लेकिन, आप देखिए कि किस तरह वेब मीडिया ने परम्परागत मीडिया को चुनौती दी है। छोटे-बड़े अखबारों के सामने यह स्थिति खड़ी कर दी है कि उन्हें अपने वेब पोर्टल्स शुरू करने पड़े हैं। अब कोई भी नया अखबार-चैनल अपने वेब पोर्टल के साथ ही लोगों के बीच आता है। यह बड़ा बदलाव है और परम्परागत मीडिया को बड़ी चुनौती है। अखबारों ने आज जो उपलब्धि हासिल की है, उसे पाने में उन्हें 150 से 200 साल लग गए। इलेक्ट्रोनिक मीडिया को भी लम्बा वक्त बीत गया है। लेकिन, वेब मीडिया ने कम समय में अपनी सशक्त भूमिका का प्रदर्शन किया है। वेब मीडिया ने डॉट कॉम बबलबस्ट के बाद जो धमाकेदार वापसी की है, उसमें सब शंकाओं का समाधान है। दरअसल, वेब मीडिया नए भारत का मीडिया है। आज का युवा बहुत ही सेलेक्टिव हो गया है। चैनल्स पर जरूरी नहीं कि आप जब फुर्सत हो तब आपकी रुचि की खबरें आ रही हों। अखबार में भी आपको पन्ने पलटने पड़ते हैं। लेकिन, वेब मीडिया ने तो क्रांति कर दी है। आप जब चाहें, जहां चाहें, अपने अनुसार खबरें पढ़ सकते हैं।
श्री शर्मा ने बताया कि वेब पत्रकारिता का अगला चरण मोबाइल है। अब हर हाथ में स्मार्टफोन है और युवाओं की बड़ी आबादी टेक्नोक्रेट। इसलिए मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए कंटेन्ट उपलब्ध कराने के प्रयास तेज हो रहे हैं। आप देखिएगा, 2016 में भारतीय पत्रकारिता का नया चेहरा मोबाइल होगा। देश के कुछ बड़े मीडिया समूहों ने इस दिशा में चिंतन और काम शुरू भी कर दिया है। जो मीडिया हाउस बदलाव के हिसाब से अपने को तैयार नहीं कर रहे, उनके अस्तित्व पर भी संकट आ सकता है। प्रिंट, टीवी और वेब तीनों ही माध्यम यदि मोबाइल एप्लीकेशन के बढ़ते जाल से जुडऩे का प्रयास नहीं करेंगे तो वे काफी पीछे छूट जाएंगे।
करियर की संभावनाओं के हिसाब से भी वेब पत्रकारिता को उन्होंने बेहतर क्षेत्र बताया। इस क्षेत्र में कितनी संभावनाएं हैं उसे कुछ यूं भी समझ सकते हैं कि यदि एक दिन के लिए भी गूगल को बंद कर दिया जाए तो क्या स्थिति हो जाएगी, आपको अंदाजा है। श्री शर्मा ने कहा कि वर्तमान में बड़े से बड़े मीडिया हाउस भी अपनी वेबसाइट के लिए अभी अलग से रिपोर्टर नहीं रखते हैं। लेकिन, निकट भविष्य में यह करना पड़ेगा। आज भी कई वेबसाइट हैं जो व्यावसायिक तरीके से संचालित की जा रही हैं, वहां डेस्क के साथ ही फील्ड में काम करने वाले लोगों की जरूरत है। वेब मीडिया हमें उद्यमी बनने का भी मौका दे रहा है। दो-तीन साथी मिलकर बेहद कम लागत में, महज दो-तीन लैपटॉप, इंटरनेट कनेक्शन और पोर्टल के नाम रजिस्टेशन के साथ ही कुछ रुपयों में अपनी वेबसाइट संचालित कर सकते हैं। गूगल सहित कई उदाहरण हैं, जिनकी शुरुआत बेहद छोटे प्रयास ही हुई लेकिन वे आज क्या हैं, हम सब जानते हैं।
वेब मीडिया का जिक्र जैसे ही आता है तो उसमें फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग सहित दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट को भी शामिल कर लिया जाता है। यह कहां तक सही है? क्या इन्हें भी वेब मीडिया मानेंगे? चाय का एक सिप लेते हुए कमल शर्मा ने जवाब दिया- 'आपकी चिंता सही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रसारित हो रही भ्रामक खबरों के कारण अब इसे मीडिया कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा। पत्रकारिता की पहली शर्त होती है कि कुछ भी अपुष्ट, अस्पष्ट और सामाजिक सौहार्द बिगाडऩे वाले समाचार प्रसारित न हों लेकिन सोशल साइट्स पर इन सिद्धांतों का पालन नहीं किया जा रहा है। हालांकि यह भी सच है कि भले ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स को वेब मीडिया अभी न कहा जाए लेकिन ये वेब मीडिया के सहायक टूल्स तो है हीं।' उन्होंने बताया कि इंटरनेट ने आज हर आदमी को पत्रकार बना दिया है। हर आदमी की हद और हाथ में अपनी बात दुनिया के सामने पहुंचाने की ताकत आ गई है। मर्यादा का पालन करना हमारे हाथ में है।
(मीडिया विमर्श में प्रकाशित साक्षात्कार)
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