भोपाल स्थित इंदिरा गाँधी मानव संग्रहालय में कई प्रकार के मुखौटों की प्रदर्शनी |
मैं नहीं जानता सत्य क्या है
और असत्य क्या?
बस जानता हूं इतना
जो जी रहा हूं सत्य है
पर मृत्यु को झुठला रहा हूं, वह असत्य है।
सत्य-असत्य
बीच में बहुत बारीक-सा पर्दा है
जो उठ गया सत्य है
जो छुप गया असत्य है।
असल में,
असत्य का कोई अस्तित्व नहीं
वह तो सत्य का मुखौटा
ओढ़कर ही आता है।
मुखौटा हट जाने पर
सत्य ही सामने आता है।
सत्य साहसी है, वीर है
वह समाज के लिए लड़ता है
जबकि असत्य कायर है, भीरू है
वह डरता है, समाज को ठगता है।
सत्य कभी खुद को छिपाता नहीं
वह तो भीड़ से निकलकर सामने आता है
किन्तु असत्य सदैव स्वयं को छिपाता है
कभी भीड़ के पीछे
तो कभी रूप बदल आता है।
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- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)
धन्यवाद रविकर जी
जवाब देंहटाएंसत्य-असत्य
जवाब देंहटाएंबीच में बहुत बारीक-सा पर्दा है
जो उठ गया सत्य है
जो छुप गया असत्य है।
..बहुत सही कहा ..
..सार्थक चिंतन भरी प्रस्तुति
असल में,
जवाब देंहटाएंअसत्य का कोई अस्तित्व नहीं
वह तो सत्य का मुखौटा
ओढ़कर ही आता है।
मुखौटा हट जाने पर
सत्य ही सामने आता है।
बहुत सुन्दर !
गुस्सा
गणपति वन्दना (चोका )
बढ़िया लेखन , लोकेन्द्र भाई धन्यवाद !
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