कां ग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की चाल-चरित्र संदिग्ध है। जनता को उनकी नीति-नीयत भी विश्वसनीय नहीं है। यूपीए सरकार एक ओर तो भ्रष्टाचारियों और आतंकवादियों को बचाने में जुटी नजर आती है वहीं दूसरी ओर देश के लिए जीवन खपा देने वालों को अकारण ही प्रताडि़त करने में जी जान से जुटी है। इसका प्रमाण है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चार शीर्षस्थ वैज्ञानिकों को कालीसूची में डालना और थल सेनाध्यक्ष के साथ किया गया गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार।
सरकार ने गुपचुप तरीके से चार जाने-माने अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को काली सूची में डाल दिया। इससे भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर सहित पूर्व वैज्ञानिक सचिव ए. भास्करनारायण, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपग्रह केन्द्र के पूर्व निदेशक केएन शंकरा और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के कार्यकारी निदेशक केआर श्रीधरमूर्ति भविष्य में किसी संवैधानिक पद पर नियुक्ति नहीं हो सकेंगे। सरकारी की इस कार्रवाई के खिलाफ देश के तमाम वैज्ञानिकों ने नाराजगी जाहिर की। जी. माधवन नायर कहते हैं कि प्रधानमंत्री इस आदेश की जांच कराएं और पता लगाएं कि मुझे मेरा अपराध बताए बिना कार्रवाई क्यों की गई। ए. भास्करनारायण ने भी कहा कि - हमने 37 साल से ज्यादा काम किया। रविवार सहित प्रति औसतन नौ से दस घंटे काम किया है। सारा जीवन देश की तरक्की के लिए न्योछावर कर दिया। लेकिन, एक दिन हमारे खिलाफ इस तरह की कार्रवाई की जा रही है।
वहीं इसरो के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर यूआर राव ने एंट्रिक्स-देवास मामले में बचाव का मौका दिए बिना चार वैज्ञानिकों के खिलाफ की गई कार्रवाई को बेतुका बताया। देश के दिग्गज वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन ने भी मामले पर खेद जताते हुए कहा कि प्रकरण जल्द खत्म होना चाहिए। इससे देश के वैज्ञानिकों के मन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। प्रधानमंत्री सलाहकार परिषद के प्रमुख प्रो. सीएनआर राव ने देश के शीर्ष वैज्ञानिकों पर अलोकतांत्रिक ढंग से की गई कार्रवाई को गलत बताया। उन्होंने बेहद तल्ख टिप्पणी में कहा कि नायर और उनके तीन सहयोगी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को कचरे की तरह उठाकर फेंक दिया गया है। उन्होंने एक बड़ा सवाल देश के सामने उठाया कि ऐसी कार्रवाई सरकार भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ क्यों नहीं कर रही?
काली सूची में वैज्ञानिकों को डालने से पहले एंट्रिक्स-देवास सौदे में हुए घपले की जांच कर रही समितियों की रिपोर्ट के कुछ हिस्से जारी किए गए। कहा जा रहा है कि सरकार ने जानबूझकर रिपोर्ट के उन हिस्सों को जारी किया, जो उसके लिए सुविधाजनक हैं। सवाल तो यह भी उठ रहा है कि दो जांच समितियां क्यों? दो रिपोर्ट क्यों? पांच सदस्यीय दल में सिर्फ प्रत्यूष सिन्हा और राधाकृष्णन के नाम ही सार्वजनिक क्यों हुए बाकि के तीन सदस्य कौन? बहरहाल, रिपोर्ट के जारी हिस्सों से भी यह पता नहीं चलता है कि एंट्रिक्स-देवास सौदे में घपला हुआ था या यह सिर्फ नियमों के उल्लंघन का मामला है। दोनों समितियां इस नतीजे पर पहुंची हैं कि 2005 में इसरो की मार्केटिंग शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन और बेंगलूरु की प्राइवेट कंपनी देवास मल्टीमीडिया के बीच अंतरिक्ष स्पेक्ट्रम के उपयोग के हुए करार में प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ और सरकार को उस बारे में पूरी सूचना देने जैसी प्रशासनिक जिम्मेदारी का सही ढंग से पालन नहीं किया गया, लेकिन देवास कंपनी से संबंधित वैज्ञानिकों कोई लाभ मिला इसके सबूत नहीं आए हैं। केन्द्र सरकार ने इन्हीं रिपोर्ट को आधार बनाकर वैज्ञानिकों के खिलाफ कार्रवाई की है जबकि उसमें वैज्ञानिकों की मिलीभगत उजागर नहीं हो रही। इससे कार्रवाई के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।
निराधार आरोप : वर्ष २००५ में इसरो की मार्केटिंग शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन और बेंगलूरु की प्राइवेट कंपनी देवास मल्टीमीडिया के बीच हुए करार के तहत मल्टीमीडिया ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए १००० करोड़ रुपए में देवास को दो खासतौर पर तैयार उपग्रह और ७० मेगा हटर््ज का एक बैंड स्पेक्ट्रम देना तय हुआ था। बाद में मीडिया में खबरें आई थी कि यह सौदा बहुत कम कीमत पर किया गया है, यह देवास को सीधे-सीधे लाभ पहुंचाने की कोशिश है। एंट्रिक्स-देवास सौदे में कैग ने देश का दो लाख करोड़ रुपए के आर्थिक नुकसान की बात कही थी। इससे सरकार के कान खड़े हो गए क्योंकि इसरो प्रधानमंत्री कार्यालय से सीधे जुड़ा है और सीधे तौर पर उसे ही रपट करता है। आरोपों की जांच के लिए पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी और अंतरिक्ष आयोग के सदस्य रोड्डम नरसिम्हा की जांच समिति ने संधि को खंगालना शुरू किया। अनेक वैज्ञानिकों और अधिकारियों से पूछताछ के बाद निष्कर्ष आया कि सौदे की शर्तों में कहीं कुछ आपत्तिजनक नहीं था। समिति के अनुसार देवास को कम कीमत पर स्पेक्ट्रम बेचने की बात निराधार है। अंतरिक्ष के स्पेक्ट्रम के लिए देवास को दूरसंचार विभाग, सूचना प्रसारण विभाग से लाइसेंस लेने जरूरी थे और ट्रांस्पोंडर ली और ट्राई द्वारा निर्धारित की जाने वाली अन्य राशि भी देनी थी। प्रत्युष सिन्हा की रिपोर्ट भी घोटाले की बात को तो खारिज करती है लेकिन प्रक्रिया में अनियमितता की बात कहती है। प्रक्रिया में अनियमितता के लिए चारों वैज्ञानिक कहां दोषी है यह बताने में रिपोर्ट असमर्थ है। एंट्रिक्स की ओर से करार पर हस्ताक्षर करने वाले श्रीधर मूर्ति कहते हैं कि प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं बरती गई। सब कुछ पांच मंत्रालयों की रजामंदी और उनकी देखरेख में किया गया है तो फिर हम कहां दोषी हैं? 3 नवंबर को 2004 को इंसेट कॉर्डीनेशन कमेटी (आईसीसी) की शाखा टैग के पास प्रपोजल गया। टैग में वित्त, संचार, सूचना, प्रसारण, पर्यटन और उड्डयन मंत्रालय के सचिव सदस्य हैं। किसी ने आपत्ति नहीं ली। इधर, अब प्रत्युष सिन्हा कमेटी कह रही है कि आईसीसी के पास प्रपोजल भेजा ही नहीं। इसी तरह 26 मई 2005 को सैटेलाइट बनाने का प्रपोजल कैबिनेट भेजा गया। दिसंबर 2005 में इसके लिए राशि स्वीकृत हो गई। फाइल पर वित्त मंत्रालय की ओर से मेंबर फाइनेंस के हस्ताक्षर हैं। लेकिन, अब सरकार कह रही है कि कैबिनेट को इस बारे में कोई जानकारी नहीं। 29 अक्टूबर 2009 को कैबिनेट में संधि के तहत बनने वाली दूसरी सैटेलाइट के लिए भेजे गए प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी। लेकिन, अब प्रत्युष सिन्हा कमेटी दावा कर रही है कि देवास कंपनी और एंट्रिक्स के बीच सौदा गुपचुप तरीके से हुआ। इससे सरकार को पूरी तरह अलग रखा गया। जाहिर है वैज्ञानिकों को जानबूझ कर फंसाया जा रहा है। जबकि सौदे के लिए साफ तौर पर यूपीए सरकार जिम्मेदार है।
सेना प्रमुख की उम्र विवाद के मामले में भी सरकार के ढुलमुल रवैए की खासी आलोचना हो रही है। सरकार चाहती तो उम्र के मामूली विवाद को आपसी सहमति से निपटा सकती थी। लेकिन, उसकी नीयत साफ नहीं थी, इसलिए यह नहीं हो सका। थक-हारकर सेना अध्यक्ष वीके सिंह को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। हालांकि बाद में उन्होंने वहां से अपनी याचिका वापस ले ली है। इस मामले में जनरल वीके सिंह का कहना है कि यह कार्यकाल बढ़ाने का मुद्दा नहीं है। बल्कि बात व्यक्तिगत और प्रोफेशनल सम्मान की है, जो एक सैनिक के रूप में उन्हें बहुत अजीज है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 है। वे जन्मतिथि में सुधार की स्वीकृति का लाभ नहीं उठाएंगे और अवकाश ग्रहण की निर्धारित तिथि यानी 31 मई 2012 को ही रिटायर हो जाएंगे। इधर, उनकी इस भावनात्मक अपील के बाद भी रक्षा मंत्रालय अपने रुख पर अड़ा रहा। यूपीए सरकार की ओर से थल सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह के लिए अपनाए गए रवैए पर पूर्व सैन्य अधिकारियों ने नाराजगी जाहिर की। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जीएस नेगी ने कहा कि मामला पहले ही सुुलझा लेना चाहिए था। जिस प्रकार से सरकार कदम उठा रही है उससे लगता है कि सरकार को अपने चीफ पर भरोसा नहीं। यह सेना के लिए ठीक नहीं इससे सेना के मनोबल पर असर पड़ेगा। वहीं, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ओपी कौशिक का भी मानना है कि सरकार के इस कदम से सेना और देश के नागरिकों का मनोबल गिरा है।
यहां एक बार फिर से प्रधानमंत्री वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख प्रोफेसर सीएनआर राव के सवाल पर लौटते हैं कि- सरकार ऐसी कार्रवाई भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ क्यों नहीं कर रही। सवाल मौजूं है। यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में करीब 62 बड़े घोटाले सामने आए हैं। इनमें अनेक नेताओं के संलिप्त होने की बात सामने आई है। एक तरफ तो सरकार बिना दोष सिद्ध हुए वैज्ञानिकों को काली सूची में डाल देती है दूसरी ओर तमाम नेताओं का खुलकर बचाव करती रही है। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में ही शुरुआत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ए.राजा का बचाव करते दिखे। कपिल सिब्बल तो टूजी स्पेट्रम में घोटाला हुआ है मानने को ही तैयार नहीं थे। जब भी टूजी घोटाले में पी. चिदंबरम का नाम आता है सरकार तुरंत बचाव में कूद आती है। सरकार ने लंबे समय तक राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के प्रमुख आरोपी सुरेश कलमाड़ी का भी बचाव किया। गाए-बगाहे आज भी कांग्रेस के महासचिव कलमाड़ी को पाक साफ साबित बताते हैं। कांग्रेस की दिल्ली की सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भी राष्ट्रमंडल में खेलों में हुए घोटले में लिप्त होने के आरोप लगे। लेकिन, उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं सरकार देश के जाने-माने वैज्ञानिकों और सेना के अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को जितनी तत्पर दिखती है उतनी तो देश पर आतंकी हमला करने वाले अजमल कसाब और अफजल गुरु को फांसी के फंदे पर लटकाने को भी नहीं दिखती। उलटा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनके नाम पर चुनावों में वोट मांगते नजर आते हैं। बाटला हाउस को फर्जी साबित करते नहीं थकते।
बहरहाल, दोनों मसलों को देखा जाए तो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अपनी कार्यप्रणाली से यही प्रतीत करा रही है कि वह देश के प्रतिष्ठत संस्थानों से खेल रही है। सरकार की नीति-नीयत साफ नहीं।
मध्यप्रदेश भाजपा की पत्रिका चरैवेति के मार्च के अंक में प्रकाशित आलेख.
लगता हा नियति साफ़ नही है,..
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
इस सरकार से देश को १० साल पीछे पहुंचा दिया है . नेता लोग करोड़ो के वारे न्यारे कर रहे हैं .आम इंसान
जवाब देंहटाएंमहंगाई से मर रहा है , सार्थक लेख
यह तो केवल काली सूची में डालने का मामला है। ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोगों को तो आत्महत्या करने पर विवश कर देने वाली व्यवस्था ही अब हमारी राष्ट्रीय संस्कृति बन गयी है। इसी सप्ताह छत्तीसगढ़ के एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को आत्महत्या करनी पड़ी है। यह परम्परा इसरो में भी रही है। हमने कई वैज्ञानिकों को खो दिया है।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख। कुर्सी पर बैठे हुए लोग अगर खुद अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर सकते तो कमसे कम जनता द्वारा दिये गये संकेत तो समझ ही सकते हैं। भ्रष्टाचार और भेदभाव ने इस देश का बहुत अहित किया है, इस बीमारी से छुटकारा तो पाना ही होगा।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख |
हटाएंलूट-लाट में लटपटा, बने लटा जब लाट।
जवाब देंहटाएंदेश भक्त की कर रहे, खड़ी हमेशा खाट ।
खड़ी हमेशा खाट, रिसर्चर हैं ये नामी ।
कालिख लगा ललाट, कराते क्यूँ बदनामी ।
पार-दर्श सरकार, रहे जो राज-पाट में ।
पकड़े धंधेबाज, लगे जो लूट-लाट में ।
सार्थक, सामयिक प्रस्तुति, आभार.
जवाब देंहटाएंकरनी इनकी अपनी काली है और बलि का बकरा ये किसी और को बनाते है ! अब यूपी ही देख लीजिये जो राजा भैया कल तक जिस पुलिस की नजरों में मुजरिम था अब उसी पुलिस को उस मानती साहब को सलूट बजाना पडेगा ! देश असामाजिक तत्वों के कब्जे में है !
जवाब देंहटाएंहर अध्याय काला है लोकेन्द्र जी!! जिसे भी हाथ लगाइए, हाथ मैला हो जाता है!!
जवाब देंहटाएंदेश आज बेहद चुनौतियों से गुजर रहा है लोकेन्द्र जी ........अभी हाल में ही अरविन्द केजरीवाल ने टिपण्णी की थी की " आज के नेता जब पैसे पर बिक जाते हैं तो यह भी संभव है की देश के दुश्मनों के हाथों भी बिक चुके हों | सम्भव है आज के नेताओं की भीड़ में कुछ विदेशियों के हाथ बिके हुए गुप्तचर भी हों ........आज लोकतंत्र ने आपने भरोसे पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है .....
जवाब देंहटाएंफ़िलहाल आपकी पोस्ट बेहद प्रभावशाली और तथ्यों लैस है | बहुत बहुत आभार |
वाह...वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
कहावत है कि जितने गूलर फोडोगे उतने ही कीडे निकलेंगे । लोकेन्द्र जी सदा की तरह आपका यह लेख भी विचारोत्तेजक है ।पता नही यह गिरावट कहाँ जाकर रुकेगी ।
जवाब देंहटाएंविस्तृत और विचारपूर्ण खबर.
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