मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

परीक्षा में फेल-पास से बड़ा है जीवन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक जिम्मेदार अभिभावक की भांति देश के भविष्य के साथ संवाद का एक क्रम बनाया है- परीक्षा पे पर्चा। उनके इस प्रयास का अनुकरण सभी परिवारों में होना चाहिए। परीक्षा के तनावपूर्ण वातावरण को समाप्त करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों से इसी प्रकार संवाद करें और उनके भीतर आत्मविश्वास एवं सकारात्मकता जगाएं। अधिकतम अंक पाने की दौड़ में हमने परीक्षा में सफलता को जीवन से बड़ा बना दिया, जिसके कारण कई होनहार विद्यार्थी किन्हीं कारणों से कम अंक पाने पर अवसाद में चले जाते हैं या फिर इसे अपनी विफलता मानकर जीवन को ही समाप्त करने का गलत निर्णय कर बैठते हैं। परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए विद्यार्थी के मन में भाव जागृति करना अपनी जगह है, लेकिन उसे ही सफलता के रूप में स्थापित कर देना ठीक बात नहीं है। 

जब एक छात्रा ने पूछ कि “मैं फेल हो गई तो क्या होगा, इस डर से कैसे बचें?” तब प्रधानमंत्री मोदी ने इसका बहुत सुंदर उत्तर दिया कि हर साल 10वीं-12वीं में 30-40 प्रतिशत प्रतिशत बच्चे फेल होते हैं, उनका क्या होता है? बच्ची कहती है कि वे फिर से कोशिश करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि फिर से फेल हो गए तो जिंदगी अटक नहीं जाती है। आपको तय करना होगा जीवन में सफल होना है या फिर किताबों से सफल होना है। जीवन में सफल होने का एक उपाय यह होता है कि आप अपने जीवन की जितनी विफलताएं हैं उनको अपना शिक्षक बना लें। यह बात सबको गाँठ बांध लेनी चाहिए कि परीक्षा में असफल होने का यह अर्थ नहीं कि वह अन्य किसी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता। इसलिए सभी अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों का संबल बनें। परीक्षा के प्राप्तांक को लेकर अपने बच्चों की किसी से तुलना नहीं करें और न ही असफल होने पर उलाहना दें। उन्हें बताएं कि जीवन में और भी अवसर हैं। ऐसे अनेक सफल लोग हैं, जो किताबी पढ़ाई में असफल रहे लेकिन दूसरे क्षेत्रों में सफलता की मिसाल बन गए हैं। 

प्रधानमंत्री मोदी ने परीक्षा की तैयारी में शामिल विद्यार्थियों का तनाव दूर करके, उनका आत्मविश्वास बढ़ाने और सफलता के वास्तविक मायने बताने के साथ ही समय प्रबंधन की सीख भी दी। वैसे तो जीवन के प्रत्येक क्षण में समय प्रबंधन का महत्व है लेकिन परीक्षा के दिनों में इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। परीक्षा के दबाव में हर समय पुस्तकों में सिर घुसाए रहने की अपेक्षा अध्ययन के दौरान छोटे-छोटे अंतराल भी लेना चाहिए। इसकी भी सूची बनानी चाहिए कि पहले किन विषयों एवं किन अध्यायों को पढ़ना है। अकसर होता यह है कि जो विषय हमें पसंद होता है, हम उन्हें रुचि लेकर पढ़ते हैं और उनमें समय भी अधिक लगा देते हैं। यह इसलिए भी होता है क्योंकि रुचि के विषय का अध्ययन करते हुए समय का ध्यान भी नहीं रहता है। यदि हम समय प्रबंधन करके अध्ययन करेंगे, तो कमजोर विषयों को भी आवश्यक समय दे पाएंगे। परीक्षा के तनाव के बीच अनावश्यक सोच-विचार (ओवर थिंकिंग) से भी बचना चाहिए। परीक्षा से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, इसे एक चुनौती मानकर अपना प्रयास ईमानदारी से करना चाहिए। 

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