जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोध रिपोर्ट ‘दिल्ली में अवैध अप्रवासी : सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण’ को गंभीरता से देखने की आवश्यकता है। यह रिपोर्ट जनसांख्यकीय असंतुलन के भयावह परिणामों की ओर से संकेत करती है। अवैध अप्रवासियों से न केवल सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, अपितु लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। जेएनयू की रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश और म्यांमार से रोहिंग्या सहित अन्य मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में घुसपैठ करके दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में बस गई है। इसके कारण दिल्ली की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, जो दिल्ली आज से 10-15 साल पहले हुआ करती थी, आज नहीं है। अवैध अप्रवासियों के कारण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है। संसाधनों पर भी दबाव बढ़ा है। स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ा है। जो मजदूर वर्ग कल तक हरियाणा, पूर्वांचल, ओडिशा, केरल के लोग होते थे, वे अब रोहिंग्या हैं। इन अवैध घुसपैठियों के कारण भारतीय नागरिकों से मजदूरी सहित अन्य काम छिन गया है।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जो नेता एवं राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए भाषणों में गरीबों, महिलाओं और मजदूरों की बातें करते हैं, उनके रोजगार को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं, वे अवैध घुसपैठ और उसके कारण उत्पन्न परिस्थितियों पर चुप्पी साध लेते हैं। उन्हें यह दिखायी नहीं देता कि रोहिंग्या किस प्रकार हमारे मजदूरों का काम छीन रहे हैं। रोहिंग्याओं ने किस प्रकार अपराध को बढ़ा दिया है। लोकतंत्र और संविधान की चिंता करने का ढोंग करनेवाले नेताओं को यह भी नहीं दिखायी देता है कि अवैध अप्रवासी भारतीय राजनीति को अपने ढंग से प्रभावित कर रहे हैं। अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि चंद वोटों के लालच में यही नेता अवैध घुसपैठियों के फर्जी दस्तावेज भी बनवाने में सहायता करते हैं।
जेएनयू की प्राध्यापक मनुराधा चौधरी और उनके साथी शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि बांग्लादेश और म्यांमार से आनेवाले रोहिंग्या मुसलमानों को राजनीतिक दल बढ़ावा दे रहे हैं। ये बांग्लादेशी और रोहिंग्या दिल्ली के जामिया नगर (शाहीन बाग), जाकिर नगर (ओखला), लाजपत नगर, सीलमपुर, सुल्तानपुरी, मुस्तफाबाद, निजामुद्दीन, सराय रोहिल्ला, शाहदरा, भलस्वा डेयरी, बवाना, द्वारका, रोहिणी, मोती नगर कैलाश नगर, खिचड़ीपुर, सराय काले खां, जाफराबाद, खान मार्केट और गोविंदपुरी में रह रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली के उक्त क्षेत्रों में हुए मतदान और चुनाव परिणाम का विश्लेषण करें तब ध्यान आएगा कि किस तरह ‘लोकतंत्र को हैक’ कर लिया गया है। जनसांख्यकीय असंतुलन से उत्पन्न खतरे केवल दिल्ली में ही नहीं अपितु देश के विभिन्न हिस्सों में दिखायी देते हैं। इसलिए यह एक राज्य का मामला नहीं है, इस वृहद दृष्टिकोण से देखने एवं समाधान निकालने की आवश्यकता है। यह केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं बनना चाहिए। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए ठोस नीति बने और उसका क्रियान्वयन भी हो।
किसी क्षेत्र में मुस्लिम आबादी बढ़ जाती है, तो वहाँ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक वातावरण किस प्रकार भयावह हो जाता है उसका उदाहरण है पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में मुस्लिम समुदाय के कट्टरवादी धड़ों ने कई स्थानों पर वसंत पंचमी के प्रसंग पर सरस्वती पूजन नहीं होने दिया। कुछ स्थानों पर तो माँ सरस्वती की मूर्तियां ही तोड़ दी गईं। इस प्रकार के उदाहरण समूचे देश से निकाले जा सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि अवैध घुसपैठ एवं जनसांख्यकीय असंतुलन के खतरे पर गंभीरता से विचार-विमर्श हो और हम समाधान की ओर आगे बढ़ें।