भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश में ‘स्वाधीनता का अमृत महोत्सव’ का वातावरण है। सभी देशवासी इस अवसर पर स्वाधीनता के अपने नायकों को याद कर रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को गौरव की अनुभूति कराने और राष्ट्रभक्ति से जोड़ने के लिए ‘हर घर तिरंगा’ अभियान का आह्वान कर दिया है। अमृत महोत्सव के तहत 11 अगस्त से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की शुरुआत की जा रही है, जिसमें सभी लोग अपने घर पर तिरंगा लगाएंगे। निश्चित ही यह अभियान हमारे मन में देशाभिमान जगायेगा। इस तरह के आह्वान और अभियान का परिणाम यह होता है कि लोग अपने इतिहास, गौरव और राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ते हैं। जैसे अमृत महोत्सव के कारण बहुत से गुमनाम नायकों की कीर्ति गाथाएं हमारे सामने आयीं, ऐसे ही हर घर तिरंगा के कारण हम राष्ट्रध्वज के इतिहास से जुड़ रहे हैं।
किसी भी देश का ध्वज उसकी पहचान होता है। इतिहास में जाकर हम देखते हैं तो ध्यान आता है कि लोगों को गौरव की अनुभूति कराने के लिए कोई न कोई ध्वज हमेशा रहा है। भारतीय इतिहास में डूब कर देखते हैं तो यहाँ की सांस्कृतिक पहचान ‘भगवा’ रंग का ध्वज रहा है। आज भी दुनिया में भगवा रंग भारत की संस्कृति का प्रतीक है। अर्थात सांस्कृतिक पताका भगवा ध्वज है। वहीं, राजनीतिक रूप से राष्ट्र ध्वज ‘तिरंगा’ है।
स्वतंत्रता के संघर्ष में जब सबको एकसूत्र में जोड़ने के लिए एक ध्वज की आवश्यकत अनुभव हो रही थी, तब अलग-अलग ध्वज सामने आये। ऐसी स्वीकार्यता है कि पहली बार 1904 में विवेकानंद की शिष्या भगनी निवेदिता ने एक ध्वज बनाया। यह ध्वज लाल और पीले रंग से बना था। पहली बार तीन रंग वाला ध्वज 1906 में बंगाल के बँटवारे के विरोध में निकाले गए जलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लाए। इस ध्वज में सबसे ऊपर केसरिया, बीच में पीला और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था। केसरिया रंग पर 8 अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे। नीचे हरे रंग पर एक सूर्य और चंद्रमा बना था। बीच में पीले रंग पर हिन्दी में वंदे मातरम् लिखा था। इसी तरह 1907 में भीकाजी कामा ने जर्मनी में तिरंगा झंडा लहराया और इस तिरंगे में सबसे ऊपर हरा रंग था, बीच में केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस ध्वज में भी देवनागरी में वंदे मातरम् लिखा था और सबसे ऊपर 8 कमल बने थे। इस ध्वज को भीकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर तैयार किया था। प्रथम विश्व युद्ध के समय इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया।
इसी क्रम में 1916 में पिंगली वेंकैया ने भी एक ध्वज की कल्पना की। महात्मा गांधी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल करते हुए तिरंगा बनाया। स्वतंत्रता आन्दोलन के साझ मंच ‘कांग्रेस’ ने 1931 में इसी ध्वज को झंडे को स्वीकार किया। तब झंडे के बीच में अशोक चक्र नहीं बल्कि चरखा था। बाद में, ध्वज समिति ने अशोक चक्र युक्त तिरंगा को राष्ट्र ध्वज बनाने का सुझाव दिया। 22 जुलाई, 1947 को भारत के संविधान द्वारा तिरंगा को राष्ट्र ध्वज के रूप में अपनाया गया।
इस अभियान की स्वीकार्यता को इस बात से समझा जा सकता है कि ध्वज के निर्माता पिंगली वेंकैया की जयंती अर्थात 2 अगस्त से ही इसको लेकर उत्साह दिखने लगा है। प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने प्रोफाइल में तिरंगा लगा लिया है। कई बार लोगों को जिज्ञासा होती है कि प्रधानमंत्री मोदी का बात का जनता पर जादू की तरह असर क्यों होता है? उसका कारण है कि प्रधानमंत्री जो कहते हैं, उसे स्वयं भी करते हैं। यानी वे कोरा भाषण नहीं करते हैं बल्कि जनता के सामने स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। अच्छा होगा कि सभी लोग दलगत और वैचारिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर ‘हर घर तिरंगा’ अभियान में जुडें क्योंकि यह किसी एक राजनीतिक दल (भारतीय जनता पार्टी) का अभियान नहीं है, अपितु यह देश का अभियान है।
#HarGharTiranga #AmritMahotsav #Tiranga #MainBharatHun
#HarGharTiranga अभियान से कुछ लोगों, राजनीतिक दलों और वैचारिक खेमों को भारी कष्ट हुआ है, ऐसा साफ़ दिख रहा है. #HarGharTiranga अभियान में शामिल होने की जगह इधर-उधर की बेफिजूल बातें बना रहे हैं.
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) August 4, 2022
मतलब हर बात पर विरोध और राजनीति जरूरी है क्या? pic.twitter.com/kJK7cEFqDl
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