गुरुवार, 11 अगस्त 2022

गोवा मुक्ति आन्दोलन में तिरंगा थामे बलिदान हुए आरएसएस के प्रचारक राजाभाऊ महाकाल

इस वर्ष शहडोल में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग ‘द्वितीय वर्ष’ में स्वतंत्रता आंदोलन के बलिदानी राजाभाऊ महाकाल को केंद्रीय पात्र बनाकर गोवा मुक्ति आंदोलन पर एक लघु नाटिका लिखी और उसका निर्देशन भी किया। यह छोटी-सी नाटिका सबको खूब पसंद आई। 

आज सुबह स्वदेश में राजाभाऊ महाकाल पर भूपेन्द्र भारतीय जी का आलेख पढ़ा। मन प्रसन्न हो गया। कुछ नई जानकारी भी हाथ लगी। मैं कितने दिन से लिखने की सोच रहा था। अब उन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाऊंगा। 

एक गांधीवादी सज्जन मिले थे कुछ समय पूर्व। कम्युनिस्टों की संगत का थोड़ा बहुत असर था। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन हुआ था। उनकी श्रद्धांजलि सभा में जा रहे थे तो मैंने कहा कि बाबूलाल गौर स्वतंत्रता सेनानी थे, गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हुए थे। आरएसएस के लोगों ने गोवा मुक्ति आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 

मेरा इतना कहते ही अचानक से भड़क गए– "अरे तुम लोग जबरदस्ती करते हो। गोवा मुक्ति आंदोलन तो पूरी तरह से समाजवादियों का आंदोलन था"। 

मैंने मुस्कुराते हुए कहा– "हां, समाजवादियों की प्रमुख भूमिका थी। हम कहां इनकार करते हैं। हमारी आदत नहीं किसी के योगदान को अनदेखा करने और अस्वीकार करने की। परंतु संघवालों ने गोवा मुक्ति आंदोलन में हिस्सा भी लिया और बलिदान भी दिया है। इसी कारण राम मनोहर लोहिया सहित अनेक समाजवादी नेता आरएसएस के प्रति अच्छा भाव रखने लगे थे"। 

तथ्य सामने रखे तो वे और चिढ़ गए– "अरे यार तुम रहने दो"। उन्होंने वही घिसा–पिटा डायलॉग मारा– "कोई एक नाम बता दो, जो शामिल हुआ हो"। 

मैंने थोड़ा और मुस्कुराते हुए कहा– "एक तो यही (बाबूलाल गौर) दिवंगत हो गए, जिनकी श्रद्धांजलि सभा में हम बैठे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया था। दूसरे, यहाँ (भोपाल) से लगभग 200 किलोमीटर दूर उज्जैन के राजाभाऊ महाकाल थे, जिनका बलिदान वहीं गोवा में हुआ। तिरंगा लेकर चल रहे थे। पुर्तगालियों ने गोली मार दी"। 

"कुछ भी कहानी सुना रहे हो"। उनको अभी भी विश्वास नहीं हुआ। होता भी कैसे, क्योंकि उनकी पढ़ा–लिखी ही अलग ढंग से हुई थी। और फिर जरूरी थोड़े है कि कोई दुनियाभर की जानकारी प्राप्त कर लिया हो। 

"अच्छा एक काम करो। आप स्वयं उज्जैन जाकर पड़ताल कर लो। महाकाल जी के परिवार से मिल आना। शहर में भी अनेक लोग बता देंगे। यह भी पता कर लेना कि आरएसएस में उनके पास क्या जिम्मेदारी थी? वे संघ के प्रचारक थे"। मैंने उन्हें आत्मसंतुष्टि करने का पूरा अवसर दिया। वे अब बिल्कुल चुप हो गए। परंतु माने अभी भी नहीं थे। 

मैंने थोड़ा और आनंद लेने के लिए कह दिए– "आप कहो तो मैं चार्टर्ड बस के टिकट करा देता हूं। सुबह जाकर शाम तक वापस आ जाइएगा"।



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