शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

बंधुत्व का प्रतीक श्रीराम मंदिर

श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या मंदिर में विराजे रामलला के दर्शन

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जीवन भारतीय विचार की अभिव्यक्ति है। श्रीराम ने अपने जीवन से सामाजिक समरसता, एकात्म एवं बंधुत्व का संदेश दिया है। आज से हजारों वर्षों पूर्व त्रेतायुग में उन्होंने भारत को एक छोर से दूसरे छोर तक एकसूत्र में पिरोया। प्रभु श्रीराम ने सामाजिक समरसता को न केवल अपने शासन की आधारशिला बनाया, बल्कि उनके जीवन का सार भी यही है। इसलिए समूचा समाज राम का है और राम सबके हैं। आज के युग में उनके संदेश का केंद्र बनेगा अयोध्या में बनने जा रहा श्रीराम मंदिर। भारत का यह मंदिर बंधुत्व का प्रतीक होगा। पाँच अगस्त को श्रीराम की जन्मभूमि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भूमिपूजन के बाद अपने उद्बोधनों से यही संदेश दिया। 

श्रीराम मंदिर के संघर्ष को रेखांकित करते हुए दोनों महानुभावों ने कहना यही था कि श्रीराम मंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का द्योतक होगा, अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा और मार्गदर्शन करता रहेगा। यह भारत को जोडऩे का काम करेगा। श्रीराम मंदिर ने यह कार्य अपने निर्माण से बहुत पहले, आंदोलन के दौरान ही प्रारंभ कर दिया था। श्रीराम मंदिर आंदोलन में समूचे भारत से सभी वर्गों के लोग शामिल हुए। सबको स्मरण है कि अशोक सिंघल जी के नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद के प्रयासों से 1989 में श्रीराम जन्मभूमि के शिलान्यास का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था, जिसका श्रेय अचानक से भगवा रंग में रंगी कांग्रेस लूटने का प्रयास कर रही है। शिलान्यास का वह कार्यक्रम शुद्ध तौर पर विश्व हिंदू परिषद का कार्यक्रम था, जिसमें अनेक पूज्य संत शामिल हुए थे। उस दिन भी सामाजिक समरसता का उदाहरण सबने देखा था, जब अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल के कर कमलों से शिलान्यास पूजन हुआ। 

भगवान श्रीराम के दरबार में दंडवत प्रणाम करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

           5 अगस्त, 2020 को जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्य का शुभारंभ हो रहा था, तब भी कार्यक्रम में लगभग 36 परंपराओं, पंथ-संप्रदायों के संत उपस्थित थे, जिनमें प्रमुख हैं- दशनामी सन्यासी परंपरा, रामानुज, निंबार्क, वल्लभ, कृष्ण प्रणामी आदि संप्रदाय निर्मले संत, लिंगायत, रविदासी संत, जैन, सिख, मत पंथ, स्वामीनारायण, चिन्मय मिशन, रामकृष्ण मिशन, एकनाथी, वनवासी संत, सिंधी संत, रामानंदी वैष्णव, माधवाचार्य, रामस्नेही, उदासीन, कबीरपंथी, वाल्मीकि संत, आर्य समाजी, बौद्ध, नाथ परंपरा, गुरु परंपरा, आचार्य सभा के प्रतिनिधि, संत कैवल्य ज्ञान, इस्कॉन, वारकरी, बंजारा संत, आदिवासी गौण, भारत सेवाश्रम संघ, संत समिति एवं अखाड़ा परिषद। इसके अतिरिक्त भी अन्य मत-संप्रदाय के प्रतिनिधि लोग वहाँ उपस्थित रहे। 

मंदिर निर्माण के लिए देश की विभिन्न नदियों से जल एवं प्रमुख स्थानों से मिट्टी लाई गई, जिनमें संत रविदास जन्मस्थली, सीतामढ़ी उत्तर प्रदेश से महर्षि वाल्मीकि आश्रम, मध्यप्रदेश के टंट्या भील की पुण्य भूमि, श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर पंजाब, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जन्मस्थान महू की, दिल्ली के जैन लाल मंदिर, वाल्मीकि मंदिर (जहां महात्मा गांधी 72 दिन रहे थे) इत्यादि स्थान प्रमुख हैं। इसलिए बार-बार यह कहा जा रहा है कि यह मंदिर साधारण नहीं है, यह भारत की पहचान बनेगा। निश्चित ही श्रीराम मंदिर विश्व-बंधुत्व का संदेश देने वाला सबसे बड़ा केंद्र बनेगा।


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