भारत के नागरिकों का यह चरित्र इसलिए है क्योंकि उसके शास्त्र यही सीख देते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धैर्य और उत्साह को क्षीण नहीं होने देना चाहिए। जिजीविषा बनाए रखना ही पराक्रमी और विजेता लोगों की पहचान है। रामायण में माता सीता के अपहरण के बाद एक स्थान पर प्रसंग आता है कि वियोग में श्रीराम गहरे दु:ख से घिर गए हैं। उनका उत्साह बिल्कुल ठंडा पड़ गया है। तब उनके अनुज लक्ष्मण उन्हें कहते हैं-
“उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात् परं बलम्।
सोत्साहस्य हि लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्।।” (१२१ किष्किन्धाकाण्ड, प्रथम सर्ग)
“भैया, उत्साह ही बलवान होता है। उत्साह से बढ़कर दूसरा कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है।” सुमित्रानंदन आगे कहते हैं कि जिनके हृदय में उत्साह होता है, वे पुरुष कठिन-से-कठिन कार्य आ पडऩे पर हिम्मत नहीं हारते। आप जैसे महात्मा एवं कृतात्मा पुरुष को शोक शोभा नहीं देता। इसी तरह महाभारत का प्रसंग हमको ध्यान में आता है, जब युद्ध भूमि में वीर अजुर्न के हाथ से गांडिव छूट जाता है। रणभूमि में संगे-संबंधियों को अपने सामने देखकर अपराजेय अर्जुन का उत्साह ठंडा पड़ जाता है। वे घनघोर निराशा में डूब जाते हैं। तब योगेश्वर श्रीकृष्ण उनके भीतर उत्साह का संचार करते हैं।
वर्तमान समय में अनेक प्रकार से अनेक महात्मा एवं राजपुरुष लोग ‘भारत’ के उत्साह को बनाए हुए हैं। इसी महान उत्साह के बल पर हमारा संघर्ष जारी है। इसी उत्साह के बल पर हम जीतेंगे। आईए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम संकल्प लें कि भारत को मजबूत करेंगे। भारत को श्रेष्ठ बनाने में अपना ‘गिलहारी’ (हर संभव) योगदान देंगे। हम आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने के लिए आगे आएंगे। जयतु भारत....
इस अवसर पर यह कविता सुनें....
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