शनिवार, 15 अगस्त 2020

आओ, भारत को उत्साहित करें

भारत के स्वरूप पर यह कविता भी सुनें

आज भारत अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। कोरोना महामारी ने हम सबको बांध कर रखा हुआ है। इस महामारी के कारण अनेक चिंताएं और चुनौतियां हमारे सामने हैं। लेकिन, अच्छी बात यह है कि हम हारे नहीं हैं। हमने इस महामारी के सामने घुटने नहीं टेके हैं। हम पहले दिन से संघर्ष कर रहे हैं। हम ठीक उसी तरह अपनी पूरी जान लगा कर बीमारी से लड़ रहे हैं, जैसे हम विदेशी दासता से लड़े। हमने कभी भी विदेशी शासन के सामने घुटने नहीं टेके थे। हमारा संघर्ष पहले दिन से शुरू हो गया था। चाहे फिर वे मुगल हों, पुर्तगीज हों या फिर ब्रिटिश। हमने बाहर से आए आक्रांताओं एवं लुटेरों के विरुद्ध सतत् संघर्ष किया। कभी हार नहीं मानी। हमारे संघर्ष, हौसले और हमारी विजिगीषा का परिणाम था कि 1947 में शासन के सूत्र हमारे हाथ में थे। यह दीगर बात है कि पूर्ण स्वतंत्रता और स्वराज्य के लिए संघर्ष अब भी जारी है। हमें विश्वास है कि अपने इन्हीं अद्भुत गुणों के कारण हम कोविड-19 वायरस को भी भारत से बाहर खदेड़ सकेंगे। इस दिशा में कुछ उत्साहजनक समाचारों की आहट मिलना शुरू हुई है। भारत में बन रही देसी वैक्सीन अपने पहले चरण के परीक्षण में सब प्रकार से सफल रही है। उम्मीद है कि भारत की मेधा वैक्सीन के शेष चरणों का परीक्षण भी जल्द पूरा करेगी। 

भारत के नागरिकों का यह चरित्र इसलिए है क्योंकि उसके शास्त्र यही सीख देते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धैर्य और उत्साह को क्षीण नहीं होने देना चाहिए। जिजीविषा बनाए रखना ही पराक्रमी और विजेता लोगों की पहचान है। रामायण में माता सीता के अपहरण के बाद एक स्थान पर प्रसंग आता है कि वियोग में श्रीराम गहरे दु:ख से घिर गए हैं। उनका उत्साह बिल्कुल ठंडा पड़ गया है। तब उनके अनुज लक्ष्मण उन्हें कहते हैं- 

“उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात् परं बलम्।

सोत्साहस्य हि लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्।।” (१२१ किष्किन्धाकाण्ड, प्रथम सर्ग) 

“भैया, उत्साह ही बलवान होता है। उत्साह से बढ़कर दूसरा कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है।” सुमित्रानंदन आगे कहते हैं कि जिनके हृदय में उत्साह होता है, वे पुरुष कठिन-से-कठिन कार्य आ पडऩे पर हिम्मत नहीं हारते। आप जैसे महात्मा एवं कृतात्मा पुरुष को शोक शोभा नहीं देता। इसी तरह महाभारत का प्रसंग हमको ध्यान में आता है, जब युद्ध भूमि में वीर अजुर्न के हाथ से गांडिव छूट जाता है। रणभूमि में संगे-संबंधियों को अपने सामने देखकर अपराजेय अर्जुन का उत्साह ठंडा पड़ जाता है। वे घनघोर निराशा में डूब जाते हैं। तब योगेश्वर श्रीकृष्ण उनके भीतर उत्साह का संचार करते हैं। 

वर्तमान समय में अनेक प्रकार से अनेक महात्मा एवं राजपुरुष लोग ‘भारत’ के उत्साह को बनाए हुए हैं। इसी महान उत्साह के बल पर हमारा संघर्ष जारी है। इसी उत्साह के बल पर हम जीतेंगे। आईए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम संकल्प लें कि भारत को मजबूत करेंगे। भारत को श्रेष्ठ बनाने में अपना ‘गिलहारी’ (हर संभव) योगदान देंगे। हम आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने के लिए आगे आएंगे। जयतु भारत....

इस अवसर पर यह कविता सुनें.... 

माझा भारत | मेरा भारत | भारत का आध्यात्मिक काव्य चित्रण/वर्णन


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