यह ऐतिहासिक चित्र उस समय का है जब स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर 1937 में ग्वालियर में आयोजित लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस समारोह में आए थे।
हमें यह याद रखना चाहिए...
भारत के जिस स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व भारत की बेटी रानी लक्ष्मीबाई ने किया था, उसे अंग्रेज और उनके दरबारी लेखक एक साजिश के तहत 'सिपाही विद्रोह' लिख रहे थे।
जब अंग्रेज भारत की स्वतंत्रता के लिए 1857 की क्रांति से उठी चिंगारी को दबाने का प्रयास कर रहे थे। एक सुनियोजित आंदोलन को मात्र 'सिपाही विद्रोह' साबित करने में लगे थे, तब स्वातन्त्र्यवीर सावरकर ने तथ्यों के आधार पर 1857 की क्रांति को 'भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम' सिद्ध किया।
ऐसा लिखने वाले, कहने वाले और उसे सिद्ध करने वाले वे पहले लेखक हैं।
इस संबंध में उन्होंने प्रेरक पुस्तक भी लिखी, जो क्रांतिकारियों की गीता बन गई। यह दुनिया की इकलौती पुस्तक है, जिसे किसी सरकार ने प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया था।
'1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक को यशस्वी क्रांतिकारी भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार को धता बताते हुए प्रकाशित करा कर क्रांतिकारी साथियों में वितरित कराया। अन्य क्रांतिकारियों ने भी इस पुस्तक को योजनापूर्वक प्रकाशित कराया।
यह चित्र समाचार पत्र 'स्वदेश' में प्रकाशित हुआ है।
बहुत ही जानने योग्य बात है कि वीर सावरकर ने ही 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया और गांधी जी उनके प्रशंसक थे . संघ को कोसने वाले भी सुनलें इसे .
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