शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के गौरवशाली 51 वर्ष

पत्रकारिता में श्रेष्ठ मूल्यों की स्थापना करने वाले स्वदेश के प्रधान संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा का मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित गरिमामय समारोह में आत्मीय अभिनंदन

पत्रकारिता जब मिशन से हटकर व्यावसायिकता की पटरी चढ़ चुकी है, तब भी सिद्धांतों से डिगे बिना 51 वर्ष की लंबी यात्रा पूरी करने वाले स्वदेश (भोपाल समूह) के प्रधान संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा को देखकर एक विश्वास पक्का हो जाता है कि पत्रकारिता अब भी मिशनरी मोड में है। निष्कलंक, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की यह यात्रा अब भी जारी है। लोकतंत्र के इस चौथे खंबे की ओर उम्मीदों से देखने वाला समाज चाहता है कि पत्रकारिता के यह गौरवशाली और ध्येयनिष्ठ 51 वर्ष 101 हो जाएं। पत्रकारिता के निरभ्र आकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र ध्रुव की भांति श्री राजेन्द्र शर्मा न केवल आम जनमानस की आवाज बनें, बल्कि लोकहित के अपने पथ से भ्रष्ट होती पत्रकारिता का मार्गदर्शन भी करते रहें। उनके सान्निध्य में अनेक भारतीय कलम तैयार हुई हैं, जिनके लिए पत्रकारिता में समाज और राष्ट्र सर्वोपरि रहे। जिस प्रकार प्रतिकूल परिस्थितियों भी श्री शर्मा अपने पत्रकारिता धर्म पर अड़े रहे, अपने मूल्यों को साधे रहे, उसी तरह उनसे सीख कर पत्रकारिता जगत में आए पत्रकारों की कलम भी कभी झुकी नहीं। इस तरह स्वदेश परिवार के मुखिया श्री राजेन्द्र शर्मा ने न केवल अपनी कलम से देश की सेवा की, अपितु अपने गुरु दायित्व से भी राष्ट्र की उन्नति में योगदान दिया है। उनके त्याग, संघर्ष और मूल्यनिष्ठ पत्रकारीय जीवन को समाज भी मान्यता देता है। सम्मान करता है। 2018 में उनकी पत्रकारिता के 51 वर्ष पूर्ण होने पर उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने और समूची यात्रा को आज की पीढ़ी से समक्ष उपस्थित करने के उद्देश्य से आम समाज ने 01 सितंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अभिनंदन समारोह का आयोजन किया। इस सारस्वत आयोजन में मंच पर देश की सम्मानित विभूतियों और अपेक्स बैंक के सभागार ‘समन्वय भवन’ में गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति यह बयान करने के लिए पर्याप्त थी कि श्री राजेन्द्र शर्मा एवं उनकी निष्कलंक पत्रकारिता के प्रति समाज के सुधिजनों में अपार श्रद्धा-आदर है। मंच पर भारतीय ज्ञान-परंपरा के प्रख्यात चिंतक, राजनीतिज्ञ एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, त्रिपुरा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास संस्थान के निदेशक डॉ. महेश चंद्र शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी, श्री बाबूलाल गौर, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुरेश पचौरी, नगरीय प्रशासन एवं शहरी विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह, भोपाल महापौर श्री आलोक शर्मा, सांसद श्री आलोक संजर, आयोजन समिति के कार्याध्यक्ष मूर्धन्य साहित्यकार श्री कैलाशचंद्र पंत, पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा, श्रीमती अरुणा शर्मा (श्री शर्मा की सहधर्मिणी) और स्वदेश के प्रबंध संपादक श्री अक्षत शर्मा उपस्थित रहे।

- चित्रों में देखें पूरी यात्रा - 

         
         
श्री राजेन्द्र शर्मा ने 27 जुलाई 1967 को ग्वालियर से प्रकाशित समाचार पत्र ‘हमारी आवाज’ से पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखे थे। इस समाचार पत्र का प्रकाशन राजमाता सिंधिया की देख-रेख में होता था। यही पत्र कालांतर में ‘स्वेदश’ में परिवर्तित हो गया। श्री शर्मा ने पत्रकारिता के प्रति अपने समर्पण के बल पर स्वदेश को ग्वालियर का शीर्ष समाचार-पत्र बना दिया था। व्यावसायिक समाचार-पत्रों के मुकाबले स्वदेश का भी बोलबाला था। ग्वालियर से प्रारंभ हुई श्री शर्मा की यह यात्रा 51 वर्ष पूर्ण करके के बाद भी अविरल जारी है। हम कह सकते हैं, यह (51 वर्ष) तो एक पड़ाव है। स्वदेश की पत्रकारिता का तेवर अलग है। यह व्यावसायिक पत्र नहीं है। वैचारिक धारा को लेकर आगे बढ़ता है। किंतु, यह वैचारिक धारा संकीर्ण नहीं है। यह सबको साथ लेकर चलने वाली है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भयंकर प्रतिस्पद्र्धा के दौर में भी स्वदेश और श्री राजेन्द्र शर्मा की पत्रकारिता एक मिशन की तरह बनी रही। इस यात्रा का समुचित उल्लेख अपने उद्बोधन में डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने किया। दोनों के बीच निकट का संबंध रहा है। इसलिए श्री शर्मा की साधना से डॉ. जोशी भली प्रकार अवगत हैं। उन्होंने अपने मूल्यांकन के आधार पर उचित ही कहा- ‘तकनीक के बढ़ते प्रभाव ने पत्रकारिता के लिए संकट पैदा किया है। बावजूद इसके पत्रकारिता को मिशन के तौर पर अपनाने वाले लोग आज भी हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेन्द्र शर्मा ऐसे ही साधक हैं, जिन्होंने अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता की मिसाल कायम की। वह पत्रकारिता जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं।‘ डॉ. जोशी आगे कहते हैं कि स्वदेश के प्रधान संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा देश के ऐसे मूर्धन्य साधक पत्रकारों में एक हैं, जिनके लिए पत्रकारिता सदैव एक मिशन रही है। उन्होंने अपनी निष्पक्ष लेखनी से वैचारिक पत्रकारिता को जीवित रखा है। वह एक दीपक के मानिंद अंधेरे में रोशनी पैदा कर रहे हैं। डॉ. जोशी ने जो कहा वह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उनका उद्बोधन औपचारिक नहीं है, बल्कि आत्मीय है। सत्य है। यकीनन पत्रकारिता में जिस प्रकार का अंधकार पैर पसार रहा है, उसके सामने श्री राजेन्द्र शर्मा किसी दीपक की तरह पूरी निर्भीकता से डटे हुए हैं। सब प्रकार के आघात और हानि सहने को तैयार रह कर उन्होंने मूल्य आधारित, निष्कलंक, निष्पक्ष और निर्भीकता के साथ समाज को दिशा और मार्गदर्शन देने वाली पत्रकारिता की एक मिसाल कायम की है। डॉ. जोशी ने यह भी कहा कि श्री शर्मा ने पत्रकारिता में जो आदर्श स्थापित किया है, उसका आज के पत्रकारों को अनुसरण करना चाहिए। वह पत्रकारिता पर आसन्न संकट की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि विदेशी ताकतें भारत की पत्रकारिता और सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित कर रही हैं। वर्तमान दौर में संपादक को लिखने की स्वतंत्रता नहीं है। संपादक अस्तित्वहीन होते जा रहे हैं। बाजार और प्रभावशाली लोगों की अधीनता स्वीकार करने वाला ही संपादक बन पा रहा है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के स्वरूप में जिस तेजी से परिवर्तन आ रहा है उसे देखते हुए यह एक विचारणीय बिंदु है कि क्या हम आने वाले सालों में ऐसी पत्रकारिता देख पाएंगे, जिस तरह के पत्रकार का हम आज अभिनंदन कर रहे हैं।


अनासक्त भाव से किया संपादन :   
त्रिपुरा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने ग्वालियर से भोपाल तक श्री राजेन्द्र शर्मा की पत्रकारिता एवं उनके व्यक्तिगत-सामाजिक जीवन को नजदीक से देखा है। सबके प्रति आदर और स्नेह का भाव रखने वाले श्री शर्मा के व्यक्तित्व पर प्रो. सोलंकी ने कहा- ‘श्री राजेन्द्र शर्मा के अनुराग एवं संबंधों का ही असर है कि आज इतनी अधिक प्रतिभाएं इस मंच और सभागार में उनके अभिनंदन के लिए मौजूद हैं। वह स्वयं भी राज्यपाल के प्रोटोकाल के विपरीत साढ़े तीन घंटे से अधिक समय तक यहां बैठे रहने को बाध्य हुए।‘ उन्होंने कहा कि श्री शर्मा ने 51 वर्ष की पत्रकारिता में एक लम्बा समय ग्वालियर में गुजरा है। वह बाद में भोपाल आये हैं। ग्वालियर उन्होंने जो सीखा, उसका प्रस्फुटन अब तक कायम है। उन्होंने अनासक्त भाव से पत्रकारिता की है। इस तरह के महान व्यक्ति किसी के पीछे नहीं चलते, बल्कि लोग उनके पीछे चलते हैं। प्रो. सोलंकी ने बताया कि पाँच ‘एस’ श्री राजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व को अलग और सफल बनाते हैं। स्किल (कौशल), सिंसियरटी (प्रतिबद्धता), सीरियसनेस (गंभीरता), सोशल (सामाजिकता) एवं स्प्रिचुअलटी (आध्यात्मिकता), जिनमें यह पांच गुण होते हैं, उसे जीवन में सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। श्री शर्मा में यह पांचों गुण विद्यमान हैं। इसके चलते वह अपने मिशन में सफल रहे। इस अवसर पर ग्वालियर से अपने राजनीतिक जीवन का प्रारंभ करने वाले और ग्वालियर से ही सांसद एवं केंद्रीय मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि उनको वैचारिक रूप से पुष्ट करने में स्वदेश की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह बचपन से ही स्वदेश पढ़ते रहें। स्वदेश में प्रकाशित सामग्री ने उनके मन को राष्ट्रीय भाव से भर दिया। स्वदेश में प्रकाशित लेख उनके ज्ञान को सदैव समृद्ध करते रहे हैं। केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा- ‘श्री शर्मा ऐसे पत्रकार हैं जो पत्रकारिता को आज भी मिशन मानते हैं। उसी मिशन के लिए समर्पित हैं। उनके लेखन, चिंतन-विचार में त्रुटि निकालना संभव नहीं।‘ 
दीनदयाल जी के विचार को लेकर बढ़ रहे हैं आगे : 
हम जानते हैं कि स्वदेश का प्रकाशन पंडित दीनदयाल उपाध्याय के प्रयासों से प्रारंभ हुआ था। उत्तरप्रदेश के लखनऊ से स्वदेश का पहला अंक प्रकाशित हुआ। किंतु, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध के कारण स्वदेश का प्रकाशन भी बंद हो गया। हालाँकि यह बात अलग है कि संघ किसी भी प्रकार स्वदेश का सीधा संचालन न तब करता था और न आज करता है। स्वदेश संघ के विचार का अनुगामी अवश्य है, लेकिन पत्रकारिता की राह पर उसके धर्म का पूर्ण निष्ठा से पालन करता है। संघ के विचार के प्रति असहमति रखने वाले कांग्रेस के नेता भी स्वदेश की निष्पक्ष पत्रकारिता को स्वीकार करते हैं। श्री शर्मा के अभिनंदन समारोह में उपस्थित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे सुरेश पचौरी ने कहा- ‘राजनेता एवं पत्रकारों का जीवन किसी काजल की कोठरी की तरह है। इसमें आने वाले का कालिख से बचना असंभव होता है, लेकिन श्री शर्मा को कालिख छू भी नहीं सकी। उनके आलेखों को लेकर न तो कोई शंका हैं, न कुशंका। श्री शर्मा का अभिनंदन एक ऐसा आयोजन है, जो आने वाली पीढ़ी के लिए अमिट छाप छोड़ेगा। यह सरस्वती का वंदन है और मैं श्री शर्मा की निष्पक्ष पत्रकारिता को प्रणाम करता हूं।‘ पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर अध्ययन एवं शोध करने वाले चिंतक डॉ. महेश शर्मा ने भी अपने उद्बोधन में इस बात को रेखांकित किया कि श्री राजेन्द्र शर्मा के संपादकत्व में स्वदेश आज भी अपने वैचारिक अधिष्ठान को आगे रखकर संचालित हो रहा है। उन्होंने कहा- ‘स्वदेश के प्रकाशन को लेकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जो मूल्य निर्धारित किए, श्री शर्मा ने उन्हें आगे बढ़ाते हुए और मजबूती दी।‘ पंडित दीनदयाल पर किए गए शोध में डॉ. महेश शर्मा ने स्वदेश की भी महत्वपूर्ण भूमिका को न केवल उल्लेखित किया, बल्कि उसके प्रति आभार भी व्यक्त किया। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि श्री राजेन्द्र शर्मा स्वदेश के सारथी हैं। वह बिना स्वार्थ के अपना दायित्व बेहद पारदर्शी तरीके से निभा रहे हैं। उन्होंने स्वार्थों के लिए कभी कलम को गिरबी नहीं रखा। आयोजन समिति के अध्यक्ष और कार्यक्रम की भी अध्यक्षता कर रहे हिंदी सेवी साहित्यकार श्री कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि यह किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि कृतित्व का अभिनंदन है। श्री शर्मा के हर शब्द में ईमानदारी है। उन्होंने समाज में समरसता की कोशिश की है। पत्रकारिता के गौरवशाली 51 वर्ष पर श्री राजेन्द्र शर्मा के अभिनंदन में पूर्व सांसद श्री रघुनंदन शर्मा, नगरीय प्रशासन एवं शहरी विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह, भोपाल महापौर श्री आलोक शर्मा, सांसद श्री आलोक संजर और श्री शर्मा की सहधर्मिणी श्रीमती अरुणा शर्मा ने भी आत्मीय विचार प्रकट किए। इस अवसर पर देश-प्रदेश और नगर से आए गणमान्य नागरिकों एवं श्री राजेन्द्र शर्मा की कलम के मुरीद पाठकों ने भी उनका अभिनंदन किया। समाज में श्री शर्मा की लोकप्रियता एवं आदर इतना अधिक है कि मुख्य कार्यक्रम के बाद अभिनंदन का यह दौर भी लंबा चला और अपने आप में एक कार्यक्रम में परिवर्तित हो गया। 


जब मन की भावुकता वाणी से झलकी :
अपने प्रति मूर्धन्य विद्वानों, गणमान्य नागरिकों एवं सभी अपनों का आत्मीय-आदर का भाव देखकर श्री राजेन्द्र शर्मा का मन अत्यंत भावुक हो गया था। जब वह अपने मन की बात कहने के लिए आए तो उनकी मन की भावुकता वाणी से स्पष्ट झलक रही थी। अपने उद्बोधन में उन्होंने उन सबको स्मरण किया, जिन्होंने प्रारंभ से उनकी यात्रा को समर्थन दिया और विश्वास रखा। अपने संबोधन में श्री शर्मा ने सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी को स्मरण किया और उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त की। उन्होंने बताया कि उन्हें स्वदेश की जिम्मेदारी संघ के प्रचारक स्वर्गीय मोरो पंत ने सौंपी थी। यह भी पहला प्रयोग था, जब किसी व्यक्ति विशेष को संघ की ओर से इस तरह की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई हो। उन्होंने बताया कि उन्हें आज इस बात का आत्मसंतोष है कि वह श्री पंत के भरोसे पर खरे उतर सके। जब देश में सहिष्णुता एवं असहिष्णुता की बहस चल रही है। जब एक अभारतीय विचार घोर असहिष्णु होकर भी दूसरों पर असहिष्णुता का ठप्पा लगा रहा है, तब एक तरह से उनके षड्यंत्र को उत्तर देते हुए श्री राजेन्द्र शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा- ‘स्वदेश एक विचारधारा का समाचार पत्र है, लेकिन विरोधी विचारों के प्रति हमने कभी असहिष्णुता नहीं दिखाई। पत्रकारिता में सत्ता का विरोध हो सकता है, लेकिन हमने केवल एक मार्ग चुना और वह है सत्य का मार्ग।‘ 
अभिनंदन समारोह में स्वदेश के प्रधान संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा की लिखी हुई विशेष संपादकीय टिप्पणियों का संग्रह ‘वैचारिकी’ और स्वदेश (भोपाल समूह) की 35 वर्ष की यात्रा पर आधारित स्मारिका का विमोचन भी किया गया। यह दोनों विशेषांक यह बताने में पर्याप्त सिद्ध हैं कि स्वदेश और श्री राजेन्द्र शर्मा की पत्रकारिता का विचार प्रवाह कैसा रहा है।
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- लोकेन्द्र सिंह (लेखक विश्व संवाद केंद्र, भोपाल के कार्यकारी निदेशक हैं और इस अभिनंदन समारोह की समिति के सदस्य भी रहे।)

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