उठ जाग मातृ भू की सुप्त नव संतान रे।
उठ जाग मातृ भू की वीर संतान रे।।
क्यों आत्म विस्मृत हो रहा
अपना अस्तित्व पहचान रे।
अपने सुकर्म, स्वधर्म से
कर राष्ट्र का पुनरुत्थान रे।
उठ जाग मातृ भू की राणा-सी वीर संतान रे।।
कर मातृ भू की सेवा
तन-मन-धन-प्राण से।
ले अंगड़ाई आलस्य निंद्रा त्याग रे
जागेगा तेरा भाग्य रे।
उठ जाग मातृ भू की दिव्य संतान रे।
उठ खड़ा हो ले शस्त्र हाथ में
शत्रु है बैठा घात में।
कर मातृ भू की रक्षा
मां भारती तेरे साथ में।
उठ जाग मातृ भू की शिवा-सी वीर संतान रे।
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- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)
भाई लोकेन्द्र ओज और देशप्रेम से परिपूर्ण रचना आपके भावों को पूर्णतः व्यक्त कर रही है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दीदी
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