रविवार, 6 अक्तूबर 2013

यशवंत ने 68 दिन में जेल को बना लिया जानेमन

 भ ड़ास ब्लॉग और भड़ास4मीडिया वेबसाइट के संस्थापक एवं संचालक यशवंत सिंह ने एक मामले में 68 दिन जेल में जिए। डासना जेल में। यहां मैंने 'जिए' शब्द जानबूझकर इस्तेमाल किया है। यशवंतजी ने जेल में दिन काटे नहीं थे वरन इन दिनों को उन्होंने बड़े मौज से जिया और सदुपयोग भी किया। यह बात आप उनके जेल के संस्मरणों का दस्तावेज 'जानेमन जेल' पढ़कर बखूबी समझ सकेंगे। दरअसल, मीडिया संस्थानों के भीतरखाने की खबरें उजागर कर उन्होंने कई 'रूपर्ट मर्डोक' से सीधा बैर ले रखा है। उनको जेल की राह दिखाने में ऐसे ही 'सज्जनों' का हाथ था। यह दीगर बात है कि उनके इस अंदाजेबयां से लाखों लोग (पत्रकार-गैर पत्रकार) उनके साथ आ गए हैं। दोस्त भी बन गए हैं। 
'जानेमन जेल' के मुखपृष्ठ पर जेल जाते हुए यशवंत सिंह का फोटो छपा है, जो उनके सहयोगी और भड़ास4मीडिया के कंटेंट एडिटर अनिल सिंह ने खींचा था। बाद में, उन्हें भी पकड़कर जेल में डाल दिया गया था। यशवंत के जेल जाने से दु:खी अनिल सिंह यह फोटो खींचने की स्थिति में नहीं थे। यशवंतजी ने बड़ी जिरह की और अनिल को कहा कि भाई मेरी बात मान ले फोटो खींच ले, यह मौका बार-बार नहीं आता। किताब में कुल जमा 112 पृष्ठ हैं। लेकिन पाठक जब किताब पढऩा शुरू करेगा तो संभवत: 112 वें पृष्ठ पर जाकर ही रुकेगा। यशवंत सिंह बहुत ही सरल शब्दों में सरस ढंग से अपनी बात आगे बढ़ाने हैं। जेल के भीतर के दृश्यों को तो निश्चित ही उन्होंने सजीव कर दिया है। पढऩे वाले को लगेगा कि सब उसकी आंखों के सामने किसी फिल्म की तरह चल रहा है। 'जानेमन जेल' में यशवंत सिंह ने भारतीय जेलों की अव्यवस्थाओं को भी बखूबी दिखाया है। भारत में डासना जेल की तरह ही लगभग सभी जेलों में क्षमता से कहीं अधिक कैदी-बंदी बंद हैं। इस कारण तमाम परेशानियां खड़ी होती हैं। 
किताब में यशवंत सिंह ने जेल में कैदियों-बंदियों की दिनचर्या और आपसी रिश्तों को भी खूब समझाया है। जेल के एकांत में कुछ लोग अपने किए पर पछताते हैं और बाहर निकलकर एक नई शुरुआत की योजना बनाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बैठे-बैठे बदला लेने की प्लानिंग भी करते रहते हैं, हालांकि जेल से छूटने तक इनमें से भी कई लोगों का मन बदल जाता है। वाकई जेल है तो सुधारगृह की तरह। अब यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह सुधरता है या जैसा गया था वैसा ही निकलता है। जेल में स्वास्थ्य दुरुस्त रखने के लिए खेल की सुविधा के साथ ही योग कक्षाएं भी हैं। पढऩे के लिए पुस्तकालय भी। योग कक्षा और पुस्तकालय का यशवंत जी ने बड़ा अच्छा इस्तेमाल किया। एक अच्छी किताब 'जानेमन जेल' को पढऩे के साथ ही पाठकों को एक अध्याय में कई और अच्छी किताबों की जानकारी भी मिलेगी। जिन्हें यशवंतजी ने पढ़ा और अपने पाठकों को भी पढऩे की सलाह देते हैं। साथ ही कुछ ऐसी किताबों के भी नाम आपको पता चलेंगे जो जेल में 'सुपरहिट' हैं। आप भी जान पाएंगे कि जेल में कैदी 'सुपरहिट' किताबों को पढऩे के लिए कितने लालायित रहते हैं। जो कैदी-बंदी पढ़ नहीं सकते, वे सुनने के लिए तरसते हैं। अभी तक मैं सोचता था कि खुशवंत सिंह सरीखे बड़े लेखक 'औरतें' किसके लिए लिखते हैं, अब समझ में आया कि भारत की जेलों में भी बड़ी संख्या में उनका पाठक वर्ग है। हालांकि 'जानेमन जेल' में खुशवंत सिंह की किसी किताब का जिक्र नहीं हुआ है। लेकिन, मेरा पक्का दावा है कि जेल की लाइब्रेरी में उनकी एक भी किताब होगी तो वह जरूरी किसी बैरक में, किसी कैदी-बंदी के तकिए के नीचे छिपी होगी। 
यशवंत सिंह के जेल से बाहर निकलने के बाद के भी कुछ संस्मरण भी 'जानेमन जेल' में हैं। पत्रकारिता और भड़ास से जुड़े सभी पत्रकार और अन्य लोगों को किताब जरूरी पढऩी चाहिए, यह मेरी सलाह और निवेदन है। किताब खरीदकर पढि़ए, हालांकि मैंने मुफ्त में पढ़ी है। भोपाल में मीडिया एक्टिविस्ट अनिल सौमित्र जी की लाइब्रेरी में यह किताब देखी तो अपुन झट से निकालकर ले आए। किताबों के मामले में अपुन हिसाब-किताब ठीक रखते हैं, वापस भी करने जाएंगे भई। ऐसे पत्रकार जो सोशल मीडिया से जुड़े हैं, उन्हें यह किताब हौसला देगी। कभी जेल जाने की नौबत आए तो क्या करना है, कैसे जेल में रहना है, इस सबके लिए गाइड भी करेगी। 'जानेमन जेल' के जरिए यशवंत भाई ने जेल को पिकनिक स्पॉट की तरह पेश किया है। किताब मंगाने के लिए पाठक यशवंत सिंह से सीधे संपर्क कर सकते हैं। 
मोबाइल : 9999330099
ईमेल : yashwant@bhadas4media.com
वेबसाइट : bhadas4media.com
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किताब : जानेमन जेल
मूल्य : 95 रुपए
प्रकाशक : हिन्द-युग्म
1, जिया सराय, हौज खास, नईदिल्ली-110016

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! बहुत सुंदर समीक्षा .!
    नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-

    RECENT POST : पाँच दोहे,

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  2. पढ़ना तो बनता है, लिखने वाला तो जहाँ जायेगा, लिख जायेगा।

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  3. लोकेन्द्र जी शुक्रिया लेख के लिए, अभी बस यशवंत जी से बात हुई है किताब के लिए, खरीद कर पढूंगा इस बार.… हा हा हा।

    --
    सादर, ​​
    शिवेंद्र मोहन सिंह

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  4. मंगवाने की कोशिश करते हैं. पढ़ना तो बनता है जानेमन जेल को .

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